राजकोषीय आंकड़े का घाटा भी 7 साल में सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।
जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करें तो एक 11 साल में सबसे नीचे स्तर पर पहुंच गया है।
कोरोना संकटकाल के वित्त वर्ष 2019-20 के आर्थिक आंकड़ों ने सरकारी चुनौतियों को बढ़ा दिया है ।इस साल की जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करें तो 11 साल में सबसे नीचे स्तर पर पहुंच गया. वही राजकोषीय घाटा भी 7 साल में सबसे उच्च स्तर पर हैं. मतलब यह है कि वित्त वर्ष 2019-20 में सरकारी खर्च का आंकड़ा 7 साल में सबसे अधिक रहा. अहम बात यह है कि सरकार जितना सोच रहे हैं उससे कहीं अधिक घाटा हुआ है।
क्या कहते हैं आंकड़े,
देश का राजकोषीय घाटा 2019-20 में बढ़कर जीडीपी का 4.6 प्रतिशत रहा. जो 7 साल में सबसे अधिक है। इससे पहले 2012-13में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.9% रहा, आपको बता दें कि सरकार ने 3.8 प्रतिशत घाटे का अनुमान लगाया था. जाहिर सी बात यह है कि यह आखिरी सरकार के अनुमान से कहीं ज्यादा है. इससे एक साल पहले वित्त वर्ष 2018 -19 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.4 प्रतिशत रहा।
सरकार ने दिया था यह तर्क,
सरकार ने उस समय कहा था कि इसे 3.3 प्रतिशत स्तर पर रखा जा सकता है लेकिन किसानों के लिए आय सहायता कार्यक्रम(किसान सम्मान निधि) से बढ़ा है. आपको बता दें कि सरकार ने 1 फरवरी 2019 में अंतरिम बजट 2019-20 का पेश करते हुए किसान सम्मान निधि(किसानों को नगद सहायता) के तहत ₹20,000 करोड़ की सहायता देने का प्रावधान किया। आंकड़े के अनुसार राजस्व घाटा भी बढ़कर 2019-20 में जीडीपी का 3.27 प्रतिशत रहा सरकार के 2.4% अनुमान से अधिक है।
घाटा बढ़ने का क्या होता है असर,
बढ़ते राजकोषीय घाटे का मतलब वही है जो आपकी आमदनी से खर्च अधिक होने पर होता है. खर्च बढ़ने पर हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेते हैं. इसी तरह सरकारी भी कर लेती हैं.कहने का मतलब यह है कि सरकारी राजकोषीय घाटा को पूरा करने के लिए कर्ज लेने पर मजबूर होती हैं और फिर ब्याज चुकाती रहती हैं।
इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार की तरफ से कई तरह के के उपाय किए जाते हैं. मतलब पेट्रोल डीजल पर अतिरिक्त का लगाने का फैसला राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए किया जाता है यानी इसकी आंच सीधे आप के जेब परआती है।
क्या है वजह?
मुख्य रूप से राजस्व संग्रह कम होने पर राजकोषीय घाटा बढ़ जाता है. यह आंकड़े बताते हैं कि टैक्स कलेक्शन कम होने पर सरकार की उधारी बढ जाती है। आंकड़े के मुताबिक सरकार का कुल खर्च 26.86लाख करोड़ रहा है. जो पूर्व में अनुमान के 26.98 लाख करोड़ रुपए के अनुमान से कुछ कम है. पिछले वित्त वर्ष में खास सब्सिडी 1,08,688.35 करोड़ रुपए रही है यह सरकार के अनुमान के बराबर है. हालांकि पेट्रोलियम समेत कुछ सब्सिडी कम होकर 2,23,212.87 करोड़ रुपए रही है जो सरकार के अनुमान में2,27,255.06 करोड रुपए थी,