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Leprosy को पुराने समय में छुआछूत की बीमारी समझा जाता था । यह अन्य रोगों से अलग होता है । इस रोग का इलाज कराने में बाधाएं आती हैं, क्योंकि लोगों में भय अज्ञानता व अन्ध विश्वास पर रहता है । यह रोग बच्चों से लेकर सभी उम्र के व्यक्तियों में हो सकता है । इस रोग में बैक्टीरियल इंफेक्शन होता है जो माइक्रोबैक्टेरियम नामक बैक्टीरिया से फैलता है । कुष्ठ रोग लंबे समय तक रहता है तथा इसका संक्रमण लगातार बढ़ता रहता है।
इस रोग का इन्फेक्शन मुख्यतः हाथों, पैरों,नशों, नाक की परत और ऊपरी स्वसन तंत्र का प्रयोग को प्रभावित करता है । यह रोग नशों को क्षति पहुंचाता है और शरीर में घाव एवं मांसपेशियों में घाव पैदा कर देता है। कुष्ठ रोग दो प्रकार के होते हैं – (१) ट्यूबरक्यूलॉइड (२) लेप्रोमैटस
ज्यादातर leprosy में इन दोनों का मिश्रण मिलता है।कुष्ट रोग के यह दोनों प्रकार त्वचा पर घाव करने का काम करते हैं। लेकिन लेप्रोमैटस गंभीर संक्रमण होता है इस संक्रमण से त्वचा में जहां जहां पर घाव है कहां का मांस बढ़ने लगता है और गांव बनने लगती है।
कुष्ठ रोग के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं इसके शुरुआत के लक्षण पहचानना मुश्किल होता है इसके लक्षणों को विकसित होने में 1 साल का समय लग जाता है।
(1) इस रोग में त्वचा सुन्न हो जाती है। यदि तापमान में बदलाव होता है तो मरीज को उसका एहसास महसूस नहीं होता है । त्वचा सुन्न होने पर स्पर्श महसूस नहीं होता है, इसमें सुई की चुभन जैसी महसूस होती है।
(2) जोड़ों में दर्द होता है। त्वचा पर दबाव देने पर कोई हरकत महसूस नहीं होती या कम महसूस होती है। इसमें नशें क्षतिग्रस्त हो जाती है और व्यक्ति के वजन में कमी आ जाती है ।
(3) शरीर पर फफोले, फोड़े, चकत्ते बनने लगते हैं, जिसमें कोई दर्द नहीं होता । त्वचा पर सपाट पीले रंग के घाव धब्बे बन जाते हैं।
(4) इसके साथ-साथ आंखों में सूखापन पलके झुकाना तथा मरीज के बाल झड़ने लग जाते हैं।
(5) बड़े-बड़े अल्सर बनने लगते हैं तथा समय के साथ साथ उंगलियां छोटे होने लगती हैं। नाक नष्ट हो जाती है तथा रूप बिगड़ जाता है । हाथ – पैर सुन्न हो जाते हैं मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है ।
(6) आंखों में दर्द हो जाता है तथा देखने की क्षमता में बदलाव होने लगता है।
* ऐसा माना जाता है कि कुष्ठ रोग पीड़ित व्यक्ति खांसता या छींकता है तो हवा में इसके तरल पदार्थ के वैक्टीरिया हवा में घुल जाते हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा हवा से ग्रहण कर लेता है, तो वह कुष्ठ रोग से संक्रमित हो जाता है।
* कुष्ठ रोगी के साथ कई महीनों तक शरीर संपर्कों से कुष्ठ रोग शुरू हो जाता है।
* यदि हम कुष्ठ रोगी से थोड़ा बहुत संपर्क में आए हैं तो कुष्ठ लोग नहीं फैलता है जैसे व्यक्ति से गले मिलने या हाथ मिलाने से या एक – दूसरे के सामने बैठने से या खाना खाते समय एक साथ बैठने से कुष्ठ रोग नहीं फैलता है ।
* यदि कोई महिला गर्भवती है और वह इस रोग से पीड़ित है तो उसके बच्चे को यह रोग नहीं फैलेगा ।
* अन्य जोखिमों से भी कुष्ठ रोग फैल सकता है, जैसे भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में कुष्ठ रोगी के संपर्क में आते रहने से भी कुष्ठ रोग हो सकता है।
* इस रोग से संक्रमित व्यक्ति से लगातार शारीरिक संबंध बनाते रहने से भी कुष्ठ लोग को बढ़ावा मिलता है।
* लंबे समय तक एक ही चादर का उपयोग करते रहने से तथा तालाब नदी तथा खुले पानी में नहाने से कुष्ठ रोग फैलता है।
(1) leprosy से ग्रसित व्यक्ति का इलाज ना चल रहा हो तो अन्य व्यक्ति को उसके संपर्क में आने से बचना चाहिए ।
(2) leprosy तथा उसके परिवार वालों को कुष्ठ रोग के इलाज के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ।
(3) leprosy के संपर्क में आने वाले व्यक्ति पर नजर रखना चाहिए ताकि लक्षण दिखने पर उसका इलाज किया जा सके।
(4) leprosy की दवाइयों का वर्तमान में कोई मापदंड नहीं है। कोई ऐसा टीकाकरण भी नहीं है जो सभी लोगों को कुष्ठ रोग से प्रतिरक्षा प्रदान करें।
(5) बीसीजी सहित कुछ अन्य टीके भी हैं, जिससे कुछ हद तक बचा जा सकता है।
कुष्ठ रोग के इलाज के लिए दो या दो से अधिक प्रकार की एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं। इसका कोर्स 6 माह से 1 वर्ष तक किया जाता है । यदि कुष्ठ रोग गंभीर है तो दवा ज्यादा दिन भी लेनी पड़ती है। एंटीबायोटिक दवाएं नसों का इलाज नहीं कर पाती। क्षति व दर्द को रोकने के लिए एंटी- इन्फ्लेमेटरी, प्रेड़नीसोन दवाएं दी जाती हैं।
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1- कुष्ठ रोग का इलाज छोड़ दिए जाएं तो तमाम जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। हाथ पैर काम करना बंद कर देते हैं। लकवा सा मार जाता है।
2-हाथ पैरों की उंगलियों में घाव होने की वजह से छोटी हो जाती हैं। हाथों तथा पैरों में फफोले पड़ जाते हैं ।
3- आइब्रो और पलकों के बाल झड़ जाते हैं। नसों में दर्द होता है और लालामी और दर्द हो जाता है।
त्वचा में जलन होती है तथा बांझपन हो जाता है । व्यक्ति के गुर्दे खराब हो जाते हैं।
कुष्ठ रोग के इलाज के लिए मल्टीड्रग थेरेपी का उपयोग करके कुष्ठ रोग का इलाज संभव हो गया है। सही समय पर इलाज न किया जाए तो व्यक्ति कुरूप हो जाता है। सही समय पर इलाज देकर व्यक्ति को शारीरिक विकलांगता से बचाया जा सकता है।