Uttar Pradesh High Court के Lucknow High Court Bench ने अहम फैसले में यह कहा है कि तलाकशुदा महिलाओं को दूसरी शादी तक गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए। Lucknow High Court Benchने मुस्लिम महिलाओं के हक में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने की भी बात कही है। कोर्ट ने बताया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत पति से गुजारा भत्ता पाने का पूरा अधिकार है।
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Lucknow Bench ने इस अहम फैसले में यह कहा है कि मुस्लिम महिलाएं इद्दत की अवधि के बाद से भी इसको प्राप्त कर सकती हैं। Uttar Pradesh High Court ने ये स्पष्ट किया है कि तलाकशुदा महिलाओं को ये अधिकार तब तक है जब तक कि वह दूसरी शादी नहीं कर लेती। जस्टिस करुणेश सिंह पवार ने ये फैसला एक मुस्लिम महिला की तरफ से दाखिल अपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है वर्ष 2008 में दाखिल इस याचिका में प्रतापगढ़ के 1 session Court के 11 अप्रैल 2008 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
Session court ने लोअर कोर्ट के 23 जनवरी 2007 को पारित आदेश को पलटते हुए यह कहा है कि मुस्लिम विमेन (Production of Rights on Divorce) 1986 के आने के बाद से याची तथा उसके पति का मामला इसी अधिनियम के अधीन होगा।
Session Court ने यह कहा था कि उक्त अधिनियम की धारा तीन तथा चार के अंतर्गत ही मुस्लिम तलाकशुदा महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। हालांकि ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होती है। Uttar Pradesh High Court ने session Court के इस फैसले को रद्द करते हुए यह कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा शबाना बानो मावली में 2009 में दिए गए निर्णय के बाद से यह तय हो चुका है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला को सीआरपीसी की धारा 125 अंतर्गत इद्दत की अवधि के बाद से भी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।
जब तक की वो दूसरी शादी नहीं कर लेती। हालांकि कोर्ट ने इसी फैसले के साथ ही याचिका मंजूर कर ली।
बता दें कि साल 2008 में यह याचिका दायर की गई थी। इसमें प्रतापगढ़ सेशन कोर्ट की तरफ से 11 अप्रैल 2008 को चुनौती दी गई थी। Session Court ने निचली अदालत के 23 जनवरी 2007 के आदेश को पलट दिया था। हालांकि निचली अदालत ने अपने आदेश में यह कहा था कि मुस्लिम विमेन प्रोटक्शन आफ राइट्स ऑन डिवोर्स एक्ट 1986 के बाद से याचिकाकर्ता तथा उसके पति का मामला इस व्यक्ति के अंतर्गत होगा। Session Courtने यह कहा था कि एक्ट की धारा तीन तथा चार में मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता का अधिकार है। जबकि इसी मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होने का भी फैसला सुनाया गया।
जहांगीरपूरी दिल्ली में तो सब बता रहे, यहां हम हिंदू- मुस्लिम मिल कर रहते हैं तो आखिर दंगा भड़का कैसे
गौरतलब है कि इस्लाम में इद्दत या फिर इद्दाह महिला के तलाक या फिर उसके पति की मृत्यु के बाद की एक निर्धारित अवधि होती है। इसका पालन करना भी महिलाओं के लिए अनिवार्य है। इसी अवधि के दौरान ही महिला किसी अन्य पुरुष के साथ शादी भी नहीं कर सकती है। इसका महत्वपूर्ण उद्देश्य ताला किया फिर पूर्व पति की मृत्यु के बाद से बच्चे के पितृत्व के बारे में भी किसी संदेह को दूर किया जाना इद्दत की अवधि परिस्थितियों के आधार पर ही बदलती है। हालांकि आमतौर पर तलाक के बाद से महिलाओं के लिए ये अवधि 3 माह की होती है।
जबकि पति की मृत्यु होने की स्थिति में ये अवध चार चंद्र माह तथा 10 दिन होती है। ये लगभग साढ़े 4 महीने का समय होता है। गर्भवती महिला के तलाक या फिर पति की मृत्यु के बाद से इद्दत की अवधि बच्चे के जन्म तक की होती है।