Lok Sabha Election 2024: 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा और रालोद का गठबंधन औंधे मुंह गिर गया। अखिलेश और जयंत की जोड़ी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई। अब सवाल यह उठता है, कि क्या सपा और रालोद गठबंधन 2024 का लोकसभा चुनाव के साथ लड़ेंगी? यह सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है, क्योंकि सपा ने 2017 में कांग्रेस से गठबंधन किया था। जो चुनाव बाद टूट गया था। 19 में बना सपा बसपा का गठबंधन भी ज्यादा दिन नहीं टिक पाया और चुनावी नतीजों के कुछ दिनों बाद ही गठबंधन की गांठे खुल गई।
लेकिन रालोद सपा के साथ 2017 से बना हुआ है। रालोद और सपा का गठबंधन 2017, 2019 और 2022 में रहा और तीनों बार ही असफल रहा। क्या अभी रालोद सपा के साथ ही 2024 का चुनाव लड़ेगी?
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किसान आंदोलन के कारण सपा गठबंधन को इस पर सबसे ज्यादा उम्मीदें पश्चिमी उत्तर प्रदेश से थी। लेकिन सपा गठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी वह परिणाम नहीं दे, सका जिसकी उम्मीद की जा रही थी। आखिर क्या कारण है, कि किसान आंदोलन के बावजूद सपा और लोकदल के गठबंधन को लोगों ने नकार दिया।
इन सभी सवालों का जवाब राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने एनडीटीवी से बातचीत में दिया। जयंत ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2013 में दंगों का दंश झेला था। लेकिन इस बार यहां की जनता ने उन दंगाइयों को जवाब दे दिया है। जिन इलाकों में दंगों का सबसे ज्यादा असर रहा वह हमने भाजपा को हरा कर दिखाया है। मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली जैसे जिलों में बीजेपी को बुरी हार का सामना करना पड़ा है।
यह लोग कैराना में पलायन का मुद्दा लेकर आए थे। और जनता ने बीजेपी का यहां से पलायन करा दिया। 2013 के दंगों के पोस्टर बॉय रहे संगीत सोम, सुरेश राणा और उमेश मलिक जैसे बड़े चेहरे भी अपना चुनाव हार गए। जो 80 बनाम 20 की बात कर रहे थे, हमने वह नहीं होने दिया। हम मानते हैं, कि हम जनता तक अपनी बात पहुंचाने में असमर्थ रहे। किसान आंदोलन ने अपना पूरा असर दिखाया। हम बहुत ही सीटों पर 500 से भी कम वोटों से हारे हैं।
गठबंधन के भविष्य पर भी जयंत चौधरी ने जवाब दिया है। जयंत ने कहा कि हम लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में असमर्थ जरूर रहे हैं। लेकिन हमने प्रयास नहीं छोड़ा है। हमने इन चुनावों से बहुत कुछ सीखा है। हम अगला लोकसभा चुनाव भी अखिलेश के साथ लड़ेंगे। लोग भाजपा से नाराज थे पर हम इस नाराजगी को वोटों में तब्दील नहीं कर पाए। हम विपक्ष में रहकर लोगों की आवाज उठाएंगे। हम भाजपा को 80 बनाम भी नहीं करने देंगे।
अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें, तो इस क्षेत्र अभी तक को आधिकारिक समीक्षा नहीं हुई है। लेकिन इस क्षेत्र के राजनीतिक दलों की बात करें तो यहां तमाम दलों के अलग-अलग संगठनात्मक ढांचे और वर्गीकरण हैं।
किन्तु उत्तर प्रदेश के इटावा के पश्चिम क्षेत्र में स्थित 24 जिलों में 126 विधानसभा क्षेत्रों को आमतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश माना जाता है। ये 24 जिले हैं आगरा, मथुरा, अलीगढ़, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, मुजफ्फरनगर, शामली, गौतम बुद्ध नगर, अमरोहा, बदायूं, बरेली, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर, संभल, शाहजहांपुर, हाथरस, एटा, कासगंज और फिरोजाबाद हैं।
सपा रालोद गठबंधन भाजपा का वह नुकसान नहीं कर पाई, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने एक बार फिर अपना परचम लहराया है।
2017 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 24 जिलों की 126 सीटों में से भाजपा ने 100 (79 फीसदी) सीटें जीती थीं। इस बार उसका आंकड़ा 85 सीटो (67 फीसदी) का रहा।
Lok Sabha Election 2024 सपा और रालोद ने मिलकर क्षेत्र की 126 सीटों में से 41 (32 प्रतिशत) पर जीत हासिल की।
जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली रालोद गठबंधन का फायदा हुआ। जो 2017 के चुनावों में एक सीट पर सिमट गई थी। वो इस बार 8 सीटें जीतने में कामयाब रही। रालोद ने 33 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे।
भले ही प्रश्न उत्तर प्रदेश में भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ हो। लेकिन उसके बड़े चेहरे चुनाव हार गए हैं। 2013 के दंगों की पोस्टर बॉय रहे सुरेश राणा संगीत सोम और उमेश मलिक जैसे बड़े चेहरे भी चुनाव हारे हैं।
Lok Sabha Election 2024 भाजपा शामली जिले की सभी तीन सीटों पर हार गई, जिसमें थाना भवन से एक मौजूदा मंत्री की सीट भी शामिल है। मेरठ की सात सीटों में से चार और मुजफ्फरनगर की छह सीटों में से चार भाजपा के हाथ से निकल गई है। यह तीनों जाट बहुल जिले हैं। भाजपा को मुरादाबाद की सभी छह सीटों, रामपुर और संभल, दोनों जिलों की 4 में से 3 सीटों पर भी मात खानी पड़ी है।
थाना भवन से गन्ना मंत्री सुरेश राणा, मेरठ के सरधना सीट से संगीत सोम,कैराना से मृगांका सिंह, बुढ़ाना से उमेश मलिक चुनाव हार गए है।
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2019 का लोकसभा चुनाव सपा बसपा और रालोद ने मिलकर लड़ा था। उस चुनाव में भी गठबंधन को कुछ खास फायदा नहीं मिला था। लोकदल के अध्यक्ष स्वर्गीय अजीत सिंह मुजफ्फरनगर और मौजूदा अध्यक्ष जयंत चौधरी बागपत से चुनाव हार गए थे। 2014 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सातों सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था। लेकिन 19 में उसके हाथ से 3 सीटें फिसल गई थी। गठबंधन के चलते बाकी की सीटें बसपा के खाते में चली गई थी। बिजनौर, नगीना और सहारनपुर से गठबंधन प्रत्याशियों के रूप में बसपा प्रत्याशी विजई हुए थे।