रेशम के कीड़ों (silkworm)से रेशम निकालने की कला प्राचीन काल से ही लोगों की जानकारी में थी लेकिन 4000 वर्ष पुरानी इस कला को चाइना के लोग छुपाए रखे थे । लेकिन जापानियों ने अपने गुप्तचरों को भेजकर इस का पता लगाया कि रेशम आखिर बनता कैसे है। इसके बाद रेशम बनाने का तरीका दुनिया के कई देशों को पता चल गया उनमें से एक भारत भी एक रेशम उत्पादक देश है।
रेशम के कीड़ों (silkworm) को शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है रेशम बनाने की एक प्रक्रिया होती है रेशम के कीड़ों को शहतूत वृक्षों की पत्तियों पर पाला जाता है जब ए 300 अंडे देते हैं तो चिपचिपा पदार्थ निकलता है जिससे अंडे पत्तियों पर चिपक जाते हैं। 10 से 14 दिनों के बाद इनमें से लारवा निकलता है जो देखने में इल्ली जैसा होता है इस लारवा का रंग क्रीम कलर का होता है या लारवा पत्तियों को खाकर जिंदा रहता है यह 30 से 40 दिन अंतर पर निर्मोचन की क्रिया करते हैं अंतिम लारवा ईस्टावा कहलाता है। यह पूर्ण वृद्धि कर लेता है और तूफान बदलने लगता है क्यों परेशान की सीट की वह अवस्था है जिसमें 21 खाना पीना छोड़ देता है उसके साथ चलना भी छोड़ देता है और लार से अपने चारों तरफ से अपने आपको अपने लार ग्रंथियों से लार निकाल के अपने आप को चारों तरफ से बंद कर लेता है और एक बोली जैसी रचना का निर्माण करता है जिसे को कोकून कहते हैं। रेशम का कीडा 3 से 4 दिन में वह कोकून का निर्माण कर लेता है एक कोकून से 1000 से 1500 मीटर तक का रेशम(silk) प्राप्त कर लिया जाता है।
यह लारवा इस लार के खोल में परिवर्तित होता रहता है और उसका कुछ दिनों में रूप परिवर्तन हो जाता है जब रेशम का कीड़ा (silkworm)पूर्ण विकसित हो जाता है और उसका रूप कुछ-कुछ तितली टाइप का हो जाता है लार से बने खोल को काटकर या कहो क्षतिग्रस्त कर के बाहर निकल जाता है। और रेशम के कीट (silkworm) की लार से बनाए खोल किसी काम का नहीं रहता इससे खोल के काटकर उड़ने से पहले ही कोकून को पेड़ से निकालकर उबलते पानी में डाला जाता है जब वह मुलायम हो जाता है तो उसे रेशम के धागे के रूप में चरखियो में इकट्ठा कर लिया जाता है।