independence day इस वर्ष 75वां साल जश्न-ए-आजादी मना रहा है। यूं तो आजाद हवा में सांस लेने का एक-एक पल भी खास होता है। लेकिन इन एक-एक पल में भी आपस में जुड़ कर दिन, महीनों और वर्षों के ऐसी खास पड़ाव तैयार किए हैं। जो एक राष्ट्र के सफर में हर देशवासी के लिए गर्व और स्वाभिमान के प्रतीक बन गया हैं। भारत राष्ट्र के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु ध्यान रखने का है। कि 15 अगस्त 1947 अंग्रेजों की दासता से स्वतंत्र होने का दिवस है। यह वर्ष जितना ही गौरवशाली और ऐतिहासिक हैं। देश उतना ही उत्साह और भव्यता के साथ मनाने की तैयारी में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दांडी यात्रा की वर्षगांठ पर 12 मार्च को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली गुजरात से आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत की थी। हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि जब भी ऐसा कोई और अवसर आता है। तब सारे तीर्थों का एक साथ संगम हो जाता है। “आजादी का अमृत महोत्सव” एक राष्ट्र के रूप में भारत के लिए ऐसा ही पवित्र अवसर है।
महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर
महिला सशक्तिकरण में भी भारत ने प्रगति की है। भारतीय महिलाओं की सुरक्षा, निर्णय प्रक्रिया में उनके योगदान तथा मोबिलिटी यानी गतिशीलता में वृद्धि हुई है। वर्ष 1947 महिलाओं की साक्षरता मात्र 8% थी। जो कि वर्ष 2011 में बढ़कर 65.46% हो गई। टेक्नोलॉजी शिक्षा विज्ञान विभिन्न प्रतियोगिताओं में बालिकाएं अव्वल आ रही है। राजनीति से लेकर सर्विस सेक्टर में भी भारतीय महिलाओं की भागीदारी 1947 की तुलना में बहुत अधिक बढ़ी है। भारत के सशक्त होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह भी है।
एक देश के लिए 75 वर्ष की आयु अधिक नहीं होती है। जबकि इस अवधि के लिए हम अपने आसपास के देशों की अनिश्चितता देखते हैं। तो हमें गर्व होता है कि एक देश अपनी परिस्थिति को सुधारते-सुधारते कैसे सफल होता है, और अन्य देशों के लिए एक उदाहरण बनता है।
आजादी का अमृत महोत्सव मतलब विकास का महोत्सव
वेदों में भी कहा गया है कि “मृत्यो: मुक्षीय मामृतात्” अच्छा तो हम दुख, क्लेश, कष्ट और विनाश से निकलकर अमृत की तरफ बढ़े। एक ऐसा ही संकल्प आजादी के इस अमृत महोत्सव का है। आजादी का अमृत महोत्सव यानी नए विचारों का अमृत, नए संकल्पों का अमृत, आजादी ऊर्जा का अमृत। आजादी के भिन्न-भन्न घटनाओं की अपनी प्रेरणाए हैं। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम, लोकमान्य तिलक का पूर्ण स्वराज का आह्वान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का दिल्ली मार्च, अंग्रेजों भारत छोड़ो का उद्घोषण, 1942 का अविस्मरणीय आंदोलन ऐसी ही कितने अनगिनत है जिसे हम प्रेरणा लेते हैं।
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बड़ी है भारत की भूमिका
अमेरिका 2011 में ही इंडोपैसिफिक को लेकर काफी गंभीर दिखने लगा था। और तो और उसने ट्रांस पैसिफिक पॉलिसी के तहत हिंद महासागर देशों का अध्ययन किया था। भारत इसमें प्रथम था। इसलिए उसकी तरफ से यह सुनिश्चित भी किया गया था कि ट्रांसपैसिफिक में कोई भी रणनीति भारत के बिना सफल नहीं हो पाएगी। यहीं से उसका प्रयास रहा है कि वह भारत के साथ पैसिफिक में स्थाई गठबंधन करें।
फिलहाल 2020-21के दौर में कोविड-19 पैडमिक ने
विभाजक रेखा सी खींच दी। हालांकि इससे पहले की जो दुनिया थी, वो अलग ही थी और ये भी हो सकता है कि आने वाले कल में इससे भी अलग हो जाए। दुनिया के अलग होने का मतलब है। व्यवस्था व मनोदशा में परिवर्तन। अगर 1990 के दशक में देखें तो इस पूंजीवादी बाजार की शुरुआत हुई थी, और उसे ग्लोबलाइजेशन वह लिबरलाइजेशन के साथ जोड़ा गया था। हालांकि कोविड-19 महामारी के साथ ग्लोबलाइजेशन जैसा कुछ दिखा। जब एकता की बिखरती कड़ियों के बीच दुनिया भर के लोग अपनी सांसो को बचाने के लिए लड़ रहे थे। तब सही अर्थों में तो ग्लोबलाइजेशन दफन हो रहा था। यहां की स्थिति बता रही है कि विश्व व्यवस्था को नए सिरे से निर्मित करना और वैश्विक संबंधों को परिभाषित करने की आवश्यकता है।
75वां वर्ष प्रेरक बनना चाहिए
आजादी के आंदोलन के इतिहास की तरह ही आजादी के बाद के 75 वर्षों की यात्रा हम भारतीयों के परिश्रम, उद्यमशीलता और इनोवेशन का प्रतिबिंब है। हम भारतीय अपने देश में रहे या फिर विदेश में हमने अपनी मेहनत से खुद को साबित किया है। हमें गर्व है, हमें हमारे संविधान और हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं पर। प्रधानमंत्री मोदी का कहना सही है कि 15 अगस्त 1947 के पूर्व बलिदान की आवश्यकता थी। तो आज देश के लिए जीवित और स्वस्थ रहकर काम करने की आवश्यकता है। जब हम इस दशा में सोचना समझना शुरू करेंगे तो हमें स्वतंत्रता के लक्ष्यों का भी आभास होने लगेगा।