Russia के जीते हुए प्रांतों को क्या दुनिया देगी मान्यता? जानिए क्या है इसका इतिहास

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Russia यूक्रेन के 4 प्रांत को अपने देश में मिलाने के रूस के कदम की अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अधिकतर सदस्यों ने निंदा की है एवं इसे अवैध बताया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन पर यूक्रेन के क्षेत्र पर फर्जी दावा करने का आरोप लगाते हुए यह कहा कि ये कदम संयुक्त राष्ट्र चार्टर को कुचल देगा एवं हर जगह शांतिपूर्ण राष्ट्रों की अवधारणा की उपेक्षा भी करता है।

Russia War

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में ब्रिटेन के मानवाधिकार राजदूत रिता फ्रेंच ने रूस के कदम की निंदा की एवं इसे संप्रभु यूक्रेन के क्षेत्र को बिना कारण एवं अवैध तरीके से हड़पना करार दिया।

Russia ने बताया झल्लाहट

Russia के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने उनके देश की तरफ से उठाए गए कदम की पश्चिमी देशों द्वारा निंदा किए जाने को ‘झल्लाहट’ बताया है एवं यह कहा है कि कोई भी संप्रभु, स्वाभिमानी राष्ट्र जो अपने लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को महसूस करता है, वो यही करता।

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफिल्ड ने भी यह कहा कि अगर यूक्रेन के क्षेत्र को अपने देश में मिलाने के रूस के कदम को स्वीकार कर लिया जाता है। तो ये भानुमति के पिटारे को खोलने जैसा ही होगा जिसे हम बंद नहीं कर सकते हैं। क्षेत्रों पर दावों को समझने के लिए ऐतिहासिक Record को देखा जाना आवश्यक है।

Russia की तरफ से इन क्षेत्रों को अपने में मिलाना बहुत ही असामान्य बात है। खासकर सन्1945 के बाद से। करीब-करीब ऐसा कभी भी नहीं हुआ है कि कोई देश फौज के दम पर विजेता हुआ हो तथा फिर उसने बड़ी आबादी वाले क्षेत्र को अपने देश में मिला लिया हो जैसा यूक्रेन में देखने को मिला रहा है। चूंकि कुछ बार ऐसा हुआ है, मगर ऐसे मामलों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगभग हर बार एक साथ आया है एवं उसने ऐसी स्थिति को कभी मान्यता भी नहीं दी।

Russia-Ukraine War/Russia-Ukraine War

Indonesia को झेलना पड़ी थी निंदा

सन् 1974 में जब Indonesia ने ईस्ट तिमोर पर हमला किया एवं उस पर कब्जा भी कर लिया। तो इसकी निंदा की गई एवं सालो तक इसे मान्यता भी नहीं दी गई। आखिरकार सन् 2002 में संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित जनमत संग्रह के जरिए ही एक नया स्वतंत्र राष्ट्र तिमोर-लेस्त अस्तित्व में आया।

Russia-Ukraine War/Russia-Ukraine War

मान्यता इनको नहीं मिली थी

सन् 1967 में इसराइल ने जिन क्षेत्रों को कब्जा किया था एवं वर्ष 1974 में तुर्कीये ने साइप्रस के जिन उत्तरी हिस्सों पर कब्जा किया था। उन्हें दशकों से मान्यता भी नहीं दी गई है। Russia ने ही सन् 2014 में क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया था। जो ज़मीन कब्ज़ा करने की मिसाल है। जिसे मान्यता भी नहीं दी गई है।

चूंकि मान्यता न देने से कोई खास प्रभाव तो नहीं पड़ता है। लेकिन Russia पर आर्थिक प्रतिबंधों एवं यूक्रेन को हथियार तथा उपकरण उपलब्ध कराने की तुलना में। मगर मान्यता न देना हर किसी को आश्वस्त करता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ऐसे विश्व को महत्व देता है जहांंपर युद्ध न हो।

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Italy का इथोपिया पर हमला

सन् 1935 में, बेनिटो मुसोलिनी के शासन के अंतर्गत इटली ने इथोपिया पर हमला कर दिया था। तब ‘लीग ऑफ नेशंस’ एवं अमेरिका ने हमले की निंदा की थी तथा इथोपिया के लिए भी अपने समर्थन का ऐलान कर दिया था। इटली पर समन्वित आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे। मगर ब्रिटेन एवं फ्रांस के विदेश मंत्रियों ने युद्ध खत्म करने के लिए मुसोलिनी के साथ एक गुप्त समझौता भी कर लिया था।

इसके अंतर्गत इथोपिया ने अपना ज्यादातर क्षेत्र इटली को सौंप दिया एवं मुसोलिनी को देश के बाकी हिस्सों पर भी आर्थिक नियंत्रण सौंप दिया। जब ये समझौता सार्वजनिक हुआ तो पूरी दुनिया के लोगों ने इसकी सराहना नहीं की, बल्कि उन्होंने माना कि हमलावर देश इटली को ही पुरस्कृत किया जा रहा है। क्योंकि उसने युद्ध भूमि में जीत हासिल की है। जो कि आक्रमण का विरोध करने के सिद्धांत के भी खिलाफ है।

Italy के साम्राज्य को नहीं मिली मान्यता

इसका विरोध इतना प्रचंड था कि Britain & France की सरकारों को अपनी योजना त्यागनी पड़ी एवं दोनों देशों के विदेश मंत्रियों को इस्तीफा भी देना पड़ गया। इसके एक महीने बाद से अमेरिका ने इटली के हथियारों की बिक्री पर लगी रोक को हटा दिया एवं लीग ऑफ नेशंस ने प्रतिबंध खत्म करने के लिए मतदान करवाया। चूंकि अमेरिका, सोवियत संघ एवं कुछ अन्य देशों ने पूर्वी अफ्रीका में Italy के साम्राज्य को मान्यता देने से इनकार कर दिया।

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लीग ऑफ नेशंस इन देशों ने छोड़ दिया था

इसके बाद से होंडुरास, निकारागुआ, चिली, वेनेजुएला, स्पेन एवं हंगरी ने लीग ऑफ नेशंस को छोड़ दिया। डेनमार्क, स्वीडन, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड तथा बेल्जियम ने यह कहा कि वह अब लीग की सामूहिक सुरक्षा में भाग नहीं लेंगे। इसका अर्थ ये था कि अगर हिटलर के शासन वाले Germany जैसे देशों की मांग को मानेंगे तो आप अकेले रह जाएंगे । इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय समाज के एक जिम्मेदार सदस्य बनिए।

इन ऐतिहासिक घटनाओं से यह सबक मिलता है इस सिद्धांत को कायम रखना कि विजय देश अपने जीते हुए क्षेत्रों कभी नहीं छोड़ना चाहता है। मान्यता नहीं देना इसलिए जरूरी है कि विजेता को जंग में जीत के बाद से क्षेत्रो पर अधिकार नहीं दिया जा सकता है।

अगर Russia को हथियारों के बल पर जीते हुए इलाके अपने पास रखने दिए जाते हैं तो छोटे देशों को लगेगा कि उन्हें खुद को हथियारों से लैस (Less) करने की जरूरत है। हम ये Finland & Sweden के मामले में देख चुके हैं। जिन्होंने नाटो (NATO) में शामिल होने के लिए ही समझौते पर हस्ताक्षर किया। युद्ध भूमि में जीत ये संदेश देगी कि ताकतवर सही है। ये शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।

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