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सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं , क्या यह परम सत्य है

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सत्य परेशान हो सकता है पर पराजित नहीं यह वाक्य हमारी धर्म पुस्तकों में लिखा मिल जाएगा और हम बचपन से ही इस बात को सुनते आए हैं ।लेकिन बात यह है कि क्या वर्तमान में हम दावे से कह सकते हैं कि हम सत्य है तो पराजित नहीं होंगे।

जरा ऐसे लोगों की बात सोचिए जो जेल के अंदर जी रहे हैं यह आश लगाए कि कभी ना कभी बाहर निकलेंगे और अपनों से मिलेंगे। यह ऐसे पीड़ित अति पीड़ित लोगों की बात है जो बिना अपराध किए ही अपनी जिंदगी का बहुमूल्य समय जेल में चारदीवारी में बिता देते हैं। ऐसे लोगों को न्याय मिलता नहीं है या फिर ऐसा न्याय मिलता है जो अन्याय से भी बत्तर होता है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के विष्णु तिवारी जेल से बाहर आए उन्हें रेप के झूठे केस में फसाया गया था । विष्णु तिवारी 20 साल तक जेल के अंदर रहे और बाहर उनकी दुनिया उजड़ गई , 20 साल में उनके माता-पिता दो भाइयों की मृत्यु हो गई। यह केवल एक विष्णु तिवारी की बात नहीं है ऐसे जाने कितने विष्णु तिवारी हैं जो बिना किसी गुनाह है के सजाएं काट रहे हैं। और इन निर्दोष लोगों की कोई सुनवाई नहीं होतीं जेलों में कई कैदी बेगुनाह भरे पड़े हैं लेकिन उनकी आवाज सुनने के लिए कोई नहीं है।

विष्णु तिवारी

आपका विश्वास इस बात से उठ जाएगा कि सत्य पराजित नहीं होता।इस कलयुग में तो सत्य भी फर्जी हो गया है और सत्य से भी ज्यादा झूठ का दबदबा चल रहा है।कहीं ना कहीं यह हमारे सिस्टम और न्यायिक व्यवस्था की भी कमी है इस कमी को सुधारने की जरूरत है।

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