कल रात ऐसा हुआ की मुझे ठीक से नींद ही नहीं आई। काफी देर तक मैं करवटें बदलती रही। नींदिंया रानी से मैंने कहा-आ आ आजा, आ आ आजा, आ आ आजा, आ आ आ! मगर वो कहीं तो कि ओर ही सैर- सपाटे पर निकली हुई थी। आखिर हार कर जब मैंने सोचना ही बंद कर दिया तो फिर वह खामोशी से, पीछे से आकर मुझसे आकर लिपट गई और जिंदगी की रेस में भागने वाले शरीर का वाहन कुछ घंटों के लिए शांत हो गया।
जरा सोचिए तो, चैन और सुकून की नींद एक ऐसी अमूल्य चीज है जो ना ही पैसे से खरीदी जा सकती है, ना ही किसी को भेंट दी जा सकती है। लेकिन है तो वह बहुत ही कीमती। एक दिन रात भर आप जाग लिए, तो अगले दो दिन तो बर्बाद ही। वैसे तो मार्केट में नींद की गोलियां धड़ल्ले से बिक रही हैं, मगर इनका डेली यूज तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही होता है और इस की बुरी लत भी लग जाती है।
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आखिर आज की फास्ट लाइफ में नींद ना आने की शिकायत इतनी आम क्यों होती जा रही है? एक तो हम हमारे शरीर को अधिक ही कष्ट देते नहीं। किसी मजदूर को देखो की जो तन तोड़ने वाली कड़ी मेहनत के बाद बड़े ही आराम से सड़क के किनारे गहरी नींद के मजे ले रहा है। जबकि नरम बिस्तर पर एसी वाले कमरे में, पोपटलाल सेठ छत को ताक रहे हैं। शायद अपने बिजनेस की समस्याओं से परेशान, या फिर परिवारवालों से।
वैसे तो प्रकृति के मुताबिक सूरज ढलने के बाद इंसान भी अपना कामकाज बंद कर देता था। लेकिन फिर बिजली इजाद हुई और फिर आया इंटरनेट का जमाना। एक जमाने में टीवी सीरियल का मतलब था, हफ्ते में एक बार एक नया एपिसोड। फिर हुआ रोज का एक एपिसोड। आज, आज तो सोने पर सुहागा ओटीटी के माध्यम पर कोई सीमा ही नहीं है। सीरियल बनता जा है लेज़ की चिप्स की तरह, बैठे रहो और चुगते रहो। कब सुबह के तीन बज गए, आपको पता ही नहीं चला।
आज की फास्ट ट्रैक पर चल रही लाइफ में हमें कोई भी बंदा ऐसा नहीं मिलता जो रात के दस बजे सो जाएं । अरे, दस तो जाने ही दिजिए मगर बारह बजे सोने वाले भी नहीं मिलेंगे। वजह, काम का स्ट्रेस । जी हां, हम तो ऐसे ही हो गए हैं जो काम के सिलसिले में अपनी नींद को गिरवी रखने को तैयार हैं। कुछ प्रोफेशंस में तो यह जरूरी भी है जैसे डॉक्टर हो या पुलिस या फिर ट्रेन और प्लेन के चालक। मगर ज्यादातर तो हम ही हैं जो अपनी मर्जी से अपना कॅरिअर आगे बढ़ाने के लिए नींद का बलिदान देते रहते हैं और देते ही रहते हैं। फिर चाहे वह ओवरसीज़ क्लाइंट की डिमांड हो, प्रोजेक्ट रिपोर्ट देना हो, प्रेजेंटेशन हो, मीटिंग हो या फिर सुबह की पहली फ्लाइट पकड़नी हो। बस जागते रहो, भागते रहो।
स्टूडेंट लाइफ में भी रातभर जागकर पढ़ने का पुराना रिवाज आम ही है। वैसे एन वक्त पर तो हमें वही काम आता है जो पहले से हमारे दिमाग में घुस गया हो। मगर फिर भी रट्टा मारने का लालच तो रहता ही है। साथ में कड़क चाय-कॉफी और मसाला मैगी का मजा आहा , वेली टैस्टी, अरे, इसे भला कौन भूल सकता है। जवानी के जोश में हर कोई मदहोश है और ईश्वर की कृपा से पास हो ही गए।
हम भी अनेक देवी देवताओं को मानते हैं उन्हें पूजते हैं। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि नींद की भी एक देवी हैं, निद्रा देवी, जिनका जिक्र रामायण में भी हुआ है। जब राम जी और सीतादेवी को वनवास हुआ, तो लक्ष्मण भी उनके साथ चल पड़े थे। उन्होंने अपने बड़े भाई की रक्षा करने का वचन लिया था, सो वह रात भर पहरा देते थे।
निद्रादेवी प्रकट हुईं, बोली, ये तो मेरा अनादर है। लक्ष्मण जी बोले, मैं तो सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहा हूं। अब करें तो क्या? आखिर समझौता ये हुआ कि लक्ष्मण जी के बदले उनकी पत्नी उर्मिला 14 साल तक नींद में रहेंगी, ताकि उनके पति पूरे 14 साल जाग सके। आज की भाषा में हम इसे हम ‘आउटसोर्सिंग’ का एक बढ़िया उदाहरण मानेंगे।
वैसे तो नींद के मामले में सबसे प्रसिद्ध है कुंभकरण जी। कड़ी तपस्या के बाद जब ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए तो कुंभकर्ण ने ‘इंद्रासन’ के बजाय ‘निद्रासन’ का वरदान मांग लिया। बड़ी ही मिन्नतों के बाद, ब्रह्माजी ने वरदान देते हुए कहा कि, भाई ठीक है, तुम छह महीने सोते रहोगे और छह महीने जागोगे। और सोने के अलावा कुंभकरण का एक ही ओर भी शौक था- वह था जमकर खाना।
आज तो अगर हम लक्ष्मण को ढूंढने निकले तो वह तो हमें ढूंढने से भी ना मिले, पर हां, एक बात तो है कि हर घर में कुंभकरण जरूर है। जो पचास बार अलार्म बजने पर भी नहीं जागता है। जो इतना चटोरा है कि अच्छे-खासे डिनर के बाद भी यही सोच रहा है, ‘स्विगी पर से क्या ऑडर करूं।’ आलसदेव की तपस्या करते-करते इनकी लाइफ में प्रकट होते हैं दो राक्षस, जिनके नाम हैं मोटापा और मधुमेह।
आखिर इस समस्या का क्या उपाय क्या है? एक मनोचिकित्सक ने तो बखूबी यह कहा है कि आप अपने मोबाइल को अलग कमरे में ही सुलाइए। छह-सात घंटे की सुखद नींद स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। रात के उल्लू नहीं, बल्कि सुबह की चहकती चिड़िया बनिए। गुडमॉर्निंग वाट्सएप को नहीं, सूर्य देवता को करिए।
(ये सारे विचार लेखिका के अपने हैं)