unemployment : देश इन दिनों युवा पीढ़ी के करियर पर ग्रहण लगा हुआ है क्योंकि गरीबी और बेरोज़गारी की मार से देश का कोई गांव या शहर बाकी नहीं है। बेरोजगारी हमारे देश की एक गम्भीर समस्या बन चुकी है। वैसे कोरोना महामारी के बाद यह समस्या दुनिया प्रत्येक देश में है, फिर चाहे वो विकसित हो या विकासशील। विश्व के पूर्ण विकसित देश जैसे कि अमेरिका,ब्रिटेन,रूस,फ्रान्स तथा जर्मनी आदि में भी वर्तमान समय में बेराजगारी एक आर्थिक मंदी की आकृति से बनकर जटिल समस्या के रूप में पनप रही है।
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बेरोजगारी दर को लेकर राहुल गांधी ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। राहुल गांधी रविवार को कहा कि देश में बढ रही बेरोजगारी बढ़ने से ही अब छात्र विरोध करने को मजबूर हुए हैं। वायनाड सांसद ने ट्विटर पर मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि, बेरोजगारी रिकॉर्ड ब्रेक स्तर पर पहुंच गई है। देश के 3.03 करोड़ युवा बेरोजगार हैं। बेरोजगारी की यह दर लॉकडाउन के समय से भी अधिक हो गई है।
unemployment दिन प्रतिदिन बढ रही बेरोजगारी हमारे देश के भविष्य यानी शिक्षित युवाओं को दीमक की तरह चाट रही है। हमारे देश की जनसंख्या अनुसार रोजगार के अवसर युवाओं को मुह्य्या नही कराए जा रहे हैं। इसका नतीजा यह है की हमारा युवा वर्ग बेरोजगारी की चक्की में पिसकर अपने लक्ष्यों से भटक गया है। युवा हमारे देश की रीढ़ की हड्डी है और वे राष्ट्र और समाज के पुनर्निर्माण का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। इन दिनो शिक्षा भी अपने उद्देश्यों पर सही नहीं उतर पाने से युवा वर्ग आहत और निराश बनकर गया है। शिक्षा के दो मूल उद्देश्य हैं जिसमें एक है शिक्षित बनकर आजीविका से जुडऩा और है दूसरा राष्ट्र और समाज के लिए अपनी जिम्मेदारियां निभाना। अब हमारे युवाओं को अत्यधिक नैतिक शिक्षा ग्रहण करने की जरूरत है जिसके चलते उनका संपूर्ण व्यक्तित्व विकास हो पाए।
चुनावी सिजन में बेरोजगारी को खत्म करने का एजेंडा हर राजनीतिक दल के मैनिफेस्टो में शामिल है। किंतु, चुनावों के बाद कोई भी राजनीतिक दल अब तक युवाओं से किए गए वायदों पर खरा नहीं उतरा है। इस से उलट युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित किए जाने की बजाय राज्य सरकारें उन्हें चंद रुपए का भत्ता देने के नाम पर उनका मजाक बनाती रही हैं। भत्ते के नाम पर मिलने वाली यह खैरात युवाओं के मनोबल को गिरा सकती है, इस पर गौर करना जरूरी है।
unemployment से परेशान युवा नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर अपना भविष्य दांव पर लगाने को मजबूर हैं। पोलिटिकल पार्टी ने अपनी नैया पार कराने के लिए युवाओं को कई पदों पर मनोनीत किए जाने का सिलसिला शुरू कर रखा है। देश के हर एक राज्आय राज्य में अपराध बढ रहे है, यह सभी कहीं न कहीं नेताओं की मिलीभगत का ही परिणाम है। बेरोजगारी से आहत होकर अक्सर युवा नेताओं की चमचागिरी करके रातोंरात ही धनाढ्य बनने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाने लगे हैं। बेरोजगारी से पीडि़त युवा नशीले पदार्थों की बिक्री को अपनी आय का प्रमुख साधन बना रहे हैं। देश के हालात अब इस कदर बदतर हो चुके हैं कि इस जहर की तस्करी में महिलाएं, लड़कियां और नाबालिग स्कूली छात्र भी शामिल हो रहे है जो हमारे लिए शर्म और अफसोस की बात है।
