Vishva Haija Divas: क्यों मनाया जाता है विश्व हैजा दिवस. इसकी शुरुआत कहां से हुई थी?

Published by

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि दुनिया भर में किसी बीमारी ने इतनी अधिक दहशत फैलाई हो। प्लेग, हैजा चिकनपॉक्स, इनफ्लुएंजा मानव इतिहास के तो सबसे बड़े वायरस में शामिल है। 30 से 50 करोड़ लोगों की जान इन बीमारियों ने ली है। हैजा विसूचिका या आम बोलचाल में जिसे एशियाई महामारी के रूप में भी जाना जाता है। ये एक संक्रमण बीमारी है। जो वाइब्रियो काॅलेरी नामक जीवाणु के एंटेरोटॉक्सिन करने वाले उपभेदों की वजह से होता है। इसका संचरण मनुष्य में इसी वार्ड द्वारा दूषित भोजन या फिर पानी को ग्रहण करने के स्रोत से होता है। सामान्य तौर पर पानी या फिर भोजन का यह दूषण हैजे के एक वर्तमान रोगी द्वारा होता है। अभी तक तो ऐसा ही माना जाता था कि हैजे जलाशय स्वयं मानव होता है। लेकिन कोई ठोस सबूत ना होने के कारण जलीय वातावरण भी इस जीवाणु के जलाशय के रूप में काम कर सकते हैं। चूंकि वाइब्रियो काॅलेरी 1-ग्राम नेगेटिव जीवाणु है। जो एक काऍलेरा टोक्सिन, एंटेरोटाॅक्सिन का उत्पादन करता है। हैजा उन मुंह में से एक है जो सबसे तेजी से घातक असर करते हैं। एक घंटे के अंदर ही इसके सबसे गंभीर रूप में रोग के लक्षण की शुरुआत का पता चलता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का रक्तचाप घटकर निम्न रक्तचाप के स्तर तक पहुंच भी सकता है। तथा अगर इससे संक्रमित मरीज को चिकित्सा प्रदान नहीं की जाए तो वह 3 घंटे के अंदर ही मर सकता है। सामान्य तौर पर रोगी को पहले दस्त होते हैं। तथा अगर उसे मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा नहीं प्रदान की जाती है। तो 18 घंटे के अंदर ही रोगी की मृत्यु का ग्रास बन सकता है।

साल 1910-1911 हैजा से लोगों का मौत का आंकड़ा

हैजा की शुरुआत भारत से हुई। उसके बाद से इसने 8 लाख से अधिक लोगों की जान ले ली। इसकी चपेट में तो उत्तरी अमेरिका, मध्य पूर्व, रूस और पूर्वी यूरोप भी आए। हालांकि इस रोग के प्रति अमेरिका स्वास्थ्य विभाग जल्दी सचेत हो गया। तथा 11 अमेरिकियों ने साल 1923 में इसे अपनी जान गवाई।

वर्ष 1852-1860 तक तीसरी श्रेणी का हैजा

इस रोग की शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी। इसकी मतलब हैजा की सात श्रेणियों में से इसको सबसे ज्यादा जानलेवा माना जाता है। सन् 1852 से 1860 के दौरान इसका प्रकोप सबसे अधिक रहा। हालांकि तभी भी इसकी शुरुआत भारत से हुई उसके बाद से या फिर एशिया, उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका तक फैल गया। 10 लाख लोगों की इसने जाने ली।
गौरतलब है कि ब्रिटिश डॉक्टर जॉन स्नो ने गरीब इलाकों में रहते हुए ही इसकी पहचान की। इस बीमारी ने ग्रेट ब्रिटेन में 30,000 लोगों को 1854 में मौत के घाट उतार दिया।

Recent Posts