Second World War से जुड़ी कई कहानियों पर काफी कुछ लिखा जा चुका है। हॉलीवुड में एक से बढ़कर एक फिल्में Second World War की घटनाओं पर बन चुकी हैं। लेकिन आज हम आपको Second World War में शामिल एक ऐसे सैनिक की दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं जिसका देश जंग हार चुका था और उसने अपनी हार भी स्वीकार कर ली थी। लेकिन उस सैनिक ने हथियार डालने से मना कर दिया। वो एक नहीं दो नहीं बल्कि अगले 29 वर्षों तक घने जंगलों से ही दुश्मनों के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई जारी रखा।
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वर्ष 1939 में हिटलर की जर्मनी ने पोलैंड पर चढ़ाई करने के साथ ही दुनिया को Second World War के युद्ध की आग में धकेल दिया था। इस जंग की नींव तो यूरोप में रखी गई थी लेकिन इसका खात्मा Asia में जाकर हुआ। बात साल 1944 की है जब यूरोप में जर्मनी और उसके सहयोगी देश पस्त हो चुके थे मगर एशिया में जापान ने झंडा बुलंद रखा था। Japan ने America के पर्ल हार्बर पर बमबारी कर उसे युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया था।
America और Japan के बीच भीषण जंग छिड़ चुकी थी। जापान की तरफ बढ़ते अमेरिकी सैनिक को रोकने के लिए 26 दिसंबर 1944 को जापानी Imperial Army के सेकेंड लेफ्टिनेंट Hiru Onida को फिलीपींस में लुंबाग के छोटे से द्वीप पर भेजा गया। ओनीडा को उनके सीनियर कमांडर ने एक ही आदेश दिया था किसी भी सूरत में सरेंडर न कर युद्ध जारी रखने का। लुंबाग द्वीप पर अमेरिकी सेना ने पूरी ताकत के साथ हमला कर साल 1945 में उस पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में Onida की टीम के अधिकतर जापानी सैनिक या तो मारे गए या तो उन्होंने सरेंडर कर दिया।
लेकिन सेकेंड लेफ्टिनेंट Hiru Onida और उनके तीन साथी किसी तरह बचने में कामयाब रहे और जंगल में जाकर छिप गए। उसके बाद वहीं से ओनीडा और उनके साथियों ने अमेरिकी फौज फिलीपींस के सैनिक और उनका साथ दे रहे स्थानीय लोगों के विरूद्ध गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। 1945 में अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। जापान द्वारा सरेंडर किए जाने के बाद Second World War का खात्मा हो गया।
पूरी दुनिया World War खत्म होने के बाद सामान्य स्थिति की ओर आने की कोशिश में जुट गई थी। लेकिन जंगल में छिपे सेकेंड लेफ्टिनेंट Hiru Onida और उनके साथी मोर्चा संभाले हुए थे। दरअसल जंग के दौरान प्रशांत महासागर के द्वीपों में हजारों की संख्या में जापानी सैनिक जंगलों में छिपकर युद्ध जारी रखे हुए थे। उन्हें इस बात की भनक तक नहीं लगी थी कि युद्ध खत्म हो चुका है। ये सिपाही पहले की ही तरह लूटपाट और हमलों को अंजाम देते रहे।
इन हमलों को रोकने के लिए American Army ने सरेंडर कर चुके जापानी सैनिकों के साथ फिलिपींस की जंगलों में हजारों पर्चियां गिराईं और ऐलान किया कि जंग अब समाप्त हो चुका है लिहाजा सैनिकों को अब वापस घर लौट जाना चाहिए। अधिकांश सैनिकों ने पर्चियां बढ़कर वापसी का रूख कर लिया लेकिन Hiru Onida और उनके साथियों को मन नहीं बदला। उन्हें लगा कि ये अमेरिकी फौज की एक चाल है। इसलिए उन्होंने पर्चियों को जलाकर हमले जारी रखे।
Second World War, वर्ष 1959 आते-आते Hiru Onida की टीम भी थकने लगी थी। तीन में से एक सदस्य ने Surrender कर दिया जबकि एक अन्य सदस्य पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। एक दशक बाद ओनीडा की टीम का आखिरी साथी कोजुका भी लोकल पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। इन लोगों ने विश्वयुद्ध खत्म होने के 25 वर्षों के बाद तक लड़ाई जारी रखी थी। अब ओनीडा बिल्कुल जंगल में अकेला रह गया था। लेकिन फिर भी वो मोर्चे से हटने को तैयार नहीं था।
वर्ष 1972 में कोजुका की मौत की खबर जब जापान पहुंची तो खलबली मच गई। क्योंकि जापान की सरकार मान चुकी थी कि अब युद्ध के मैदान में उसका कोई सिपाही नहीं है। इसके बाद सेकेंड लेफ्टिनेंट Hiru Onida को लेकर जापान में चर्चा तेज हो गई। लोगों को लगा कि ओनीडा अभी भी देश के लिए युद्ध लड़ रहे हैं। इसके बाद जापानी सरकार ने एकबार फिर उन्हें खोजने के लिए एक खोजी दस्ते को जंगल में भेजा मगर वह खाली हाथ लौटा।
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Second World War, जापान सरकार के असफल प्रयास के बाद एक जापानी युवक Norio Suzuki ने सेकेंड लेफ्टिनेंट हीरू ओनीडा को खोजने की ठानी। वो रोमांच और खोज में काफी रूचि रखने वाला शख्स था। उसने फिलीपींस की जंगल में आखिरकार ओनीडा को खोज ही लिया। ओनीडा ने सुजुकी को बताया कि उसके कमांडर ने किसी भी कीमत पर सरेंडर न करने का आदेश दिया था।जिसका वह पालन कर रहा है। फिर Norio Suzuki ने उसे जापान के युद्ध की सच्चाई और जापानी लोगों की राय से अवगत कराया।तब जाकर उसे यकीन हुआ। मगर सच्चाई जानने के बावजूद Onida ने Surrender करने से इनकार कर दिया।
Second World War, Norio Suzuki ने ये बात जब जापान सरकार तक पहुंचाई तब सरकार ने उसे सैन्य अफसर की तलाश शुरू कर दी। जिसने सेकेंड लेफ्टिनेंट Hiru Onida को आदेश देकर लुबांग द्वीप रवाना किया था। वह सैन्य अफसर रिटायर होकर Bookseller का काम कर रहा था। जापानी सेना ने उसे फिलीपींस की जंगल में भेजा। उसके आदेश के बाद हीरू ओनीडा ने फिलीपींस की सरकार के सामने सरेंडर कर दिया। फिलीपींस सरकार ने War Rule के मुताबिक उसे माफी दे दी और स्वदेश वापस जाने दिया।
1974 में, जब 18 साल की उम्र में सेना में शामिल होने वाले ओनिडा जब गुरिल्ला वॉर छोड़कर जंगल से निकले तो उनकी उम्र 52 साल हो चुकी थी। जापान में उनका जबरदस्त स्वागत हुआ था। उन्हें रेडियो के तमाम कार्यक्रमों में वीरता के किस्से सुनाने के लिए बुलाया जाने लगा। Onida ने 2014 में 91 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।