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जानिए BJP के संसदीय बोर्ड में नितिन गडकरी को क्यों नहीं मिली जगह; ये हैं मायने

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BJP: हाल ही में भाजपा ने संसदीय बोर्ड का नये सिरे से गठन किया है जिसमे कई बीजेपी ने कई नए चेहरों को शामिल किया तो वहीं कई फैसले चौंकाने वाले भी रहे । जहां भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बिना चुनाव करवाये संसदीय बोर्ड का गठन कर दिया वहीं केंद्र सरकार में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को ससंदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया ।

BJP की नीतियां निर्धारित करने वाली इस महत्वपूर्ण इकाई से नितिन गडकरी जैसे शानदार छवि वाले नेता को बाहर किये जाने से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं । जहां एक तरफ उनकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनबन और टकराव की खबरें आती रही हैं वहीं वह पार्टी में नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में भी उभर रहे थे । ऐसे में उनको राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया जाना पार्टी में उनका कद छोटा कर देने जैसा है ।

सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाये सवाल

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BJP के सांसद और वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी अक्सर मुखर होकर बोलने के लिए जाने जाते हैं । बीजेपी के संसदीय बोर्ड में नितिन गडकरी को शामिल नहीं किये जाने पर उन्होंने हैरानी जताते हुए पार्टी पर सवाल उठाए हैं ।

उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि पहले जनता पार्टी और BJPके शुरुआती दिनों में पार्टी के पदाधिकारियों की भर्ती के लिए संसदीय दल के चुनाव होते थे , पार्टी का संविधान भी यही है लेकिन वर्तमान में पार्टी में कोई चुनाव नहीं होते और जिसे मोदी पसन्द करते हैं वही चुन लिया जाता है ।

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वहीं BJP सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की ही तरह एनसीपी के प्रवक्ता क्लाई क्रासटो भी भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहते हैं कि नितिन गडकरी को बाहर का रास्ता इसलिए दिखा दिया गया है क्योंकि उनका कद लगातार बढ़ रहा था । उन्होंने ट्वीट करते हुए आगे लिखा कि जब आपका कद बढ़ जाता है और आप ऊंचे पद के लिए चुनौती पेश करने लगते हैं तो बीजेपी आपका कद छोटा कर देती है ।

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गडकरी की छवि ईमानदार और विकास करने वाली रही है

साल 2009 में महाराष्ट्र की राजनीति से निकलकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से लेकर अब तक नितिन गडकरी को एक मेहनती और ईमानदार नेता के रूप में पहचाना जाता है । जहां उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार में मिले सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालयों का जिम्मा बखूबी सम्भाला और किसी भी अन्य मंत्रालय से अधिक काम करके दिखाया वहीं उनकी छवि एक ईमानदार और बेबाक राय रखने वाले नेता की रही है ।

नितिन गडकरी खुद ही कहते हैं कि वह 20 % काम राजनीति के लिए जबकि 80 % काम सामाजिक कारणों के लिए करते हैं । उनकी यह सोच उनके काम पर भी नजर आती है और 2014 से लेकर अब तक उन्हें जो भी मंत्रालय दिया गया उसका कार्यभार उन्होंने बखूबी सम्भाला है । इतना ही नहीं नितिन गडकरी के काम की तारीफ विरोधी पार्टी के नेता भी करते हैं ।

मोदी-शाह से है वैचारिक मतभेद

नागपुर से आने वाले नितिन गडकरी के बारे में माना जाता है कि उनकी राजनीति स्पष्ट और विकास पसन्द है । जहां भाजपा के तमाम नेता साम्प्रदायिक बयान देते रहते हैं वहीं नितिन गडकरी को आज तक साम्प्रदायिक विवाद पैदा करने वाले बयान देते नहीं सुना गया । जहां नितिन गडकरी को भविष्य में प्रधानमंत्री पद के योग्य माना जा रहा है वहीं उनकी पीएम मोदी से दूरियां भी जगजाहिर हैं ।

सूत्रों के अनुसार नितिन गडकरी जब पहली बार साल 2009 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे तब उन्हें बीजेपी के सारे मुख्यमंत्री दिल्ली बधाई देने पहुंचे थे जबकि तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें बधाई देने नहीं आये थे ।

इतना ही नहीं नितिन गडकरी ने मोदी के कट्टर विरोधी रहे संजय जोशी को भी पार्टी में अहम पद दिलवाया था और उन्हें 2012 में यूपी का चुनाव प्रभारी बनाया था हालांकि इससे नाराज होकर तत्कालीन सीएम मोदी यूपी में चुनाव प्रचार करने नही गए थे । बाद में मोदी के दबाव के चलते संजय जोशी को इस्तीफा देना पड़ा था ।

वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी गडकरी के रिश्ते सामान्य नहीं रहे । जब नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब एक मामले में अमित शाह को अदालत ने गुजरात से बाहर जाने का आदेश दिया था । इसके बाद अमित शाह जब भी बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से मिलने दिल्ली आए तब उन्हें उनसे मिलने के लिए घण्टों इंतजार करना पड़ता था । धीरे धीरे जब मोदी और शाह का पार्टी में कद बढ़ता गया तो नितिन गडकरी का कद छोटा किया जाने लगा । संसदीय बोर्ड में गडकरी को शामिल न किया जाना इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है ।

स्पष्ट विचारों की कीमत चुकानी पड़ी गडकरी को

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नितिन गडकरी स्पष्ट विचारों के लिए जाने जाते हैं । हाल ही में नागपुर में उन्होंने कहा था कि महात्मा गांधी के समय राजनीति देश, विकास और समाज के लिए होती थी लेकिन अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए की जाती है । उन्होंने आगे कहा कि कभी कभी उनका मन होता है कि राजनीति छोड़ दें । बता दें कि लोगों का मानना है कि गडकरी भाजपा के उन नेताओं में नहीं हैं जो मोदी या शाह की हां में हां मिलाएं । वहीं नितिन गडकरी खुले विचारों के लिए भी जाने जाते हैं । बता दें कि जहां मोदी सहित भाजपा के अन्य नेता इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने और तमाम निर्णयों के लिए गलत ठहराते हुए उनकी आलोचना करते हैं वहीं गडकरी ने इंदिरा गांधी को एक पुरूष प्रधान समाज मे इतनी बड़ी नेता बनने के लिए साहसी महिला करार दिया था ।

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बता दें कि गडकरी पार्टी लाइन से इतर कह चुके हैं कि भारत मे लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए विपक्ष का जिंदा रहना जरूरी है । उन्होंने एक बयान में कहा था कि वह दिल से कामना करते हैं कि कांग्रेस मजबूत बनी रहे । जहां बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित पीएम मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम चला रहे हैं वहीं नितिन गडकरी का यह बयान पार्टी लाइन से हटकर माना जाता है ।

उन्होनें एक बार ये भी कहा था कि BJP किसी एक की नहीं बल्कि सारे कार्यकर्ताओं की पार्टी है और न तो यह पहले अकेले आडवाणी-अटल जी की पार्टी थी न ही अब मोदी-शाह की । बता दें कि नितिन गडकरी ने साल 2009 से 2013 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं और उनके दूसरे कार्यकाल को लेकर पार्टी का संविधान तक बदल दिया गया था ।

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