विकासशील देश जैसे भारत,ब्राजील,चीन,पाकिस्तान एवं अन्य दक्षिण एशियाई-अमेरिकी देशों में बेरोजगारी को समस्या के दर्पण से देखें , तो स्थिति अति भयावह है। इन देशों में उच्च तथा प्रौद्योगिकी शिक्षा के संस्थानों के अभाव में कुशल श्रम शक्ति की भारी कमी है,वहीं दूसरी ओर सामान्य शिक्षा प्राप्त श्रमजीवी भी बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है। वहीं उच्चतम कुशल श्रमशक्ति का योग्यतानुसार कारण न मिलने से विदेशों की ओर पलायन बढ़ रहा है। सरकार बेरोजगारी की समस्या से नजरें फेर कर मूकदर्शक भर ही बनी हुई है। वैसे तो देश में बढ़ती जनसंख्या के अलावा भी बेरोजगारी के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन हमारे देश में,आर्थिक सम्पन्नता की कमी,शिक्षा का अभाव, रोजगार परक शिक्षा एवं सम्बन्धित संसाधनों की कमी तथा लघु एवं कुटीर उद्योग धन्धों की समाप्ति आदि को ही प्रमुख कारण माना जा सकता है। जहां तक आर्थिक सम्पन्नता और शिक्षा के अभाव की बात है तो अधिकांश भारतीय अशिक्षित ही रह गये है। उन्हें शिक्षा के अभाव में कार्य करने के अवसर नहीं मिल रहे हैं। देश में शिक्षा के विकास के साथ रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि न हो पाईं और बेरोजगारी विकराल रूप धारण करती चली गई।
संसाधनों की कमी के कारण देश में रोजगार परक शिक्षा का आवश्यकता अनुसार विकास नहीं हुआ। इसके अलावा देश की मधयम वर्ग के तबके को लघु एवं कुटीर उद्योग धन्धों के चौपट होने से दोहरी मार मिली और देश में बेरोजगारी भी बढ़ी। बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाईयों के उत्पादन से जहां उपभोग की वस्तुओं में वृद्धि तो हुई लेकिन इसका सबसे बड़ा नुक़सान यह हुआ कि देश के लघु एवं कुटीर उद्योग धन्धे बिलकुल ही चौपट हो गये। देश के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक उत्पादन से पूर्व कुटीर धन्धों में देश की अधिकांश जनशक्ति कार्यान्वित थी,वह सभी बेरोजगार हो गई।
अब यह तो हुए बेरोजगारी के कारण किंतु अब यहां सवाल यह है कि इस बढ़ती हुई बेरोजगारी पर अंकुश कैसे लगाया जाए? इसके लिए सबसे पहले हमें बेरोजगारी के अनुदान के लिए देश में आधुनिक उच्च प्रौद्योगिकी की अति आवश्यकता है। वैसे तो देश के विभिन्न शहरों में सरकारी एवं निजी क्षेत्र में अनेक कालेज एवं संस्थान स्थापित किए गये हैं। लेकिन ऊंच्च फीस होने के कारण इन संस्थानों में दाखिला लेना सभी के लिए मुमकिन नहीं है। इसलिए सरकार को चाहिए की वह इन संस्थानों की फीस एवं अन्य खर्चें कम करने के प्रयास करे,ताकि देश का आम आदमी भी अपने बच्चों को डाॅक्टर, वकील इंजीनियर,वैज्ञानिक तथा कुशल कारीगर बना पाए। इसके अलावा सरकार को चाहिए कि वह देश में उत्पादित वस्तुओं की विदेश में विपणन की समुचित व्यवस्था के योग्य कदम उठाए । इसके अलावा देश में उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता में भी सुधार की आवश्यकता है। साथ ही लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास करना भी समय की