UP Election अक्सर आपने चुनावी माहौल के बीच चुनाव आचार संहिता का नाम सुना होगा। आप में से बहुत से लोग ऐसे होंगे जो जानते होंगे कि चुनाव आचार संहिता क्या होती है? लेकिन जिन्हें नहीं मालूम है उनको हम बताने जा रहे हैं कि आखिरकार क्या होती है अचार संहिता, इसके नियम तथा यह कब प्रभाव में आया।
UP Election आचार संहिता चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है। इसको आदर्श आचार संहिता भी कहते हैं। जिसका सीधा सा मतलब यह होता है कि चुनाव आयोग के वह दिशा निर्देश जिनका पालन करना हर राजनीतिक दलों तथा उसके उम्मीदवारों को चुनाव खत्म होते तक करने होंगे।
इन नियमों का अगर पालन नहीं होता है तो चुनाव आयोग उम्मीदवार/दल के खिलाफ सख्त कार्यवाही भी कर सकता है। इस कार्यवाही के अंतर्गत उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है। उसके खिलाफ FIR भी दर्ज की जा सकती है तथा दोषी पाए जाने पर सलाखों के पीछे भी जाना पड़ सकता है।
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असल में चुनाव आयोग (UP Election Commission) द्वारा आदर्श आचार संहिता लागू करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराना होता है। इसी के अंतर्गत सरकार तथा प्रशासन पर कई अंकुश लग जाते हैं। यह संहिता सरकारों को नीतिगत निर्णयों की घोषणा से रोक सकती है। ऐसा इसलिए भी किया जाता है ताकि नेता या फिर दल मतदाताओं को लुभा न सके।
यह जानना भी बेहद जरूरी है कि कोड आखिर प्रभाव में आया कब? वर्ष 1960 के केरल विधानसभा चुनाव में पहली बार आदर्श आचार संहिता लागू की गई थी। इसके बाद से 1962 के आम चुनाव में बड़े पैमाने पर सारे राजनीतिक दलों ने इसका पालन किया था तथा आगे भी यह सिलसिला जारी रहा।
वर्ष 1967 के लोकसभा तथा राज्यसभा चुनाव में भी अचार संगीता को लागू किया गया। चूंकि अक्टूबर 1979 में चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों से परामर्श के बाद आचार संहिता में एक अहम बदलाव करते हुए यह नया नियम जोड़ा। सत्ताधारी पार्टी अपनी सत्ता तथा ताकत के उपयोग से चुनाव के समय कोई अनुचित लाभ न उठा सके, इसके लिए भी एक नया नियम जोड़ा गया। इसी तरह सत्ताधारी पार्टी पर कुछ सीमाएं तय की गई। UP Election
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इसके बाद से अचार संगीता को मजबूती देने के लिए 1991 में एक और अहम कदम उठाया गया। तब से लेकर आज तक इस आधार पर आचार संहिता के नियम लागू है। चूंकि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि चुनावी घोषणा पत्र से संबंधित दिशा-निर्देश को भी इसमें सम्मिलित किया जाएगा। 2014 में शीर्ष न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए आयोग ने लोकसभा चुनाव में घोषणा पत्र से संबंधित नियम का भी पालन किया।
– अचार संहिता चुनाव की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है। इसके लागू होने के बाद से सत्ताधारी पार्टियां चुनाव प्रचार के लिए आधिकारिक शक्ति का उपयोग नहीं कर सकती हैं। यानी कि वह किसी भी सरकारी मशीनरी का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं कर सकती।
– सरकारें किसी भी नीति, योजना अथवा परियोजना की घोषणा नहीं कर सकती है।
– पार्टियां सरकारी खजाने का उपयोग विज्ञापन देने या फिर प्रचार के लिए नहीं कर सकती हैं.
– मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी भी जाति या फिर सांप्रदायिक भावनाओं का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
– किसी भी उम्मीदवार या फिर राजनीतिक दलों की आलोचना उनके काम के रिकॉर्ड के आधार पर ही किया जा सकता है।
– मतदाता के समापन के निर्धारित घंटे से पहले 48 घंटे की अवधि के दौरान ही सार्वजनिक बैठक आयोजित करना भी एक अपराध ही है।
– मंदिर, चर्च, मस्जिद या फिर किसी अन्य पूजा स्थलों का इस्तेमा चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जाना चाहिए।