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Election Commission भारत निर्वाचन आयोग एक स्थाई संवैधानिक निकाय है ।गठन और स्थापना हमारे भारतीय संविधान में निर्वाचन आयोग के बारे में भाग 15 के आर्टिकल 324 से 329 में दिया गया है। भारत में निस्पंदन निष्पक्ष और पारदर्शी शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए निर्वाचन आयोग की स्थापना की आवश्यकता पड़ी । इसलिए निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1951 को की गई। सन 1991 से 92 में भारत में पहली बार आम चुनाव हुए थे । 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है।
Election Commission पहले चुनाव आयोग निर्वाचन आयुक्त एक संसदीय था फिर 1993 के बाद निर्वाचन आयुक्त को 3 सदस्य कर दिया गया जिसमें जिनमें से एक चीफ निर्वाचन आयुक्त और दूर निर्वाचन आयुक्त पदस्थ कर दिए गए थे इस निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पूर्ण कार्यकाल 6 वर्ष का होता है यदि इन 6 वर्षों में निर्वाचन आयुक्त के पद पर पदस्थ व्यक्ति की उम्र 65 होती है तो उसको इस्तीफा देना पड़ता है चुनाव आयोग की सैलरी भारत के संचित निधि से प्राप्त होती हैं। चुनाव आयुक्त की सैलरी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के बराबर होती है।
(1) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का चुनाव करवाना ,तथा लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा, विधान परिषद के सदस्यों के चुनाव के कार्यों को निपटाना तथा चुनाव का जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की होती है।
(2) इसके अलावा चुनाव की तारीख निकालना और चुनावी खर्च की निगरानी रखने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की होती है।
(3)निर्वाचन आयोग का कार्य आचार संहिता लगाना और उसका पालन करवाना भी होता है।
(4) निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव करवाना इसी का काम है इसके अलावा मतदान पहचान पत्र तैयार करना तथा चुनाव चिन्हों का आवंटन करना निर्वाचन आयोग के द्वारा ही किया जाता है।
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निर्वाचन आयोग ने हाल ही में चुनाव के खर्च में बढ़ोतरी की है। बताया जा रहा है कि पिछले सालों से बढ़ी महंगाई के कारण अब पिछले धनराशि की सीमा ना काफी है इसलिए निर्वाचन आयोग ने चुनाव के खर्चे में और रुपए बढ़ा दिए हैं। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में संसदीय चुनाव खर्च की सीमा 7000000 से बढ़ाकर ₹9500000 कर दी गई है। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में सीमा बड़ा का 95 लाख रुपए की गई है। गोवा से कम अरुणाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए यह सीमा 54 लाख से बढ़ाकर 75 लाख कर दी है। बड़े राज्यों में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए वह सीमा 28 लाख से बढ़ाकर 40 लाख रुपए और छोटे राज्यों में 20 से 28 लाख रुपए कर दी गई है।
Election Commission का काम है चुनाव में पारदर्शिता बनाए रखना, निष्पक्ष चुनाव करवाना और चुनाव के खर्चे का हिसाब रखना लेकिन क्या यह हो पाता है। अगर हकीकत देखी जाए तो चुनाव आयोग अपना कार्य करने में पूर्णता विफल है। क्योंकि 40-50 लाख तो ग्राम पंचायत चुनाव में लोगों द्वारा खर्च कर दिए जाते हैं तथा विधानसभा चुनाव में पार्टियों द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं । मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है और जो पार्टी सत्ता में होती है वह तो और अधिक कैश का वितरण करती है । राजनीतिक पार्टियों वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए साड़ी, बर्तन, कैश आदि चीजों को दिखाकर वोट अपनी ओर आकर्षित करते हैं। किसी प्रकार की पारदर्शिता नहीं होती है। वास्तविकता में Election Commission चुनाव पारदर्शी चुनाव कराने में पूर्णता विफल है।