Supreme Court ने वक्फ से संबंधित मामले को लेकर टिप्पणी की है। Supreme Court ने यह कहा है कि चढ़ावा या फिर उपयोगकर्ता के किसी भी सबूत के अभाव में किसी जर्जर दीवार और चबूतरे को नमाज अदा करने के उद्देश्य से ही धार्मिक स्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
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Supreme Courtने शुक्रवार को यह कहा है कि समर्पण या फिर उपयोगकर्ता या अनुदान के सबूत के अभाव में, जिसके जरिए ही वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 3 के संदर्भ में ही जीर्ण दीवार या फिर प्लेटफार्म को वक्फ माना जाएगा। उक्त ढांचे को नमाज अदा करने के लिए भी धार्मिक स्थल के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता तथा जय वी रामसुब्रह्मण्यम की खंडपीठ ने Rajasthan High Court के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को भी खारिज कर दिया। जिसके अंतर्गत जिंदल साॅ लिमिटेड को खनन के लिए भी आवंटित भूखंड से एक ढांचे को हटाने की भी अनुमति दी गई थी। जिस पर वक्फ बोर्ड Rajasthan ने यह दावा किया था कि ये एक धार्मिक स्थल है।
पीठ ने यह भी कहा है कि विशेषज्ञों की रिपोर्ट केवल इसी हद तक प्रसांगिक है की संरचना का कोई भी पुरातात्विक या फिर ऐतिहासिक महत्व नहीं है। उपयोगकर्ता के किसी भी प्रमाण के अभाव में भी एक जर्जर दीवार या फिर एक चबूतरे को धार्मिक स्थल का दर्जा कभी नहीं दिया जा सकता।
पीठ ने Rajasthan High Court के एक आदेश को चुनौती देने वाले राजस्थान वक्फ बोर्ड द्वारा दायर अपील को खारिज कर दी है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिंदल साॅ लिमिटेड तथा आने की कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं करने का निर्देश भी देता है। जो भीलवाड़ा जिले के पुर गांव में खसरा नंबर 6731 में बने ढांचे का हिस्सा ही है। फार्म को वर्ष 2010 में भीलवाड़ा में गांव ढेडवास के पास सोना, चांदी, तांबा, लोहा, जस्ता, कोबाल्ट, निकल, सीसा तथा संबंधित खनिजों के खनन के लिए 1556.7817 हेक्टेयर क्षेत्र का पट्टा भी दिया गया था।
Supreme Court ने शुक्रवार को यह कहा है कि कैदियों को फरलो (कुछ दिनों की छुट्टी) से इनकार नहीं किया जा सकता है। भले ही उन्हें आजीवन कारावास की सजा क्यों ना मिली हो। शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के साथ ही साथ जेल महानिदेशक द्वारा फरलो नोंदिनी की आदेश को भी खारिज कर दिया है तथा संबंधित अथॉरिटी को कानून के मुताबिक मामले का परीक्षण करने की छूट दी।
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जस्टिस महेश्वरी तथा जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने यह कहा है कि जब फरलो अच्छे आचरण के लिए भी एक प्रोत्साहन है तो भले ही दोषी को सजा में कोई छूट नहीं मिली हो तथा उसे पूरी जिंदगी के लिए जेल में रहना हो। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि फरलो (कुछ दिनों की छुट्टी) मांगने से उसके अधिकार को खत्म कर दिया जाएगा।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत दोषी अतबीर की एक याचिका पर विचार कर रही थी। जिसे इस आधार पर
फरलो देने से इनकर कर दिया गया था कि राष्ट्रपति ने वर्ष 2012 में उसकी मौत की सजा को भी इसी शर्त के साथ ही आजीवन कारावास में बदल दिया गया था कि वो बिना पैरोल की तथा कारावास में बिना किसी छूट के पूरी जिंदगी जेल में रहेगा।