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savitribai phule: हमारे भारत में 18 वी सदी से लेकर 19 वी सदी तक भारतीय महिलाओं पर बहुत अत्याचार हुये और उन्हें बहुत ही यातनाएं दी जाती थी और भारत में इसी समय साहित्यिक सामाजिक और धार्मिक कार्यों का पुनर्जागरण हुआ। इस समय हमारे देश में कई वीरांगनाओं और महापुरुषों ने अपना अपना योगदान दिया। जिसमें से एक भारतीय नारी savitribai phule थी जिन्हें भारतीय प्रथम शिक्षिका का श्रेय भी दिया जाता है। savitribai phule का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र में हुआ था। इनके पिता का नाम खानदोजी नैवसे था और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। savitribai phule का विवाह ज्योति राव फुले के साथ कर दिया गया । जब इनकी शादी हुई थी तब इनकी बहुत छोटी उम्र थी। पुराने जमाने में छोटी उम्र में शादी कर दी जाती थी। यह भी एक प्रकार की बुराई है जिसमें लड़कियों की छोटी सी उम्र में ही, जब उन्हें खेलना खाना होता है उनकी शादी कर उन्हें बंधनों में बांधने दिया जाता था। savitribai phule ससुराल जाते समय अपने साथ एक किताब लेकर गए थी जो उन्हें किसी ने दी थी । ज्योति राव भी देश में हो रहे जात पात का भेदभाव मिटाना चाहते थे। उन्हें यह सब कुरीतियों को दूर करने के लिए एक ही हथियार मिला जिसका नाम शिक्षा था। जब savitribai phule ससुराल पहुंची उसके बाद की शिक्षा उनके पति ज्योति राव फुले ने पूर्ण की। हर रोज दिनभर कार्य करने के बाद शाम को सावित्रीबाई फुले को पढ़ाते थे। इन्होंने शिक्षा की शुरुआत अपने घर से ही 1948 को पूर्ण की। भेड़ाघाट में लड़कियों के स्कूल की स्थापना की। शुरुआत में इन्होंने अपने गांव के स्कूल में लड़कियों को शिक्षा देना शुरू किया।
savitribai phule ने गांव में स्कूल खोला था धीरे-धीरे वहां लड़कियों की संख्या बढ़ने लगी लेकिन कुछ बदमाश लोगों को यह अच्छा नहीं लगा कि लड़कियां पढ़ेगी। तो ऐसे धर्म के ठेकेदार लोगों ने लोगों को भड़काना शुरू कर दिया और कहा कि अपनी बच्चियों को पढ़ाई के लिए स्कूल ना भेजें। savitribai phule जब घर से स्कूल जाते थे तो लोग उन पर कीचड़ गोबर और जहां तक की भ्रष्टा उठा उठा कर उन्हें मारते थे। savitribai phule के कपड़े खराब हो जाते थे और वे ऐसे ही स्कूल चले जाते थे फिर उनके पति ज्योति राव फुले ने उन्हें दो साड़ी दी । जब एक साड़ी स्कूल जाते समय लोगों द्वारा कीचड़ और गोबर फेंके जाने पर खराब हो जाती थी। तब वह स्कूल जाकर उस साड़ी को बदल दिया करती थी और आते समय फिर गंदी साड़ी पहन लिया करती थी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सन 1851 में इन्होंने दोनों दंपतियों ने मिलकर पूना में 3 स्कूल खोले। इनके स्कूल और पढ़ाई का स्तर बहुत अच्छा था लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था कि पिछड़ी जाति की महिला खुद पढ़ ले और स्कूल खोल कर सभी को पढ़ाएं । कुछ लोगों को यह मंजूर नहीं था। उन्हें तरह-तरह के तरीकों से परेशान किया जाता था।
ज्योति राव को धमकाया गया। स्कूल बंद करने के लिए कहा गया लेकिन ज्योति राव ने अपने पिता की बात नहीं मानी और इस कारण ज्योतिराव के पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया लेकिन उन्होंने अपना काम नहीं छोड़ा । स्कूल जाते समय लोग उनका पीछा करते थे तो सावित्री बाई शालीनता से कहती थी मेरे भाइयों मैं तुम्हारी बहनों को पढ़ा रही हूं और तुम गोबर और कीचड़ मेरे ऊपर फेंक रहे हो । वह मेरे लिए फूलों के समान है । मैंने शिक्षा का बीड़ा उठाया है तुम्हारे लिए भी प्रार्थना करूंगी। ज्योति राव फुले और सावित्रीबाई फुले ने एक लड़का गोद लिया हुआ था जिसका नाम जसवंत था। जसवंत उन्हीं के विद्यालय में पढ़ा करता था। 1 दिन एक आदमी ने उनका रास्ता रोका और उन्हें भीड़ जमा हो गई तभी सावित्रीबाई ने जोर का तमाचा उसे मारा वह भाग गया, भीड़ भी तितर-बितर हो गई । 1852 के बीच में सावित्रीबाई फुले ने 18 स्कूल खोलें और शूद्र और अति शूद्रों को अंग्रेजी पढ़ने और सीखने के लिए प्रोत्साहित कर दिया करती थी। उस समय कई कुरीतियां बहुत खराब थी। लड़कियों के बचपन में ही शादी कर दिया करते थे और लड़कियां कम उम्र में विधवा हो जाती थी। तो लड़कियों के जबरन बाल मुडवा दिए जाते थे कि यह बदसूरत हो जाए और कोई उन पर अपनी नजर ना डालें। इस पर नायियों के लिए हड़ताल शुरू की गई ताकि इस कुप्रथा को दूर किया जा सके।
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savitribai phule ने एक महिला को आत्महत्या करने से रोका और अपने घर में शरण दी और उसके बालक को अपना नाम दिया उसे पढ़ाया लिखाया और डॉक्टर बन गया है। इन्होंने अपने जीवन में अनाथ बच्चों के लिए कई स्कूल खोले। इसके बाद सन 1890 में ज्योति राव फुले की मृत्यु हो गई। savitribai phule ने अपने पति की चिता को अग्नि दी थी। यह उस समय का क्रांतिकारी कदम था। ज्योति राव फुले ने सत्यशोधक नाम की संस्था बनाई थी। जिसे savitribai phule ने पूर्ण किया । सावित्रीबाई ने 23 साल की उम्र में 2 पुस्तकें लिखी काव्य फुले इनकी प्रमुख किताब थी । 1897 में पुणे में प्लेग रोग फैला तब उन्होंने अपने दत्तक पुत्र को बुलवाया और वहां पर एक हॉस्पिटल बनवाया। प्लेग मरीजों का इलाज शुरू हुआ उन्होंने मरीजों की खूब सेवा की । सावित्रीबाई फुले जानती थी की बीमारी संक्रामक है फिर भी सेवा भाव से लगी रही। तब से खुद ही 10 मार्च 1897 में इनका निधन हो गया । सावित्रीबाई फुले ने पिछड़ों, जाति पातिं, भेदभाव को मिटाने और नारी शिक्षा के लिए अपने जीवन भर संघर्ष करते-करते अपने प्राण निछावर कर दिए।