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MLC Chunav-2022: एमएलसी चुनाव में भाजपा ने दलितों को नहीं दिया मौका…….?

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MLC Chunav-2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद विधान परिषद चुनाव की कवायद तेज हो गई है। और सभी राजनीतिक दल अपने-अपने कोटे से विधान परिषद भेजे जाने वाले प्रत्याशियों के नाम तय करने लगे हैं। ऐसे में प्रदेश का सबसे बड़ा दल भारतीय जनता पार्टी पीछे कैसे छूट सकता है, उसने भी अपनी एक सूची जारी की है। जिसका पूरा विश्लेषण हम आपको बताने वाले हैं।

कुल 36 सीटों पर होना है चुनाव

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इस प्रकरण पर आगे बात करने से पहले हम आपको यह बता दें, कि विधान परिषद के स्थानीय प्राधिकरण क्षेत्र की कुल 36 सीटों का चुनाव प्रस्तावित है, जिसके लिए सभी दल अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर रहे हैं।

भाजपा ने अपनाया 70-30 का फार्मूला

विधान परिषद स्थानीय प्राधिकरण क्षेत्र की 36 सीटों के चुनाव पर प्रत्याशियों का चयन करते हुए भाजपा ने 70-30 का फार्मूला अपनाया है, 70-30 के फार्मूले का अर्थ यह है, कि इस चुनाव में भाजपा ने 70% अपने पुराने कार्यकर्ताओं को ही विधान परिषद भेजने का फैसला किया है, जबकि 30% सीटें उन लोगों को दी है। जो दूसरे दल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए।

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इसमें कई धन बली और बाहुबलियों के नाम भी शामिल है। इस प्रकार विधान परिषद चुनाव में भाजपा 70-30 के फार्मूले को लेकर आगे बढ़ती हुई नजर आ रही।

अब तक घोषित किए 30 नाम

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क्योंकि कुल 36 सीटें हैं अतः 36 सीटों पर 36 प्रत्याशियों का नाम जारी होना चाहिए था। परंतु अभी तक की सूचना के मुताबिक भाजपा ने केवल 30 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए हैं। और ऐसा कहा जा रहा है। कि भाजपा जल्द ही शेष छह प्रत्याशियों के नाम की सार्वजनिक कर देगी।

एक भी दलित को नहीं मिला मौका

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अब तक जारी सूची के मूल्यांकन में जहां एक ओर 70-30 का फार्मूला नजर आता है। तो वहीं दूसरी ओर सबसे ज्यादा खटक ने वाली बात यह है। कि भाजपा ने इन 30 नामों में एक भी नाम दलित का नहीं है। लोग इसमें एक समुदाय विशेष की उपेक्षा करार दे रहे हैं।

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विधानसभा चुनाव में मिली थी, दलितों को जगह

यह विषय और भी ज्यादा प्रासंगिक इसलिए हो जाता है। क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दलित उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में स्थान दिया था, आपको बता दें, कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 84 आरक्षित सीटों के मुकाबले 85 दलित उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन विधान परिषद चुनाव के लिए अब तक जारी 30 प्रत्याशियों की लिस्ट में एक भी दलित चेहरा ना होना कई प्रश्न खड़े करता है।

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