Cheetah: वर्ष 1952 में Cheetah को भारत में आधिकारिक(Official) तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया गया था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर नामीबिया (Namibia) से 8 Cheetah को भारत लाया गया। इन चीतों को मध्य प्रदेश राज्य के श्योपुर के कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में रखा गया है। आने वाले समय में दक्षिण अफ्रीका से तीन चरणों में 80 Cheetah भारत लाए जाने का भी प्लान है।
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बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री( Bombay Natural History) सोसाइटी के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्यभानु सिंह Divyabhanu Singh ने एक किताब लिखी है। इस पुस्तक का नाम है “द एंड आफ ए ट्रेल- द चीता इन इंडिया”(The End of a Trail – The Cheetah in India) इस पुस्तक में उन्होंने बताया है कि अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में देश में चीतों की मौजूदगी देखी गई किसी राजा के शासनकाल में कम तो किसी के शासनकाल में अधिक चीते थे। कहा जाता है कि 1556 से लेकर 1605 तक शासन करने वाले मुगल बादशाह अकबर (Mughal emperor Akbar) के समय देश में 10 हजार से भी ज्यादा चीते थे।
यहां तक कहा जाता है कि अकबर के पास भी कई चीते थे। इनका इस्तेमाल वह काले हिरण और चिकारे के लिए करते थे। इसके बाद से चीतों को पालतू जानवर के रूप में राजाओं द्वारा पाला जाने लगा। मुगल सम्राट अकबर के बाद उसके बेटे जहांगीर (Jahangir) ने भी शिकार में सहारा लेने और शौकिया तौर पर रखने के लिए चीते पाले। चीतों के जरिये जहांगीर ने 400 से अधिक हिरण पकड़े थे।
लगातार बांधकर रखने पर चीतों की हालत ये हुई कि उनका भी गाय और बैल की जैसी स्थिति हो गई । राजाओं को यह बात पता नहीं थी कि चीते को बांधे जाने से प्रजनन बंद कर देते हैं। बस यहीं से ही इनकी आबादी कम होनी शुरू हो गई। कुछ रिपोर्ट की बात मानें तो,चीतों के शिकार किए जाने के अलावा उनका बांधकर रखा जाना उनके विलुप्त होने का प्रमुख कारणों में से एक रहा है।
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20 वीं सदी(20th century) तक आते-आते देश में चीतों की संख्या घटकर सैकड़ों में रह गई। इस कारण राजघरानों और राजाओं ने चीतों का आयात( Import )करना शुरू कर दिया। इन दिनों तक देश पर अंग्रेजों का शासन था। अंग्रेज चीतों से ज्यादा शेर के शिकार में दिलचस्पी रखते थे। उसका कारण यह था कि शेर ज्यादा खतरनाक होते हैं और इससे मनुष्यों को ज्यादा खतरा होता था।जबकि चीतों के साथ ऐसा नहीं था।
इसलिए अंग्रेजों ने चीतों का शिकार तो नहीं किया लेकिन चीतों के संरक्षण के लिए कोई कदम भी नहीं उठाया। फिर भी जहां चीते द्वारा मवेशियों को ज्यादा मारे जाने पर अंग्रेज इन पर इनाम रख देते। उन दिनों चीतों के बच्चे मारने पर 6 रुपये और वयस्क चीते को मारने पर 12 रुपये12 rupees भी बतौर इनाम मिला करते थे। लिहाजा धीरे-धीरे चीतों की प्रजाति गायब होती चली गई और चीते अतीत का हिस्सा बन गए।
कुछ राजाओं ने इन्हे अफ्रीकी देशों से भी आयात Import किया जिसमें 1918 से लेकर 1945 तक करीब 200 चीतों का आयात किया गया। 1914 में इंग्लैंड से आए विदेशी युगल दंपति विल फ्रायड Will Freud सवाई माधो सिंह द्वितीय के यहां मेहमान बनकर आए। उन्होंने चीतों को देखने की इच्छा जाहिर की। माधो सिंह ने बताया कि अब हमारे यहां चीते नहीं हैं। जयपुर से जाते समय विल फ्रायड ने महाराज से वादा किया कि वह उनके लिए इंग्लैंड से चीते भेजेंगे।
जयपुर फाउंडेशन के अनुसार इंग्लैंड में जाकर विल फ्रायड की मौत हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी ने अप्रैल 1921 में चीते के दो शावकों को जयपुर भेजा। कावस जदीन फर्म के जरिये चीतों के शावकों को जयपुर भेजा गया। समुद्री जहाज से शावक मुंबई पहुंचे और फिर उन्हें रेल से जयपुर लाया गया। पांच साल बाद एक चीते की मौत हो गई थी। दूसरे चीते को रामनिवास बाग के जंतुघर Animal house में रखा गया था।