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Sedition Law: सुप्रीम कोर्ट का हुआ आदेश और कोमा में चली गई धारा 124a! पुनः विचार विचार तक नहीं दर्ज होगा कोई केस

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Sedition law in India: साल 2010 से लेकर साल 2021 तक का डाटा सामने आता है कि राजद्रोह का सबसे ज्यादा इस्तेमाल जिन पांच राज्यों में किया गया, उनमें दो में बीजेपी के मुख्यमंत्री तो दो में एनडीए गठबंधन की पार्टियों के सीएम रहे हैं।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहां की वह  राजद्रोह कानून( Sedition Law) की समीक्षा करने के लिए तैयार है। वही सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र के इस बयान के बाद कहा है की जब तक राजद्रोह कानून के भविष्य पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता तब तक इसे रद्द ह किया जाएगा और इसके आरोपी भी जमानत याचिका दायर कर पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट और केंद्र की तरफ से राजद्रोह कानून पर इस प्रकार से तेज तर्रार रुख को देखते हुए अब इस कानून के औचित्य पर भी सवाल खड़ा हुआ है।

दरअसल कई ऐसे मौके भी आए थे जब कोर्ट ने इस कानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था, साथ ही इसके गलत इस्तेमाल की बात भी कही थी।

ऐसे में आज हम आपसे यह समीक्षा करेंगे की आखिर राजद्रोह कानून( Sedition Law) की औचित्य पर सवाल क्यों उठा है? आखिर कैसे पिछले 12 सालों में राजद्रोह के मामले में इस प्रकार उछाल आया है? खासकर जब से मोदी सरकार का राज आया है तब से ही इन मामलों में बढ़ावा देखा गया है । इसके अलावा एनसीआरबी ने जब इससे जुड़ा डाटा प्रकाशित करना शुरू कर दिया तब से इन आंकड़ों के बीच में कितना फर्क नजर आया है।

जानें- 12 साल में कितनी बार इस्तेमाल हुआ यह राजद्रोह कानून?

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इस कानून पर पिछले 10 सालों (2010 से 2021 तक) का डाटा रखने वाली वेबसाइट आर्टिकल 14 के अनुसार इस पूरे दौर में हमारे देश में राजद्रोह के 867 केस दर्ज हुए हैं। साथ ही वेबसाइट ने पुलिस स्टेशन,जिला कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट,  एनसीआरबी रिपोर्ट और अन्य माध्यम के जरिए से बताया है की इन सढी केस में 13300 लोगों को आरोपी क़रार दिया गया था हालांकि इन सभी में से जितने लोगों पर भी यह केस दर्ज था, डेटाबेस में उनमें से सिर्फ 3000 लोगों की ही पहचान मुमकिन हुई थी।

11 साल में हुआ ये हाल, तो मोदी सरकार के राज का क्या हाल?

इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ह 2021 तक 595 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए थे।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से दर्ज हुए सभी मामलों में से 69 प्रतिशत एनडीए सरकार में दर्ज हुए थे। अगर इन सभी राजद्रोह के मामलों का कुल औसत निकाला जाए तो जहां 2010 के बाद से यूपीए सरकार में प्रति वर्ष करीब 68 मामले दर्ज हुए, तो वहीं एनडीए सरकार में हर साल औसतन 74.4 केस दर्ज हुए।

जानें एनसीआरबी से कितना भिन्न है ये डेटा?

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2014 से ही एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) ने राजद्रोह से जुड़े केसों का डेटा जुटाना शुरू किया था। हालांकि, एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2020 (2021 के आंकड़े अवेलेबल नहीं है) के बीच राजद्रोह के करीब 399 केस ही दर्ज हुए हैं। वहीं आर्टिकल 14 ने इस दौरान (2014-20 के बीच) ही राजद्रोह के 557 केस दिखाए हैं।

क्यों है ये फर्क?

