सुप्रीम कोर्ट ने जाति से जुड़ी हिंसा की घटनाओं के जारी रहने से चिंता जताई है। यह कहा कि आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी समाज में जाति के नाम पर हिंसा हो रही है। शीर्ष न्यायालय ने ये टिप्पणी 1951 में उत्तर प्रदेश में हुई ऑनर किलिंग की घटना पर फैसला सुनाते हुए की। इस घटना में दो युवा पुरुषों तथा एक महिला को लगभग 12 घंटे तक पीटा गया, तथा इस पिटाई में उनकी मौत भी हो गई। ये घटना जातीय विद्वेष की भावना के चलते ही हुई है। कोर्ट ने प्रशासन को ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश भी दिए।
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जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने बताया कि मामलों की सुनवाई सुचारू ढंग से चली एवं सत्य सामने आए इसके लिए गवाहों की सुरक्षा बेहद जरूरी है। आरोपी पक्ष के साथ जब राजनीतिक लोग, अमीर लोग और बाहुबली हो, तब गवाहों की सुरक्षा की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। पीठ ने ये कहां की बात मामले में अभियोजन पक्ष के 12 गवाहों के पक्ष द्रोही होने के चलते कही है। हालांकि अभी कहां की जाती है कट्टरता वाली गतिविधियां आज तक जारी है, जबकि संविधान दो सभी नागरिकों को बराबरी दृष्टि से ही देखता है।
पीठ ने समाज की जाति प्रथा खत्म करने के लिए भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के सुझाव को अमल में लाने का भी सुझाव दिया, तथा कहा कि अंतर जाति विवाह को बढ़ावा देकर अंतरजातीय समाज की स्थापना भी की जा सकती है। पीठ में जज जस्टिस संजीव खन्ना व जस्टिस बीआर गवाई भी शामिल थे। नवंबर 2011 में इस मामले में ट्रायल कोर्ट के दिए आदेश में 35 आरोपियों को दोषी ठहरा कर इनके लिए सजा का ऐलान किया था। जबकि हाईकोर्ट ने तो इसमें दुख भरी करते हुए बाकी के सजा को बरकरार रखा था। हालांकि हाईकोर्ट ने तो 8 दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। जबकि जिन 8 लोगों को मौत की सजा से राहत दी गई थी। उनको अपनी आखिरी सांस तक जेल में ही रहना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने तो तीन लोगों को पहचान की स्पष्टता न होने के चलते बरी कर दिया है, लेकिन इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की बाकी मुजरिमों को सजा को बरकरार रखा गया है।