Viral News: Delhi का शोर शराबा 200 किलोमीटर दूर उत्तराखंड उत्तर प्रदेश बॉर्डर के पास बसे हिल स्टेशन लैंसडौन से पहले ही रुक सा जाता है। मानो कि ऐसा लगता है जैसे पहाड़ों में किसी को आने की अनुमति ही नहीं दी हो। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरे तथा देवदार चीड़ के पेड़ों से सजी इस छोटे से पहाड़ी कस्बे की लोकप्रियता धीरे-धीरे उन सैलानियों के बीच भी बढ़ी हैं। जो शिमला मसूर से कुछ अलग ही देखना चाहते थे। बाहर से आने वालों को लैंसडौन में कुछ खास नहीं मिलेगा। यहां पर इक्का-दुक्का करते हैं एवं कुछ अच्छे रिसाॅर्ट्स। बाकी पहाड़ी डेस्टिनेशन की तरह ही यहां कोई नाइट लाइट भी नहीं है।
हालांकि यहां पर 8:00 से 8:30 तक लोग अपने-अपने बिस्तरों में दुबक चुके होते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि यह जगह अभी बाजारीकरण से बची हुई है। यहां भी धीरे-धीरे अवसरवादी पैर पसार चुका है लेकिन उसकी गति अभी धीमी है।
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यह जगह उन्हें बहुत भाती है जो पहाड़ के किनारे बने सीमेंट की सीट पर घंटों बैठकर साफ-सुथरे आसमान में बादलों का खेल देखना चाहते हैं। यहां पर इसीलिए आने वाले लोगों में नौजवनों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। जो दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा से सीधे बाइक उठाकर 2 दिन के लिए सुकून तलाश में पहुंच जाते हैं।
कहा जाता है कि जैसे-जैसे पहाड़ों की ऊंचाई बढ़ती हैं। भूत प्रेत की कहानियां भी बढ़ती जाती हैं। लैंसडौन में भी एक ऐसी कहानी है जोकि दादा पापा के जमाने से सुनाई जा रही है। कहानी इस ‘देश’ से आने वाले लोग ही कहते हैं। यहां के लोगों के लिए यह सच है। यह लोग मानते हैं कि लैंसडौन में घोड़े पर एक सरकटे अंग्रेज का भूत घूमता है।
इस बारे में आगे बढ़ने से पहले मैं आपको थोड़ा लैंसडौन के बारे में बता दूं। यह जगह दिल्ली से करीब 300 किमी दूर है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई करीब 1706 मीटर है। इसके जो सबसे करीब शहर है उसका नाम है कोटद्वार। आप अगर दिल्ली से यहां आने की सोच रहे हैं। तो पहले आपको कोटद्वार तक ट्रेन या फिर बस से आना होगा। लैंसडौन कोटद्वार से 40 किमी दूर है। इस कैंटोनमेंट की सबसे बड़ी हाईलाइट यह है कि भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स का हेड क्वार्टर।
बता दें कि इस जगह का नाम पहले “कालो का डांडा” था। बाद में 1800 में भारत के वायस शराय रहे लैंसडौन के नाम पर इस जगह का नाम भी बदल दिया गया।
कहा जाता है कि रात के वक्त छावनी में सफेद घोड़े में एक सर कटा अंग्रेज घूमता है। हालांकि छावनी में ड्यूटी कर रहे सिपाहियों की निगरानी करने वाले इस सरकटे अंग्रेज के कई किस्से लैंसडाउन में सुनाए जाते हैं। यह भी कहते हैं कि यदि कोई भी सिपाही रात की ड्यूटी में सोता है या फिर सही से कपड़े नहीं पहनता तो यह भूत उसके सिर पर मारता है ताकि वह जाग जाए।
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Viral News, जिस भूत की यहां पर बात हो रही है वह एक अंग्रेज ऑफिसर डब्ल्यूएच वार्डेल का है। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही डब्ल्यू एच फ्रांस में जर्मनी से लड़ता हुआ मारा गया था। हालांकि दरबान सिंह नेगी के साथ लड़ने वाले इस अंग्रेज अफसर की लाश कभी नहीं मिली। 23 से 24 नवंबर की रात वोर्डेल बड़ी बहादुरी के साथ जर्मनों से लड़ा। युद्ध में उसकी मौत के बाद से तभी के ब्रिटिश अखबारों में लिखा गया है कि वह शेर की तरह लड़ा तथा मारा गया।
बड़ा ही अफसोस है कि हमें ऐसा वीर का शव भी नहीं मिला। लोगों को यह मानना है कि ठीक इसी रात लैंसडाउन की छावनी में एक अंग्रेज को सफेद घोड़े में देखा गया। हालांकि इस छावनी में नाइट ड्यूटी करने वाले बहुत से फौजियों ने यह दावा किया है कि ड्यूटी में काम चोरी करने पर उन्हें वार्डेल ने टोका का है।
लैंसडौन में ‘इस सर कटे भूत’ के अलावा भी गढ़वाली मेस में ‘कर्नल रॉबर्ट’ नाम के भूत के भी चर्चे हैं। इनके बारे में यह कहा जाता है कि यह रात में स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ते हैं। लोगों के मुताबिक ऐसा ही एक शरीफ भूत ‘बांग्ला नंबर 18’ में घूमता है। जो बिना किसी को परेशान करें डाइनिंग रूम की खिड़की से आता है एवं किचन की खिड़की से ठंडी हवा के झोंके की तरह चला जाता है।