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Rupee Falls Against Dollar: रुपया पहुंचा 80 के करीब, RBI ने क्या उठाए कदम, 2014 के मुकाबले 2022 में क्या रहा अंतर

Rupee Falls Against Dollar

Rupee Falls Against Dollar: रुपये में गिरावट लगातार होने के वजह से डॉलर के मुकाबले यह 80 के करीब पहुंच चुका है। रिसर्जेंट इंडिया के एमडी ज्योति प्रकाश गडिया के अनुसार देश का निर्यात आयात से बहुत कम है। इस कारण व्यापार में भी घाटा बढ़ रहा है। इससे भी रुपया काफी कमजोर पड़ रहा है।अभी यह डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे न्यूनतम स्तर पर चला गया है। अमेरिका में जून के महीने के महंगाई के आंकड़ों और मंदी की आशंका से आगे स्थिति और बदतर हो सकती है। 

यह कभी भी डॉलर के मुकाबले 80 के भाव पर जा सकता है। रुपये में गिरावट की वजह मुख्यतौर से कच्चे तेल की ऊंची कीमतों (Crude Oil Price), डॉलर की मजबूती, विदेशी पूंजी की निकासी की वजह से हुई है। निवेशक डॉलर की मजबूती और घरेलू स्तर पर ग्रोथ के कम आसार की वजह से ही सुरक्षित ठिकानों की तरफ रुख कर रहे हैं। दुनियाभर में मंदी की आशंका और एक्सटरनल बैलेंसेज फ्यूल आउटफ्लोज की बदतर होती स्थिति के कारण से इस साल रुपये में 6.5 प्रतिशत से अधिक गिरावट आ चुकी है।

आरबीआई ने रुपये की गिरावट को थामने के लिए कई कदम भी उठाए हैं। लेकिन ट्रेडर्स और स्ट्रैटजिस्ट्स का कहना है कि निकट भविष्य में रुपया 80 के स्तर पर पहुंच सकता है। 

Rupee Falls Against Dollar

रुपये में गिरावट की वजह मुख्यतौर पर कच्चे तेल की ऊंची कीमतों, डॉलर की मजबूती, विदेशी पूंजी की निकासी की वजह से रही। निवेशक डॉलर की मजबूती और घरेलू स्तर पर ग्रोथ के कम आसार की वजह से ही सुरक्षित ठिकानों की ओर रुख कर रहे हैं। साथ ही कोयला और बाकी जरूरी सामान भी महंगा हुआ है। इससे इन चीजों का आयात करना काफी ज्यादा महंगा होता गया और व्यापार में घाटा बढ़ता गया। कमजोर रुपये से आयात महंगा बना रहेगा और इससे घरेलू उत्पादन और जीडीपी को शॉर्ट टर्म में नुकसान पहुंचेगा। 

मोबाइल फोन, कार खरीदना होगा महंगा

Rupee Falls Against Dollar

Rupee Falls Against Dollar, रुपये की कीमत में गिरावट का प्राथमिक और तात्कालिक प्रभाव आयातकों पर पड़ता है। जिन्हें समान मात्रा के लिए अधिक कीमत का भुगतान करना पड़ता है। रुपया गुरुवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.99 रुपये के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद भी हुआ था। अंतरराष्ट्रीय तेल और ईंधन की कीमतें रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले के स्तर तक गिर गई हैं। इससे जो लाभ भारत को मिलता, वह रुपये के मूल्य में आई इस गिरावट से नहीं मिल पाएगा। आयातित वस्तुओं के भुगतान के लिए आयातकों को अमेरिकी डॉलर खरीदने की अवश्यकता पड़ती है। 

रुपये में गिरावट आने से सामानों का आयात करना महंगा भी हो जाएगा। सिर्फ तेल ही नहीं, बल्कि मोबाइल फोन, कुछ कारें और उपकरण भी काफी ज्यादा महंगे होने की संभावना भी है।  गौरतलब है कि भारत पेट्रोल, डीजल और जेट ईंधन जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयातित तेल पर 85 प्रतिशत तक निर्भर है।

भारत में आयात होने वाली प्रमुख सामग्रियों में कच्चा तेल, कोयला, प्लास्टिक सामग्री, वनस्पति तेल, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, उर्वरक, मशीनरी, सोना, मोती, कीमती और अर्ध-कीमती पत्थर तथा लोहा व इस्पात भी शामिल हैं। रुपये की कीमत में बड़ी गिरावट आने से इन वस्तुओं की कीमतों पर भी असर पड़ सकता है। 

2014 के मुकाबले 2022 में अंतर

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31 दिसंबर 2014 को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 63.33 भारतीय रुपये तक थी। लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में वित्त मंत्री द्वारा उल्लिखित आंकड़ों के अनुसार 11 जुलाई, 2022 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79.41 के स्तर पर आ गया है। भारतीय रुपये की कीमत में लगातार सातवें दिन भी गिरावट आई है। लोकसभा में एक तारांकित प्रश्न के उत्तर में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि, “रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे वैश्विक कारक, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और वैश्विक वित्तीय स्थितियों का सख्त होना,

Rupee Falls Against Dollar, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारण में से हैं।” हालांकि, उन्होंने संसद के निचले सदन को सूचित भी किया है कि भारतीय मुद्रा अन्य प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुई है।

रुपया संभालने के लिए RBI के कदम

Rupee Falls Against Dollar, रुपये संभालने के लिए RBI ने FCNR,NRE डिपाजिट पर ब्याज लिमिट हटाई गई हैं। इसके अलावा NRIs के फारेक्स डिपॅजिट CRR और SLR के दायरे में अब नहीं आएंगे। 1 जुलाई से 4 नवंबर तक के लिए यह छुट दी गई हैं। वहीं, इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि, सिर्फ भारतीय रुपया ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुए हैं और अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर काफी मजबूत हुआ है और सिर्फ रुपया ही एकमात्र करेंसी नहीं है, जो कमजोर हुआ है, लिहाजा, ऐसी कोई बात नहीं है, कि भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कोई बड़ी समस्या है।

CHANDRA PRAKASH YADAV

Why So Serious??

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