Manik Saha
Manik Saha: त्रिपुरा भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मणिक साहा रविवार को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। वो त्रिपुरा के 11वें सीएम है। मणिक साहा ने 6 वर्ष पहले कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की थी। हालांकि राजधानी अगरतला स्थित राजभवन में शपथ ग्रहण कार्यक्रम आयोजित हुआ। इससे पहले भारतीय जनता पार्टी विधायक दल की बैठक में मणिक साहा को विधायक दल का नेता चुना गया था।
अगले वर्ष होने वाले त्रिपुरा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी आलाकमान ने मणिक साहा पर बड़ा दांव लगाया है। शनिवार की शाम को बिप्लव देव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से ही आनन-फानन में विधायक दल की बैठक बुलाई गई जिसमें सर्व सम्मानित मणिक साहा को विधायक दल का नेता नियुक्त किया गया।
इस पोस्ट में
बिप्लव देव को लेकर काफी वक्त से पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं था। कुछ भारतीय जनता पार्टी विधायक भी उनसे खफा बताए जा रहे थे। इसके अलावा भी बिप्लव देव के विवादित बयानों के चलते ही पार्टी की फजीहत होती रही है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने मणिक साहा को अहम जिम्मेदारी सौंपी है जो त्रिपुरा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष भी हैं।
त्रिपुरा के नए सीएम Manik Saha पेशे से डेंटिस्ट है। मणिक साहा ने इस वर्ष की शुरुआत में त्रिपुरा से एकमात्र राज्य सभा सीट जीती थी। वर्ष 2016 में वो कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे। वर्ष 2020 में उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। वर्ष 2018 में भाजपा ने 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 25 वर्ष पुराने कम्युनिस्ट शासन को समाप्त करते हुए शानदार जीत हासिल की थी।
वहीं पर अगर Manik Saha की बात करें तो वह भाजपा में शामिल होने के बाद से सीएम बनने वाले इस क्षेत्र के पूर्वोत्तर के चौथे पूर्व कांग्रेस नेता है। जो कि पहले कांग्रेस पार्टी में रह चुके हैं तथा बाद में भाजपा में रहते हुए मुख्यमंत्री बने। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू एवं मणिपुर के मुख्यमंत्री एंड एन बीरेन सिंह का नाम भी शामिल है। मणिक साहा को त्रिपुरा का नया सीएम बनाए जाने के बाद से विपक्ष ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह मानना है कि नेतृत्व में किए जा रहे परिवर्तनों को पार्टी ग्राउंड फीडबैक के विश्लेषण के आधार पर कर रही है।
बता दें कि पार्टी मुख्यमंत्रियों को बदले जाने के लिए कई कारकों को देखती है। जिसमें जमीन पर काम, संगठन को सही स्थिति में रखना तथा उस नेता की लोकप्रियता भी शामिल है। खुद 13 वर्ष तक गुजरात के सीएम का पद संभालने वाले पीएम नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्रियों को उनकी हिसाब से काम करने देने के पक्ष में है। चूंकि झारखंड विधानसभा चुनाव में हार मिली तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास के अपनी सीट के हारने के बाद से पार्टी को सत्ता परिवर्तन की जरूरत का एहसास हुआ। इसके पास से पूर्व नेता बाबूलाल मरांडी को वापस लाया गया।
इस स्कूल के मैडम को क्या तारीख है ये नही पता, देखिए कैसे पढ़ा रही हैं
Balwinder Singh के लिए पैसे जुटे, पहले भी सऊदी सरकार दो पंजाबियों का कर चुकी है सिर कलम
यह माना जा रहा है कि भाजपा ने त्रिपुरा में परोक्ष तौर पर सत्ता विरोधी लहर से पार पाने तथा पार्टी पदाधिकारियों के बीच किसी भी प्रकार की असंतोष को दूर करने की एक प्रयास के अंतर्गत मुख्यमंत्री बदलने का यह कदम उठाया है। पार्टी ने पहले भी कई सारे राज्यों में ये रणनीति अपनाई थी जो कि विफल रही। जबकि उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले सीएम बदलने का दांव सफल रहने के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने त्रिपुरा में भी इसी प्रकार के बदलाव का विकल्प चुना। अगले वर्ष की शुरुआत में चुनाव होने हैं।