दीवार कहने को तो एक छोटा सा शब्द है लेकिन कभी यह किसी के जीवन का सुख बन जाता है और कभी किसी के दुख की वजह। दीवारों का अपना एक अलग इतिहास है। कभी यह दीवारें नमस्ते ट्रंप में गरीबों की दयनीय दशा को छुपाने के लिए बनाई जाती हैं और कभी किसानों को दिल्ली में घुसने पर रोक लगाने के लिए कीलों और तारों की दीवारें बनाई जाती हैं।कभी एक दीवार किसी की सिसकियों को दफन कर देती हैं और कभी यह किसी की सुरक्षा का सबब बनती है।
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्मशान के चारों तरफ तीन सेट की दीवार बनाई है जिससे दुनिया जमाने से इस सच्चाई को छुपाया जा सके कि कोरोना से मरने वाले लोगों के शव को अंतिम संस्कार करने की व्यवस्था भी सरकार नहीं कर पा रही है। आप फोटो में देख सकते हैं यह दीपावली में जलते हुए दीपों का नजारा नहीं है यह श्मशान में जलती हुई चिंताएं हैं जो किसी के मन को झकझोर सकती हैं काश यह तस्वीरें हमारी सरकार के मन को झकझोर पाती।
लेकिन इन अपारदर्शी दीवारों से सब कुछ दिखाई दे रहा है। दिखाई दे रहा है कि लोग कैसे तड़प रहे हैं जो कोरोना से पीड़ित नहीं है वह भी कोरोना के चलते अस्पताल में इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। और जो कोरोना से पीड़ित हैं उन्हें भी सही इलाज नहीं मिल पा रहा है। किसी व्यक्ति को कोरोना के लक्षण होते हैं तो वह जांच कराने हॉस्पिटल जाता है तब उसकी जांच दो-तीन दिनों के बाद उसे प्राप्त होती है तब तक कोरोना पीड़ित व्यक्ति कई लोगों को और अपने घर के सदस्यों को कोरोना फैला चुका होता है। किसी को दवाई नहीं मिल रही है और किसी को एंबुलेंस नहीं मिल पा रही है। और कोरोना के कारण जिनकी मौत हो गई है उनकी घरवाले 10 से 15 घंटे शव दाह ग्रह के बाहर अपने परिवार की डेड बॉडी लेकर इंतजार कर रहे हैं कि मेरा भी नंबर आएगा डेड बॉडी का अंतिम संस्कार करने के लिए। लेकिन इतनी भीड़ भाड़ होने के कारण जो अपने परिवार सदस्य का अंतिम संस्कार करने गए हैं वह भी कोरोना पीड़ित होकर दो-चार दिन में डेड बॉडी बन कर वहीं पडे होंगे।
यह सच है उस अपारदर्शी दीवार का जिसके आर पार सब कुछ दिखाई दे रहा है। सरकार की नाकामी भी।