Janmashtami: Poetry on Krishna, भगवान श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता, चुम्बकीय शख्यिसत , प्रेम प्रवृति और उनकी नैतिकताकी ऊंचाई का प्रभाव है कि मुस्लिम समाज से लेकर दुनिया का हर कवि मन श्रीकृष्ण से प्रभावित हैं। कवि एक साहित्य प्रेमी होता है और धर्म, जाति जैसी किसी हदों को नहीं मानता। इसलिए कृष्ण के प्रेमियों में मुस्लिम कवियों की संख्या लाखों में है।
भारत में इस्लाम के प्रभावी ढंग से प्रसार का इतिहास हजारों साल पहले से शुरू हुआ है और यहीं से मुस्लिम कवियों में कृष्ण प्रेम के भाव भी देखने को मिलते हैं। महान कवि अमीर खुसरो के समय कविता में कृष्ण प्रेम की जो धारा फूटी वो सदियों तक उसकी लहरें बह रही है और यह सिलसिला अभी भी बरकरार है।
हिंदुस्तान की कविता में भक्तिकाल का उदय 14वीं सदी के आसपास से माना जाता है। इसी के आसपास, संभवतः कुछ पहले से कविता में सूफीवाद की स्थापना हुई थी।
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हजरत निजामुद्दीन औलिया के सबसे चहेते शागिर्द अमीर खुसरो के साथ कृष्ण प्रेम का एक किस्सा जुड़ा हुआ है।
अमीर खुसरो ने एक रचना रची
“छाप तिलक सब छीन ली रे मोसे नैना मिलाइ के”
वैसे इस रचना में हमें सीधे कृष्ण का नाम नहीं मिल रहा लेकिन छवियां मिलेगी जिससे आप वाकई में यकीन करेंगे कि खुसरो ने यह रचना श्रीकृष्ण को ही समर्पित की थी। इस रचना का ये अंश भी देख लिजिए
” री सखी मैं जो गई थी पनिया भरन को, छीन झपट मोरी मटकी पटकी मोसे नैना मिलाइ के।”
सईद इब्राहीम उर्फ रसखान के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भगवद्गीता का फारसी में अनुवाद किया था। रसखान की रचनओं के कारण ही जर्मन हिन्दी विद्वान डा. लोथार लुत्से को सूरदास पंचशती वर्ष पर एक लेख में कहा था,
भक्ति आंदोलन शुरू से ही एक लोकतांत्रिक आंदोलन रहा है। वैसे तो इसके आराध्य हिन्दू मान्यताओं के अवतार ही थे लेकिन यह आंदोलन कभी ढी संकीर्ण साम्प्रदायिकता की ओर नहीं झुकाहै क्योंकि अगर ऐसा होता तो 1558 के करीब पैदा हुए एक मुस्लिम रसखान के लिए ब्रजभाषा की उत्कृष्ट वैष्णव कविताएं लिख पाना शायद मुमकिन न होता।
वहीं, इतिहास के पन्नों पर देखें तो रीतिकालीन कवि आलम शेख ने ‘आलम केलि’, श्याम स्नेही’ और माधवानल-काम-कंदला’ आदि ग्रंथों की रचना की थी।
अब्दुल रहीम खानखान तुलसीदास के गहरा दोस्त थे हालांकि रहीम अपने नीतिपरक दोहों और अन्य काव्य के लिए ज्यादा मशहूर हुए लेकिन उन्होंने समय समय पर कृष्ण काव्य भी रचा था। उनकी कृष्ण संबंधी रचनाओं के कुछ अंश इस प्रकार है,
जिहि रहीम मन आपुनो, कीन्हों चतुर चकोर
निसि बासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर।
नजीर अकबराबादी का कृष्ण प्रेम मिसाल के तौर पर दर्ज है। उनकी एक प्रसिद्ध कृष्ण प्रेम रचना,
तू सबका खुदा, सब तुझ पे फिदा, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी
है कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी
तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नजीर तेरा
तू बहरे करम है नंदलाला, ऐ सल्ले अला, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी
इसके अलावा नजीर ने कृष्णचरित और रासलीला के वर्णन के साथ ‘बलदेव जी का मैला’ नामक एक कविता भी लिखी है। यह कविता कृष्ण के बड़े भाई बलराम पर केंद्रित है। ‘कन्हैया का बालपन’ शीर्षक वाली नजीर की कविता भी लोगों में काफी लोकप्रिय रही है।
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लखनऊ रियासत के आखिरी वारिस वाजिद अली शाह भी कृष्ण प्रेमियों में है। कहने को तो वह नवाब थे लेकिन एक कवि और कलाकार रहे वाजिद अली शाह ने 1843 में राधा-कृष्ण पर एक नाटक किया था। लखनऊ के इतिहास की विशेषज्ञ रोजी लेवेलिन जोंस ने ‘द लास्ट किंग ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि वाजिद अली शाह पहले ऐसे मुसलमान राजा थे जिन्होंने राधा-कृष्ण के नाटक का निर्देशन किया था।
Janmashtami, इन सभी के अलावा महत्वपूर्ण कवि चिंतक, कवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और एक राजनेता रह चुके मौलाना हसरत मोहानी हों या उर्दू के मशहूर व सम्मानित शायर अली सरदार जाफरी, कृष्ण प्रेम के दर्शन को मुस्लिम कवियों में मान्यता हर समय में मिलती रही. जाफरी साहब ने लिखा है-
अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाए
तो फित्नगरों का काम तमाम हो जाए
मिटाएं बिरहमन शेख तफर्रुकात अपने
जमाना दोनों घर का गुलाम हो जाए.
इस सभीके अलावा मौलाना जफर अली, ताज मुगलानी और शाह बरकतुल्लाह जैसे कवियों के नाम भी कृष्ण प्रेम संबंधी कविता से जोड़े ग हैं।
अगर साहित्य के इतिहास में आप तलाशेंगे तो ऐसे और भी कवियों के नाम मिल जाएंगे, जिन्होंने कृष्ण प्रेम पर कुछ रचा है।