इस अध्ययन को लेकर साइंस एडवांस में प्रकाशित हुए लेख में दिग्गज वैज्ञानिकों ने अन्य प्रकार की तंत्रिकाओं में इस अधिक मैटाबॉलिक बोझ के प्रभाव का भी अध्ययन किया है । वैज्ञानिकों के रिसर्च के मुताबिक यह पड़ताल के ईंधन प्रबंधन को सही तरीके से समझने में बहुत ही उपयोगी होगी और इससे यह भी मालूम हो जाएगा की आखिर हमारा दिमाग इस ईंधन आपूर्ति के मामले में क्यों इतना नाजुक है । वैज्ञानिकों को हमारे शरीर के ऊर्जा प्रंबंधन की एक पहेली काफी लंबे समय से परेशान कर रही थी। मानव मस्तिष्क शरीर का एक ऐसा हिस्सा है जो पूरे शरीर की ऊर्जा खपत का दस गुना अधिक खर्च कर देता है । हमारा दिमाग औसत इंसान के खाने से मिली ऊर्जा का 20 प्रतिशत तब उपयोग में ले लेता है जब हम सो रहे होते है । लेकिन इस के पीछे क्या वजह है यह अभी तक मालूम नहीं हुआ था । शोधकर्ताओं के लिए मानव तंत्रिका विज्ञान के लिए यह रहस्य जानना बहुत ही जरूरी था कि आखिर निष्क्रिय होने पर भी मानव मस्तिष्क को इतनी ऊर्जा की खपत क्यों होती है। अब, वैज्ञानिकों को इसका उत्तर मिल गया है।
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वैज्ञानिकों ने हमारे दिमाग में छिपे हुए एक खास न्यूरोन को खोज निकाला है जो हमारे शरीर के कुल ईंधन की भारी मात्रा में खपत करता लेता है। जब हमारे दिमाग की कोशिकाएं दूसरे न्यूरॉन को संकेत भेजती है, इस की मुख्य वजह है दोनों के बीच की जगह और जिस ऑगॅन के जरिए ऐसा होता है उसे सिनैप्स कहा जाता हैं।
इस प्रकिया में पहले एक न्यूरोन थैली समान फफोलों को अपनी पूंछ तक भेजते हैं जिससे वे सिनैप्स के करीब पहुंच पाएं । ये फफोले न्यूरॉन के न्यूरोट्रांसमीटर में चले जाते हैं जो संदेश के लिए आवरण या लिफाफे का काम करते हैं । ये भरे हुए लिफाफे फिर से न्यूरॉन के किनारे तक पहुंचाए जाते हैं जहां परत से मिलकर फिर सिनैप्स में पहुंच जाते हैं ।
उस बाद सिनैप्स वाली खाली जगह में पहुंचने के बात ट्रांसमीटर अगली कोशिका के रिसेप्टर्स या ग्राही से कनेक्ट हो जाते हैं और इस तरह से यह प्रक्रिया आगे तक चलती रहती है । वैज्ञानिक हमारे शरीर की तंत्रिकाओं की इस मूलभूत प्रक्रिया को तो पहले से ही जानते थे जिसमें हमारी मस्तिष्क की बहुत सारी ऊर्जा लगती है । सिनैप्स के पास वाले तंत्रिका के अंतिम स्थल या टर्मिनल के लिये इतनी अधिक ऊर्जा वाले अणु रखना नामुमकिन हैं । इसका मतलब यह है कि तंत्रिकाओं को अपनी इस प्रक्रिया के लिए खुद ही ऊर्जा पैदा करनी पड़ती है ।
यही सबसे बड़ी वजह है कि हमारा सक्रिय दिमाग इतनी अधिक मात्रा में ऊर्जा का इस्तेमाल करता है । लेकिन जब यह तंत्र शांत हो या सक्रिय ना हो तब ऊर्जा की इतनी अधिक खपत क्यों होती रहती है । इसी बात को जानने के लिए ही वैज्ञानिको ने तंत्रिका के अंतिम बिंदुओं पर बहुत सारे प्रयोग किए और इसमें उन्होंने सक्रिय और निष्क्रिय दोनों ही स्थितियों में सिनैप्स की मैटाबॉलिक अवस्था की तुलना की थी ।
वैज्ञानिको ने अपने एक्सपीरिमेन्ट में यह जाना कि जब टर्मिनल संदेश आगे भेजने का काम नहीं भी कर रहे थे तब भी उन फफोलों को ऊर्जा की जरूरत तो रहेती है जिनमें संदेश जाता है । उन्होंने यह भी देखा कि फफोलों से प्रोटोन आगे भेजने और उन्हें अंदर खींचने का काम करने वाली ‘पंप’ जैसी चीज कभी आराम करती ही नही हैं । जिससे उसे हमेशा ही ऊर्जा की आवश्यकता रहती है । यही ‘पंप’ सिनैप्स के मैटाबॉलिक ऊर्जा खपत के लिए जिम्मेदार है ।
वैज्ञानिको के मुताबिक इस ‘पंप’ में रिसाव होता है । सिनैप्टिक फफोलों में प्रोटोन निकलते ही रहते हैं और यह उन संजोगो में होता है जब वे न्यूरोट्रांसमीटर से भरे हुए होते हैं और तब भी जब न्यूरॉन निष्क्रिय होता है । न्यूरॉन टर्मिनल में लाखो की संख्या में सिनैप्स और सैंकड़ों फफोलों के यह मैटाबॉलिक स्थिति हमेशा ही तैयार अवस्था में ही रहती है । जिससे ऊर्जा की ज्यादा खपत होती है ।
साइंस एडवांस में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिको ने अन्य प्रकार की तंत्रिकाओं में इस अधिक मैटाबॉलिक बोझ के प्रभाव का भी रिसर्च किया था । उनके मुताबिक यह पड़ताल मानव मस्तिष्क के ऊर्जा प्रबंधन को बेहतर तरीके से समझने में उपयोगी होगी और इससे यह भी मालूम हो जाएगा कि हमारा दिमाग इस ईंधन आपूर्ति के सिलसिले में इतना नाजुक क्यों है ।