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राष्ट्रपिता Mahatma Gandhi के वर्धा काल का लिखा जा रहा है नया इतिहास, गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को मिली जिम्मेदारी

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Mahatma Gandhi: राष्ट्रीय पिता महात्मा गांधी के वर्धा काल का एक नया इतिहास अब आएगा सामने बहुत ही जल्द इस पुस्तक को तैयार किया जाएगा लोगों तक एक नए तरीके से गांधी जी का लिखा वर्धा काल का इतिहास सबके सामने आएगा

गोरखपुर के विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के आचार्य व आईसीएचआर के सदस्य प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी को गांधीजी के वर्धा काल की इतिहास को समृद्ध करने की जिम्मेदारी मिली है उनकी टीम वर्धा के विभिन्न पुस्तकालय और आश्रमों में रखे गुजराती एवं मराठी भाषा में लिखे गए लेखकों को खंगाल रही है

अहिंसात्मक प्रतिरोध करने वाले महात्मा गांधी जब पहुंचे वर्धा तो बदल गया उनका नजरिया

जीवन भर Mahatma Gandhi अहिंसात्मक प्रतिरोध करने वाले जब पहुंचे वर्धा महात्मा गांधी भी क्रांतिकारी सोचने लगे थे वर्धा आश्रम में ही हुआ था भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव गांधी जी के इस नजरिए की पुष्टि वर्धा ही है जहां पर गांधी जी ने यह स्वीकार किया था कि मुस्लिम लीग संप्रदायिक का की भाषा में बात करती हैं वर्धा में ही महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का विरोध चरम सीमा पर पहुंचा था और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्वतंत्रता की लड़ाई निर्णायक लड़ाई के लिए विदेशी की राह पकड़नी पड़ी थी,

इन अनछुए पहलुओं को सामने लाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय के सहयोग से आईसीएचआर इंडियन काउंसलिंग ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च नए सिरे से गांधी के वर्धा काल 1936- 1942 का इतिहास लिखा रहा है

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प्रोफेसर हिमांशु ने बनाई टीम शोधार्थियों के साथ

इस पुस्तक को लिखने की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के आचार्य और आईसीएचआर प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी को दी गई प्रोफेसर हिमांशु को 3 वर्ष का समय दिया गया है प्रोफेसर हिमांशु ने दो शोधार्थीयो के साथ अपनी टीम बनाई इसके लिए वर्धा में एक कार्यक्रम स्थापित कर अध्ययन का शुरुआत की जा चुकी है प्रोफेसर हिमांशु और उनके साथ उनकी टीम वर्धा के विभिन्न पुस्तकें रखी हुई आश्रम में गुजरात एवं मराठी रखी हुई पुस्तकों को प्रोफेसर हिमांशु और उनकी टीम खंगाल रहे हैं और कुछ नए तथ्यों का भी सामने आने का सिलसिला शुरू हो गया है

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वर्धा ही था Mahatma Gandhi जी का अंतिम आश्रम

ऐतिहासिक दृष्टि से वर्धा गांधी जी के जीवन का पांचवा अंतिम निर्णायक आश्रम रूप में दर्ज किया जाता है जिनी गांधी ने यह कह कर के 1934 में साबरमती का आश्रम छोड़ा था कि वह जीवन में कभी भी आंदोलन नहीं करेंगे उसी गांधी जी ने वर्धा में करो और मारो के भारत छोड़ो आंदोलन और हिंसक जनादोलन निकाला गया द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन का शुरुआत ठीक नहीं यह निर्णय 1939 में गांधी जी के नेतृत्व वर्धा में ही लिया गया था इसी बात को लेकर के गांधी जी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर विरोध चरम सीमा पर पहुंचा था

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इतिहास विभाग के आचार्य को मिला जिम्मेदारी वर्धा का

आईसीएचआर प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया की वर्धा से गुजराती और मराठी भाषा में प्राप्त हुई अभिलेख से प्रथम अध्ययन बहुत से ऐसे ऐतिहासिक तथ्य है जो सामने आए हैं लेकिन इतिहास के पन्नों में अभी तक उसे दर्ज नहीं किया गया है उन्हें तथ्यों को पलट कर के ला करके गांधी के वर्धा काल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई है अपना फैशन हिमांशु चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि वर्धा मैं कार्यकाल बनाकर के मैंने भी इस पर कार्य करना शुरू कर दिया है

Mahatma Gandhi का वर्धा का लाभ प्रोफेशन हिमांशु द्वारा एक नए रूप में अब देखने को मिलेगा और इस को कम से कम 3 साल का समय लगेगा जिसको प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने खुद ही बताया है हिमांशु चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि इसकी जिम्मेदारी उनको दी गई है और साथ ही साथ दो लोगो के साथ उन्होंने अपनी टीम बनाई है

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