मांग है। साथ सबसे अहम बात यह है कि देश में बंद हो गए कुटीर उद्योगों को पुर्नजीवित करने की आवश्यकता है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी नये रोजगार के स्रोतों की अपरिहार्य आवश्यकता है। इस दिशा में कदम उठाते हुए महिलाओं को शिक्षा,चिकित्सा एवं समाजकल्याण आदि के क्षेत्रों में नवीन अवसर प्रदान कराये जाएं। इन सभी प्रयासों से ही बेरोजगारी की विकरालता पर कुछ हद तक अंकुश लगाने में कामयाबी मिल सकती है।unemploymentअब यह तो हुए बेरोजगारी के कारण किंतु अब यहां सवाल यह है कि इस बढ़ती हुई बेरोजगारी पर अंकुश कैसे लगाया जाए? इसके लिए सबसे पहले हमें बेरोजगारी के अनुदान के लिए देश में आधुनिक उच्च प्रौद्योगिकी की अति आवश्यकता है। वैसे तो देश के विभिन्न शहरों में सरकारी एवं निजी क्षेत्र में अनेक कालेज एवं संस्थान स्थापित किए गये हैं। लेकिन ऊंच्च फीस होने के कारण इन संस्थानों में दाखिला लेना सभी के लिए मुमकिन नहीं है। इसलिए सरकार को चाहिए की वह इन संस्थानों की फीस एवं अन्य खर्चें कम करने के प्रयास करे,ताकि देश का आम आदमी भी अपने बच्चों को डाॅक्टर, वकील इंजीनियर,वैज्ञानिक तथा कुशल कारीगर बना पाए। इसके अलावा सरकार को चाहिए कि वह देश में उत्पादित वस्तुओं की विदेश में विपणन की समुचित व्यवस्था के योग्य कदम उठाए । इसके अलावा देश में उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता में भी सुधार की आवश्यकता है। साथ ही लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास करना भी समय की मांग है। साथ सबसे अहम बात यह है कि देश में बंद हो गए कुटीर उद्योगों को पुर्नजीवित करने की आवश्यकता है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी नये रोजगार के स्रोतों की अपरिहार्य आवश्यकता है। इस दिशा में कदम उठाते हुए महिलाओं को शिक्षा,चिकित्सा एवं समाजकल्याण आदि के क्षेत्रों में नवीन अवसर प्रदान कराये जाएं। इन सभी प्रयासों से ही बेरोजगारी की विकरालता पर कुछ हद तक अंकुश लगाने में कामयाबी मिल सकती है।
सरकारों को अब बेरोजगारी पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी विभागों में खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू कर युवाओं को रोजगार से जोडऩे की पहल करनी पडेगी। कोरोनाकाल में बेरोजगारी ने भयंकर रूप धारण कर लिया है जिसका नतीजा यह हुआ है की निजी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की भी छंटनी लगातार जारी है। व्यवसाय से जुड़े लोगों की हालत भी सुखद नहीं है। कोरोना की चेन तोडऩे के उद्देश्य से बाजार कई महीनों तक बंद रखे गए थे। ऐसे में बैंकों से लोन लेकर व्यवसाय शुरू करने वाले भी आर्थिक कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं।
राहुल गाँधी की जेब किसने काट लिया
रिपोर्ट के मुताबिक देश में युवा बेरोजगारों की संख्या चार साल में 1.26 करोड़ बढ़ गई। ये आंकड़े ही इस बात को उजागर करते हैं कि आखिर क्यों छात्र सत्याग्रह का कदम उठा रहे हैं। एक अहंकारी व्यक्ति ने तो अपनी आंखें बंद ही कर रखी हैं। दरअसल, रेलवे के एनटीपीसी परीक्षा परिणाम को लेकर नाराज हुए बिहार व यूपी के छात्रों ने प्रदर्शन किया। जिसके बाद रेलवे ने समिति का गठन कर दिया है।