क्या महिलाओं के घर के अंदर रहने और फुल कपड़े पहनने से महिलाओं पर अत्याचार बंद हो जाएंगे

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हमारे देश के बड़े-बड़े दिग्गज नेता और वकील लड़कियों को सलाह देते नहीं थकते की लड़कियों को समय-असमय घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। लेकिन लड़कियों के साथ तो बलात्कार जैसी घटनाएं दिनदहाड़े और घर में भी हो जाते हैं। कहीं पर राह चलते लड़की को किडनैप कर लिया जाता है और कहीं नकिता जैसी जाने कितनी लड़कियां बीच सड़क पर मार दी जाती हैं।

इस बात का खंडन हाल में हुई घटनाएं करती हैं दो लड़कियां स्कूल से आकर पास में लगे हैंडपंप पर नहाने गई जब बहुत देर हो गई और लड़कियां घर वापस नहीं आई तो घरवालों और पड़ोसियों ने तलाश शुरू कर दी । महज 8 से 10 साल उम्र की यह लड़कियां घर से 1 किलोमीटर दूर एक खेत में पड़ी मिली । जिनमें से एक लड़की की मौत हो गई और दूसरी लड़की के दांत टूटे हुए थे और खून निकला हुआ था ये दिन में हुई घटना है और घर की ही घटना है,

उन्नाव जिले में हाल ही में हुई घटना जो दिन के समय में ही हुई है।तीन चचेरी बहनें दिन में 3:00 बजे खेत पर घास लेने गई थी उनमें से एक लड़की से एक लड़का एक तरफा प्रेम करता था लड़की के इनकार करने पर लड़का आग बबूला हो गया और लड़कियों की पानी की बोतल में जहर मिला दिया और उस पानी का सेवन तीनों लड़कियों ने कर लिया जिनमें से दो लड़कियों की मौत और एक की हालत गंभीर बताई गई है। इन घटनाओं में लड़कियों को दोष नहीं दे सकते क्योंकि लड़के की बात ना मानने पर लडके ने इस घटना को अंजाम दिया।

तीसरी घटना उत्तर प्रदेश के जिला हाथरस की है जहां एक लड़की से छेड़छाड़ करने वाले की रिपोर्ट लोकल पुलिस थाने में एक पिता द्वारा की गई इस बात से आगबबूला हुए उस व्यक्ति ने खेत पर काम कर रहे लड़की के पिता को गोलियों से छलनी कर दिया।सोचिए उस बेटी पर क्या गुजरी होगी जब उसके ही सामने, उसी के कारण पिता पर गोलियां चल रही होंगी।

जाहिर सी बात है की महिलाओं पर अत्याचार समय असमय बाहर निकलने या छोटे कपड़े पहनने से नहीं होते बल्कि यह समाज में छुपे हुए उन अत्याचारीयों की गिरी हुई मानसिकता जो महिलाओं को एक भोग की वस्तु समझते हैं, घटिया सोच के कारण होते हैं।

उपर्युक्त घटनाओं से यह साफ पता चलता है कि इनमें महिलाओं को सुधरने की आवश्यकता नहीं बल्कि उन लोगों को अपनी नीच मानसिकता सुधारने की आवश्यकता है जो महिलाओं को एक रबड़ की गुड़िया समझते हैं ।

एडवोकेट मनोहर लाल शर्मा ने न्यूजलॉन्ड्री के एक पत्रकार से कहा कि यदि  ” मिठाई को खुले में रख देंगे तो मक्खियां तो भिनकेगी ही”। तो इन बुद्धिजीवियों को सुधरने की आवश्यकता है कि लड़कियां मिठाई नहीं है। लड़कियां लड़कियां हैं, इंसान है जो सभी प्रकार की भावनाएं रखतीं हैं उनके अंदर भी जान हैं। मिठाई खाने वाली चीज है लड़कियां खाने वाली चीज नहीं है। समाज में रहने वाले लोगों को समझना पड़ेगा।

निर्भया केस में निर्भया के दोषियों के तरफ से केस लड़ने वाले वकील एपी सिंह ने कहा कि रेप की वजह लड़कियों की कपड़े होते हैं।और हमारे समाज में लड़कियों के पहनावे पर कई प्रकार की टिप्पणियां की जाती हैं। तो इन बुद्धिजीवियों को जवाब देना चाहिए की आसिफा, प्रियंका रेड्डी ,हाथरस की गुड़िया और निर्भया ने ऐसे कौन से खराब कपड़े पहने थे जो उनके साथ इतनी बर्बरता की गई।

3 महीने से 10 साल की वह लड़कियां कौन से ऐसे खराब कपड़े पहने थी जो उनको रेप करने के बाद मौत के घाट उतार दिया गया।

क्या इन घटनाओं को रोकने के लिए एक ही रास्ता दिखाई दे रहा है कि लड़कियों को घर में रहना चाहिए। असमय बाहर नहीं निकलना चाहिए। फुल कपड़े पहनना चाहिए। क्या सूट और साड़ी पहनी हुई महिलाओं पर अत्याचार नहीं हो रहे हैं। सभी अपने आप से पूछिए क्या इतना करने से महिलाओं पर अत्याचार कम हो जाएंगे फिर उन घटनाओं का क्या जो न्यूज़ चैनलों पर छाए रहते हैं कि घर में घुसकर लड़की से गैंगरेप और हत्या।

क्या महिलाओं पर बंदिशें लगाने से ए अत्याचार कम हो जाएंगे क्या कोई पूरे विश्वास से कह सकता है कि घर में महिलाएं सुरक्षित रहेंगी।

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