हमारे देश में ऐसे लोग हैं जिनके आगे सारे देश के नागरिकों को नतमस्तक होना चाहिए। यह लोग कोई अधिकारी, नेता, अभिनेता या बिजनेसमैन नहीं है। बल्कि खेती करने वाली, फल बेचने वाले, लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले, आम साधारण लोग हैं । लेकिन इनका कद किसी भी अधिकारी ,नेता ,अभिनेता ,बिजनेसमैन अरबपति से भी कहीं ज्यादा बढ़ा है। इन्होंने ऐसा काम कर दिखाया जो कोई अरब- खरबपति या कोई राज्य सरकारें नहीं कर पाते हैं।
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हजाब्बा भारत के साधारण वेशभूषा में असाधारण व्यक्ति हैं।हजाब्बा बेंगलुरु से 350 किलोमीटर दूरी पर स्थित न्यूपाडुकू गांव के निवासी हैं। हजाब्बा एक साधारण फल बेचने वाले व्यक्ति हैं। जो दिन का ₹150 कमाते थे। और आज उन्हें पदम भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हजाब्बा ने अपने फलों की छोटी सी दुकान की जमा पूंजी से अपने गांव में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय खोला। वर्ष 2000 तक हजाब्बा के गांव में एक भी स्कूल नहीं था। हजाब्बा ने गांव के स्थानीय मस्जिद में स्कूल खोला । लेकिन जब स्कूल में बच्चों की संख्या और अधिक हुई तो उन्हें और जमीन की आवश्यकता हुई । हजाब्बा ने कर्ज लिया और अपनी फलों की छोटी सी दुकान की जमा पूंजी से स्कूल की नई इमारत का काम शुरू कर दिया। हजाब्बा की लगन को देखकर बाकी लोग भी हजाब्बा की मदद करने लगे।
हजाब्बा की लगन और इस कारनामे को स्थानीय अखबार ने अपने पृष्ठ पर जगह दी । इसके बाद सरकार ने हजाब्बा को ₹100000 का इनाम दिया। सरकार के इनाम देने के बाद हजाब्बा की मदद के लिए लोग आगे आने लगे। और आर्थिक सहायता भी देने लगे। आज हजाब्बा की हजाराें लोग मदद कर चुके हैं। और हजाब्बा को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। और हाल ही में पदम भूषण सम्मान से हजाब्बा को सम्मानित किया गया है।
जब हजाब्बा से पूछा गया कि उन्हें स्कूल खोलने की प्रेरणा कहां से मिली तो हजाब्बा ने विश्वसनीय चैनल बीबीसी को बताया कि –
” एक बार एक विदेशी ने मुझसे एक फल का अंग्रेजी नाम पूछा तब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मैं निरक्षर हूं। मुझे नहीं पता था कि इसका क्या मतलब है। तब मुझे एक ख्याल आया कि गांव में एक प्राइमरी स्कूल होना चाहिए ताकि हमारे गांव के बच्चों को कभी उस स्थिति से गुजरना ना पड़े, जिससे मैं गुजरा हूं।” इस निश्चय के साथ हजाब्बा आगे बढ़े। उनके मार्ग में अनेक अनेक कठिनाइयां आई। उन्हें कर्ज तक लेना पड़ गया । लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी ।कर्ज लिया स्कूल की इमारत बनाने की शुरुआत कर दी और फिर आगे का सफर तय किया।