Summer Season: दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में गर्मी का कहर जारी है लेकिन एक ही दिल्ली में तापमान का फर्क एक से दूसरी जगह पर तकरीबन 5 डिग्री सेल्सियस का है यानी कहीं तेज गर्मी तो कहीं थोड़ी कम गर्मी 50 किलोमीटर के फासले में ही 5 डिग्री का फर्क तो 2 किलोमीटर के फासले में दो से 3 डिग्री का फर्क कभी देखा जाता है
इसी को अर्बन हीट आईलैंड कहा जाता है दिल्ली से लेकर यूपी तक हरियाणा से लेकर राजस्थान तक भीषण गर्मी ने लोगों के पसीने छुड़ा दिए हैं 45 से 50 डिग्री के बीच झुलस रहे उत्तर भारत के लोगों के लिए यह सोचना ही मुश्किल है कि गर्मी से निजात कब और कैसे मिलेगी।
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इस हफ्ते भी तापमान थोड़ा ऊपर नीचे ही रहने का अनुमान है यानी गर्मी का सितम जारी रहेगा लेकिन राजधानी दिल्ली में ही आप अलग-अलग तापमान रिकॉर्ड होते हुए पाएंगे जैसे रविवार को राजधानी दिल्ली में एक से दूसरी जगह के बीच तापमान के बीच अच्छा खासा फर्क था कहीं तापमान ज्यादा तो कहीं बहुत कम कंक्रीट की बिल्डिंग मल्टीस्टो के घर जहां कम जगह में ज्यादा लोग रहते हैं
एयर कंडीशनर से निकलने वाली गर्मी वाहनों की गर्मी और आबादी का जाता घनत्व यह सब मिलाकर अर्बन हीट आईलैंड बनाते हैं मसलन अगर आपके इलाके के पास कोई झील हो तो वहां का तापमान बाकी जगहों के मुकाबले 2 से 4 डिग्री तक काम रहेगा अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मुताबिक ज्यादातर मानव निर्मित संरचना वाले शहरी केंद्रों में दूसरे क्षेत्रों की तुलना में उच्च तापमान के द्वीप बन जाते हैं ऐसा इसलिए होता है
क्योंकि इमारतों और सड़कों जैसे निर्माण प्राकृतिक संसाधनों जैसे जलाशयों और हरियाली के मुकाबले सूर्य की गर्मी को ज्यादा सकते हैं और वापस उसे इफेक्ट भी करते हैं
दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के दस्तावेजों के अनुसार राजधानी में कुल 1012 तालाब हैं लेकिन हाई कोर्ट में दिए हलफनामे में राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि राजधानी में अब सिर्फ 629 तालाब ही सही सलामत है वक्त की मार अतिक्रमण और कचरे के ढेर के नीचे दबकर कई तालाबों में अपना अस्तित्व ही खो दिया अगर यह तालाब जिंदा होते तो दिल्ली वालों को गर्मी के कहर से बचने के काम आ सकते थे
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इमारतों के निर्माण में ईटों की जगह स्टील और कांच का इस्तेमाल बढ़ गया है छतों की ऊंचाई जो कभी 15 से 20 मीटर होती थी आज घटकर 10 मीटर से 12 मीटर हो गई है पेड़ जितने उगाए नहीं जाते उससे ज्यादा नए निर्माण की बलि चढ़ जाते हैं यानी खादर की जमीन पर आज कालोनियां बसी हैं इनके हल भी बहुत मुश्किल नहीं है हां थोड़े महंगे जरूर हैं
सोलर एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ाया जाए पेड़ पौधे ज्यादा ज्यादा लगे हैं कम एनर्जी की खपत करने वाले अप्लायंस इस्तेमाल किए जाएं रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा मिले और इन कोशिशों के बदले हाउस टैक्स में राहत बिजली-पानी के बिलों में कटौती जैसे फायदे मिले तो आज ही नहीं आने वाले वर्षों के लिए गर्मी के असर को कम किया जा सकता है।