Darjeeling
अगर आप चाय के दीवाने हैं खासकर दार्जिलिंग के चाय के। अब आपको इस का लुफ्त उठाने के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। दार्जिलिंग चाय की शुरुआत फसल के दाम बढ़ गए हैं। घरेलू और विदेशी बाजारों से बेहतर मांग और अच्छी क्वालिटी के चलते इसके दाम और बढ़ गए हैं। अपने देश के लोग तो इस चाय का स्वाद भी नहीं चख पाते।
एक समय था जब दार्जिलिंग अपने मसालों के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन अब सिर्फ चाय के लिए दार्जिलिंग विश्व स्तर पर जाना जाता है। हर चाय उद्यान का अपना अपना इतिहास है। इसी तरह से प्रत्येक उद्यान की चाय की किस्म अलग-अलग होती हैं। दार्जिलिंग की पहाड़ी वादियों की स्वच्छ हवा और निर्मल आसमान पर बसे दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के मनोरम छटा को देखकर सैलानी एक बार आह भरे बिना रह नहीं सकते। दूर दूर तक फैली हरी चाय के खेत मानो जमीन पर हरी चादर फैली हो। यहां पर जब रोडोडेन्ड्रन व मेग्नोलिया के फूल खिलते हैं। तब यहां पर प्राकृतिक दृश्य में तो मान चार चांद लग जाते हैं। तथा यह पर्यटकों का ध्यान बखूबी अपनी तरफ आकर्षित करती है।
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कार्ट रोड के निर्माण के बाद करीब साल 1841 में ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी डॉ. क्याम्पवेल दार्जिलिंग आए। तथा उन्होंने यहां पर परीक्षण के तौर पर चाय की खेती शुरू की थी। करीब साल 1869 से ही इस क्षेत्र में सिन्कोना की खेती शुरू हुई। जिससे कुनाइन औषधि तैयार की जाने लगी थी। दार्जिलिंग 1878 में लायड वोटानिकल गार्डन स्थापित हुआ। तथा वर्च हिल पार्क 1889 में स्थापित किया गया था। वर्तमान समय में दार्जिलिंग में तथा इसके आसपास लगभग 87 चाय उद्यान है।
हम दार्जिलिंग की बात करें और चाय की बात ना हो तो ऐसा हो ही नहीं सकता। वो इसलिए कि यहां की एक चाय बागान की एक किलोग्राम चाय की कीमत 10 ग्राम सोने के दाम के डबल से भी ज्यादा है। यानी यहां के इस चाय की चुस्की काफी महंगी है। आप इसको सुनकर हैरान हो गए होंगे लेकिन सच तो यही है। हम बात कर रहे हैं सिलीगुड़ी से 75 किलोमीटर दूर दार्जिलिंग के मकईबारी टी स्टेटस की। इस चाय बागान में तैयार सिल्वर टिप्स इंपीरियल चाय की कीमत प्रति किलो 1850 डॉलर यानी 1.12 लाख रुपए है। चूंकि ये भी सही है कि यह सब भारतीयों को नसीब नहीं होती। ब्रिटेन का शाही परिवार इस चाय का पहला ग्राहक है। उनकी खरीद से बचे हुए चाय को जापान और अमेरिका के अरबपतियों के हाथों एडवांस में बेच दिया जाता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ब्रिटिश दौरे पर वहां की महारानी एलिजाबेथ को चाय की एक पैकेट गिफ्ट की थी।
दार्जिलिंग में सबसे पुरानी चाय की फैक्ट्रियों में मकईबारी का नाम सुमार है। ये चाय बागान 1859 में जेसी बनर्जी के द्वारा तैयार किया गया था। तथा आज भी उनके परिवार यानी राजा बनर्जी की और पत्रिक संपत्ति है। यहां इस दुर्लभ किस्म की चाय यानी सिल्वर टिप्स इंपीरियल अकेली पत्ती तोड़ने से लेकर बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग किस्म की है। यहां पर एक साल में जितनी भी पूर्णिमा की रात होती है। उसी रात की रोशनी में इस चाय को तैयार करने के लिए पत्तियों को तोड़ा जाता है। इसके लिए अलग से एक टीम बनाई गई है। जो गीत संगीत के साथ ही साथ वैदिक मंत्रों के साथ पतियों को तोड़ते हैं। चाय बनाने के लिए रात का ही इस्तेमाल होता है। चाय की पत्ती पर पत्ती तोड़ने से बनाने तक सूर्य की रोशनी नहीं पडने दी जाती। इसलिए साल में मात्र 50 से 60 किलो चाय तैयार होता है।