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अपने रिकॉर्ड्स में आर्टिकल 14 ने यह साफ किया है कि एनसीआरबी का डेटा राजद्रोह के सभी मामलों को पूरी तरह कवर ही नहीं करता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ऐसे मामले, जिनमें कई और धाराओं का इस्तेमाल भी किया जाता है। एनसीआरबी ऐसे मामलों में सिर्फ उन धाराओं को ही केंद्र में रखकर देखता है, जिनका परिमाण अधिक होता है।

इन केसों में कोर्ट के फैसलों का क्या होगा?

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राजद्रोह के इन 867 केसों में सिर्फ 13 लोगों को ही दोषी करार दिया गया। मतलब यह है की इनमें जो 13000 आरोपी बनाए गए थे उनमें से सिर्फ 0.1 प्रतिशत ही को राजद्रोह के दोषी माने गए।

बेगुनाह लोगों को 200 दिन जेल में रहना पड़ा

हालांकि, इन मामलों में बेवजह फंसे लोगों को किस प्रकार की परेशानी से गुजरना पड़ा, इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक आरोपी को जमानत मिलने तक करीब 50 दिन जेल में बिताने पड़े। वहीं, अगर जमानत के लिए किसी को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना भी पड़ा तो उसे राहत मिलने में भी 200 दिन लगे। इनमें से कुछ व्यापारी वर्ग, कुछ कर्मचारी ,कुछ पत्रकार , कुछ अकादमी और छात्र वर्ग के लोग और कुछ समाजसेवी लोग भी शामिल है।

Sedition Law, इन लोगों ने अपनी जिंदगी के जो महत्व पूर्ण दिन जेल में गुजरे हैं इसका भुगतान तो कोई भी नहीं कर सकता। साथ ही इन सभी लोगों के एक लंबे अर्से तक जेल में कैद रहने के कारण इन लोगों के परिवार को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।


किन राज्यों में राजद्रोह के सबसे अधिक मामले?

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राजद्रोह का सबसे ज्यादा इस्तेमाल जिन पांच राज्यों में किया गया, उनमें दो में भाजपा के मुख्यमंत्री तो दो में एनडीए की सहयोगी पार्टियों के मुख्यमंत्री रहे। वहीं एक में विपक्षी पार्टी के मुख्यमंत्री थे। जहां बिहार में 2010 के बाद कुल 171 ऐसे मामले दर्ज हुए, तो वहीं दूसरे नंबर पर तमिलनाडु रहा है। उस बाद उत्तर प्रदेश, झारखंड और कर्नाटक  राज्य रहे।

अब अगर आरोपियों के लिहाज से बात करते हैं तो राजद्रोह के मामलों के सबसे ज्यादा 4641 आरोपी झारखंड में, वहीं तमिलनाडु में 3601, बिहार में 1608, उत्तर प्रदेश में 1383 और हरियाणा में 509 बताएं गए।

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राजद्रोह के आरोप झेलने वाले लोगों में सामाजिक कार्यकर्ता से लेकर पत्रकार तक

Sedition Law जिन लोगों पर राजद्रोह के मुकदमे सबसे ज्यादा चलाए गए , उनमें सामाजिक कार्यकर्ता और समूह सबसे अधिक निशाने पर रहे हैं। इन पर 99 केस दर्ज किए गए और कुल 492 आरोपी भी बनाए गए। दुसरी और अकादमिक और छात्र वर्ग के खिलाफ राजद्रोह की धारा में 69 मामले दर्ज हुए और 144 लोगों को आरोपी बना दिया गया। साथ ही राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर 66 मामले दर्ज हुए और 117 आरोपी बना दिए गए। दूसरी तरफ कुछ आम कर्मचारियों और व्यापारियों के खिलाफ भी 30 मामले दर्ज कर 55 आरोपी बना दिए गए। समाजसेवी कुछ पत्रकारों के विरुद्ध भी 21 केस बनाए कर 40 पत्रकारों पर भी कार्रवाई की गई।

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