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सुप्रीम कोर्ट का स्वत संज्ञान: मजदूरों से हमदर्दी और संवैधानिक कर्तव्य बोध का नतीजा या केंद्र को बचाने की एक और कोशिश,

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रुख अख्तियार किया है वह सरकार को कटघरे में खड़ा करता है इसका अनुकूल निदान उच्च न्यायालय से निकलता है।

उच्च न्यायालय ने अचानक मंगलवार 26 मई को मजदूरों की परेशानी का स्वत संज्ञान लेकर पूरे देश को हैरत में डाल दिया। सुप्रीम कोर्ट का हृदय परिवर्तित या यू टर्न का यह रूप लोगों के हलक से नहीं होता रहा था, चर्चा का विषय यही है कि जस्टिस ए पी शाह, और जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस मार्कंडेय काटजू, जैसे पूर्व न्यायाधीशों और बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत देव सरीखे न्यायविदो को कड़ी आलोचना से अचानक अपने कर्तव्य और संविधान के प्रति अपने शपथ का इलहाम हुआ और उच्च न्यायालय ने मजदूरों की परेशानी पर स्वत संज्ञान लिया और राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से 28 मई तक जवाब मांगा। लेकिन दूसरा मुद्दा यह है कि विभिन्न हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर जिस तरह का

दरअसल यह मामला उच्च न्यायालय के ह्रदय परिवर्तन का नहीं प्रतीत होता है बल्कि एक तीर से कई निशाने का प्रयास है जिसे केवल एक तत्व से समझा जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में न्यायालय को मदद करने के लिए कहा है। इसी में सारा राज छुपा है। सनद रहे इन्हीं सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता की दलील से सहमत होकर 31 मार्च से 25 मई तक प्रवासी मजदूरों के संबंध में दाखिल विभिन्न याचिका खारिज करता रहा है। सरकार के द्वारा उठाए गए कदमों पर संतुष्टि व्यक्त करता रहा है।

दरअसल उच्चतम न्यायालय ने सरकार पर इस रवैए को गुजरात, कर्नाटक, मद्रास, राजस्थान और आंध्र प्रदेश हाई कोर्टओं के हालिया आदेशों ने रक्षात्मक कर दिया है और यहां तक कहा जाने लगा कि उच्चतम न्यायालय का रवैया नकारात्मक है जबकि विभिन्न हाईकोर्ट अवसर के अनुकूल के अनुकूल आगे बढ़कर संविधान के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह बिना किसी भेदभाव और पक्षपात ने किया है। विभिन्न हाईकोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के मामले में केंद्र सरकार को पक्षकार बनाए जाने से भी सरकार और नौकरशाहों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है।

क्योंकि कोर्ट में उठ रहे हैं अप्रिय सवालों का जवाब देना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो रहा है लेकिन केरल हाईकोर्ट केरल सरकार द्वारा मेहमान मजदूरों को आश्रय देने द्वारा उठाए गए कदमों की निगरानी कर रहा है । कर्नाटक हाईकोर्ट प्रवासी मजदूरों को गांव वापस पहुंचाने के अधिकारों के मसले पर कठोर टिप्पणी की और सरकारों को विशेष ट्रेनों पर अपनी स्पष्ट नीति बताने पर निर्देश दिया। उड़ीसा हाईकोर्ट और मुंबई हाईकोर्ट ने प्रवासियों के मुद्दे पर जरूरी दिशा निर्देश दिया।

गुजरात हाईकोर्ट ने तो कोरोना को लेकर जिस तरह गुजरात सरकार किस स्वास्थ्य व्यवस्थाएं और प्रदेश भर के स्वास्थ सुविधाओं को लेकर धज्जियां उड़ा दी है इससे गुजरात मॉडल का बहुचर्चित बहुप्रचारित मिथक पूरी तरह से धारा शाही हो गया है। यदि गुजरात सहित अन्य हाईकोर्ट में इस मसले पर सुनवाई जारी रहे तो आगे और भी कई सरकारों का छीछालेदर जारी रहेगा,

अब उच्च न्यायालय 28 मई की सुनवाई में केंद्र राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों प्रदेशों से जवाब मांगने का अर्थ यह है कि गुजरात हाईकोर्ट सहित अन्य हाईकोर्टों से प्रवासी मजदूरों संबंधित सभी याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित करने का आदेश पारित होगा ताकि केंद्र सरकार तथा भाजपा और अन्य फ्रेंडली पार्टियों की सरकारों को प्रवासी मजदूरों के प्रति अक्षम्य अमानवीय व्यवहार के लिए हाईकोर्ट के अप्रिय आदेश से बचाया जा सके। जनरल तुषार मेहता निश्चित ही सरकारों को उबारने में उच्चतम न्यायालय में मदद सिद्ध होगी।

उच्चतम न्यायालय ने कल कहा कि कामगारों की या भी शिकायत है कि उन्हें सरकार की तरफ से खाना पानी नहीं दिया जा रहा है। देशभर में लॉकडाउन की वजह से समाज के इस वर्ग को सरकार की मदद की जरूरत है। साथ ही इस मुश्किल की घड़ी में केंद्र सरकार राज्य सरकारी और केंद्रशासित प्रदेशों की तरफ से कदम उठाने की जरूरत है। योर ऑनर यही बात तो आप 31 माह से लगातार कह रहे हैं और सरकारों के आश्वासन के बाद बिना किसी निर्देश के आज का खारिज कर दे रहे है।

योर ऑनर 26 मार्च को अचानक आप ने स्वत संज्ञान लिया और फिर सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता से जवाब क्यों नहीं तलब किया 31 मार्च को उन्होंने उच्चतम न्यायालय में स्पष्ट कहा था किसड़क पर आज की तारीख में कोई मजदूर नहीं है और सारी व्यवस्थाएं सरकार की तरफ से की गई है। फिर भी कोर्ट को प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा का स्वत संज्ञान क्यों लेना पड़ा रहा है? यह नहीं सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने मार्च में ही उच्चतम न्यायालय से कहा था की 21 दिन का लॉक दाम बढ़ाने की कोई योजना नहीं है और मीडिया 3 महीने तक लॉक डाउन चलने की अफवाह फैला रही हैं इसलिए मीडिया को यह निर्देश दिया जाए कि बिना पुष्टि के लोग दान संबंधित कोई न्यूज़ प्रकाशित ना करें। उच्चतम न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कि गलत बयानी के लिए आज तक क्यों नहीं जवाब तलब किया। या विधि क्षेत्रों में सर्वविदित है।

Brijendra Kumar

Founder and Chief Editor

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