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Success Story: कम्पनी होने जा रही थी दिवालिया पर ‘कचरे’ ने बनाया करोड़पति, आज हैं 2000 करोड़ का टर्नओवर

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Success Story: कहते हैं किस्मत भी उन्ही का साथ देती है जो लगन और मेहनत के साथ कर्म करते रहते हैं । निष्ठा के साथ की गई मेहनत एक न एक दिन सुखद परिणाम लाती है और बात जब ऊंचे उद्देश्यों की हो तो रिस्क लेना तो बनता है । कुछ ऐसा ही मानना है ग्रैविटा इंडिया के संस्थापक रजत अग्रवाल का । जयपुर निवासी रजत ने जीवन में इतने उतार चढ़ाव देखे और एक आम व्यक्ति से सफलता के शिखर पर पहुंचे । आज उनकी कम्पनी के भारत सहित अफ्रीका,उत्तरी अमेरिका के 13 देशों में 17 रिसाइक्लिंग प्लांट हैं।

कम्पनी का टर्नओवर लगभग 2100 करोड़ हो चुका है जबकि इस चालू वित्त वर्ष में कम्पनी 140 करोड़ का मुनाफा कमाने की ओर अग्रसर है। ग्रैविटा इंडिया के मालिक रजत अग्रवाल ने बुरे दिन भी देखे हैं और एक वक्त में वह दिवालिया होने के कगार पर भी आ चुके थे ।

इंजीनियरिंग की डिग्री ली पर मन लगा बिजनेस में

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जयपुर में पले बढ़े रजत अग्रवाल की ज्यादातर शिक्षा स्कूलों से ही हुई । स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करने वाले उनके पिता महावीर प्रसाद का तबादला होता रहता था जिससे रजत और उनके परिवार को काफी दिक्कतें होती थीं । 1989 में एमएनआईटी जयपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री रजत ने भले ही ले ली थी पर वह जानते थे कि वह 9-5 की नौकरी के लिए नहीं बने

यही वजह थी कि पढ़ाई के दौरान परिवार से हॉस्टल में रहने वाले रजत एक बार माता-पिता से मिलने झालावाड़ गए जहां पर उनके पिता की पोस्टिंग बतौर स्वास्थ्य एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी की थी । यहां उन्होंने अपने मन की बात पिता से कही और उन्हें खेती योग्य जमीन का एक बड़ा टुकड़ा खरीदने के लिए मनाया। हालांकि उनके विचार को पिता ने खारिज कर दिया।

सब्जी की खेती बना पहला व्यवसाय

रजत उस वक्त 2nd ईयर में थे। पर रजत ने हार नहीं मानी और आखिरकार उन्होंने माता- पिता को जमीन खरीदने के लिए मना लिया । डिग्गी मालपुरा रोड पर एक लाख रुपये में मां के नाम खेती योग्य 20 एकड़ जमीन खरीदी गई । रजत को तो जैसे पंख लग गए। यहां करीब 35 बीघे उर्वर जमीन में वह सब्जी की खेती करने लगे । वह इसके लिए बीज खरीदने और खेती के वैज्ञानिक तरीकों को सीखने दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च जाते थे।

रजत बताते हैं- मैंने उस साल खेती में 1.35 लाख जबकि उसके अगले साल करीब पौने 2 लाख की सब्जियां बेचीं । खेती में मिली सफलता ने उन्हें आत्मविश्वास दिया और अर्जित धन से 10 हॉलिस्टन गायों को खरीदकर एक डेयरी फार्म शुरू कर दिया ।

दो झटकों से कम्पनी पहुंची दिवालिया होने की कगार पर

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बिजनेस की बारीकियां सीखने के लिए रजत ने एल एंड टी( लार्सन एंड टर्बो) में नौकरी की । दरअसल उन्ही दिनों न्यूजपेपर में विज्ञापन देखकर उन्होंने एल एंड टी में अप्लाई कर दिया । इंटरव्यू में जब इंजीनियरिंग के साथ एमबीए डिग्री न होने पर उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने बेझिझक अपने खेती के व्यवसाय, उससे हुए लाभ के बारे में बताया जिससे उन्हें आखिर नौकरी मिल गयी । हालांकि नौकरी में उनका मन नहीं लगा। इसी बीच 1995 मे आँचल से उनकी शादी हो गयी । आँचल जयपुर में ही भवनों को अपनी शिल्प और कला से संवारने का काम करती हैं ।

Success Story, 1996 में रजत ने भारत मे शीशे की कमी को देखते हुए रिसाकलिंग प्लांट लगाने का निर्णय किया पर उनका यह निर्णय तब घातक साबित हुआ जब सरकार ने शीशे के ढलान सम्बंधित नीतियां बदल दीं और आयात पर पाबंदी लगा दी । झटका बड़ा था पर इसके बाद भी रजत ने हार नहीं मानी और शीशा ढलान में उपयुक्त होने वाला लेड केमिकल बनाने लगे पर किस्मत यहां भी बदगुमान रही और सरकार ने नीतियां बदलते हुए आयात पर टैक्स में बदलाव कर दिया जिससे उत्पाद महंगा हो गया । कम्पनी इन दोनों झटकों को झेल नहीं पाई और दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई ।

सिंगापुर में कचरे के प्लांट में की नौकरी

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Success Story of Rajat Agrwal, कर्ज के बोझ तले दबी कम्पनी को उबारने के लिए रजत 1999 में सिंगापुर चले गए और वहां कबाड़ का व्यापार करने वाली कंपनी में नौकरी कर ली । कुछ समय बाद रजत ने श्रीलंका में पार्टनरशिप में रिसाइक्लिंग प्लांट लगाया और 2004 में अपने हिस्से की साझेदारी बेचकर अपनी देनदारी चुकाई । यही नहीं उन्होंने बचे पैसे को इथियोपिया में भी निवेश किया । 2006 में ग्रैविटा कर्ज से बाहर निकल आयी । इस तरह से झटकों से उबरते हुए रजत ने एक के बाद एक 13 प्लांट लगा दिए । उनका कारोबार अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका तक फैला हुआ है और 17 देशों में वह करीब 3500 लोगों को नौकरी दे रहे हैं ।

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