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Climate change: तेजी से हो रहे Climate change का मुख्य कारण तो मनुष्य ही है। जिस प्रकार मनुष्य इन दिनों वन ऊर्जा का तेजी से दोहन कर रहा है। यह खुद उसके लिए ही विनाश का कारण है । कार्बन को सोखने के लिए पेड़ नहीं है और बढ़ाने के लिए अधिक जनसंख्या है तो इस असंतुलन से कुछ बुरा प्रभाव तो पड़ेगा ही। मनुष्य द्वारा निर्मित कई प्रकार की गैसें जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही हैं । जिसके कारण सूर्य की सीधी किरणें पृथ्वी के धरातल पर पढ़ती हैं और चादर को तेजी से पिघला देती हैं। जिसके कारण महासागरों का जलस्तर बढ़ता जा रहा है और फिर तटीय इलाकों में रहने वाले लोग परेशान हो रहे हैं।
अमेरिका के कैलासिका राज्य में सुदूर कस्बे में रहने वाले लोग समुद्र के जल स्तर बढ़ने से बहुत परेशान हैं। उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है Climate change होने के कारण दुनिया का तापमान तेजी से बढ़ने के कारण ग्लेशियर या बर्फ के पिघलने से समुद्र में तेजी से पानी का स्तर बढ़ता जा रहा है । इसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो समुद्र के तट के निकट रहते थे उनका घर पानी में डूब चुका है । वहां के एक व्यक्ति ने बताया कि उसका घर समुद्र तट से 6 मीटर की दूरी पर था लेकिन अब वह डूब चुका है। वहां पर अब पानी ही पानी है। Climate change से यहां पर सबसे पहले स्मारक नाम का कस्बा सबसे पहले प्रभावित हुआ और उसे बहुत ही खराब स्थिति से गुजरना पड़ा। Climate change से तापमान की अधिकता होने से तटीय इलाके पानी में समा गए ।
यहां के लोगों का रोजी-रोटी का जरिया भी खत्म होने लगा है। अब इन्हें यहां पर मछलियां और बाकी जीव जंतु नहीं मिलते जो इन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है । पानी से सभी रास्ते, लाइने, पानी से खत्म हो चुकी है बस एकमात्र जरिया हवाई पट्टी बनी है जो बाकी और शहरों को जोड़ने के लिए एक मात्र साधन बची है। यहां के लोग कह रहे हैं कि यदि हवाई पट्टी रनवे पर पानी आ गया तो उस पर भी आने का खतरा है। यहां आपातकालीन स्थिति में इसी हवाई पट्टी रनवे का इस्तेमाल करते हैं यहां के लोगों ने योजना बनाई है कि यहां से कहीं और जाकर अपना निवास स्थान तैयार किया जाए और इन्हें इसके लिए भारी रकम की जरूरत पड़ेगी । प्रशांत महासागर के कुछ तटीय इलाकों में बताया गया कि समुद्र का जल स्तर बहुत तेजी से बढ़ रहा है । यहां की मुख्यमंत्री फियामे नाओमी मताफा समोओ की प्रथम महिला मुख्यमंत्री हैं । जिस प्रकार जलवायु परिवर्तन हो रहा है अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक समुद्र का जलस्तर 15 सेंटीमीटर तक बढ़ने की संभावना बहुत ही ज्यादा है। प्रशांत महासागर में समोआ का पड़ोसी द्वीप फिजी द्वीप इस मामले में सबसे आगे है। जिसने क्लाइमेट फ्रीलुकेशन फंड की शुरुआत की है यहां का पहला गांव तुकोराकी था जो तट पर नहीं था। इसे दूसरे स्थान पर निवास के लिए स्थाई निवास दिया गया है।
तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को रोजी रोटी और निवास के लिए परेशान होना पड़ रहा है। घर ना होने के कारण उन्हें कई दिनों तक अपना घर गुफाओं को बनाकर दिन व्यतीत करने पड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिदिन हर व्यक्ति को अपना घर मजबूरन छोड़ना पड़ रहा है ।समोआ द्वीप की 97% आबादी पर समुद्र का के बढ़ते जलस्तर का खतरा बना हुआ है वैज्ञानिकों ने बताया है कि आने वाले समय के लिए यह खतरे की घंटी है।
मनुष्य वर्तमान के सुख और प्रगति के लिए जिस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है वह अपने लिए ही लिए गड्ढा खोद रहा है । और भविष्य में मनुष्य खुद ही इस गड्ढे में गिरेगा । समुद्र के बढ़ते जलस्तर से तटीय भाग डूब जाएंगे और जो देश द्वीपों पर बसे हैं उनका भी अस्तित्व आने वाले समय में मिटने वाला है समुद्र के जलस्तर बढ़ने से भूमि कारण होगा और आर्द्रभूमि जलमग्न हो जाएंगे जय विविधता आवास का विनाश होगा जलवायु परिवर्तन के कारण जलस्तर बढ़ने से खतरनाक तूफान वृद्धि होगी जिससे बड़ी आबादी और जन्मदिन की अपार क्षति होगी।
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Climate change की इस बैक से वैश्विक समस्या से निपटने के लिए कई प्रकार के सम्मेलन आयोजित किए जाते रहे हैं। लेकिन यह केवल दिखावा मात्र है क्योंकि यदि सच में कुछ करना होता जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए तो अभी तक तो कुछ ना कुछ कर ही दिया होता। Climate change से निपटने के लिए कुछ उपाय कर लिए गए होते और Climate change ज्यादा नहीं तो कुछ हद तक ही नियंत्रण में होता।
इससे भावी समस्या से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन से सौर ऊर्जा जैसे स्वच्छ विकल्पों को अपनाना चाहिए और वनों का अनुकूलतम उपयोग करना चाहिए साथ में वृक्षारोपण को भी बढ़ावा देना चाहिए। कार्बन ब्लूप्रिंट को कम करने के लिए सब्सिडी देना चाहिए वनों की कटाई पर सख्त रोक लगानी चाहिए। पर्यावरण से संबंधित समस्याओं का एकमात्र और सटीक इलाज वृक्षारोपण और जनसंख्या नियंत्रण है। यदि इन दो बातों पर दुनिया ने ध्यान दे लिया तो करोड़ों के सम्मेलनों की जरूरत नहीं पड़ेगी।