Sanjiv Mehta: ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम हम सभी ने कभी ना कभी तो सुना ही है। ये एक ऐसी कंपनी है जिसकी स्थापना भारत से व्यापार के लिए की गई थी। लेकिन बाद में कंपनी की साम्राज्यवादी आकांक्षाएं जाग गई एवं भारत की रियासतों में फूट डालकर राज करो की नीति अपनाई। हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जाकर भारत के क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई लड़ी है। भारतीय इतिहास के पन्नों में ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम काले अक्षरों में लिखा हुआ है।
चूंकि आज हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि किसी समय भारतीयों पर राज करने वाली कंपनी आज एक भारतीय के हाथ में है। हम बात कर रहे हैं भारतीय बिजनेसमैन संजीव मेहता के बारे में। बता दें कि संजीव मेहता भारतीय बिजनेसमैन है जिसने महज 20 मिनट में ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीद लिया था। तो चलिए आज हम बताते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी के बनने, इसकी भारतीयों पर राज करने एवं संजीव मेहता द्वारा इसे खरीदने के बारे में।
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16 दिसंबर 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत हुई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी की जब शुरुआत हुई थी तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि 1 दिन यह कंपनी दुनिया के कोने कोने में पहुंचकर बिजनेस करेगी। हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी समुंद्र के जरिए ब्रिटेन तक माल लाने का काम करती थी। स्थापना के बाद से ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगातार अपना प्रसार किया एवं धीरे-धीरे दुनिया के कई देशों में व्यापार करने लगी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत से चाय, मसाले सहित दूसरी ऐसी चीजों का व्यापार किया जो यूरोपीय देशों में भी मौजूद नहीं थे।
विभिन्न प्रकार के व्यापारी एवं अपने विस्तार वादी नीति की वजह से जल्द ही ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार पूरी दुनिया में फैल गया। ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक वक्त में पूरी दुनिया के करीब 50 फ़ीसदी ट्रेंड पर ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया था। अपने इस दौलत के दम पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई देशों पर कब्जा करना शुरू किया। हालांकि कंपनी ने भारत पर भी करीब 200 सालों तक अपना अधिकार जमाया।
सन् 1857 में भारत में मेरठ से आजादी के लिए पहला विद्रोह हुआ। भारतीय क्रांतिकारियों के विद्रोह का ऐसा असर हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी का कारोबार रातों-रात ही आसमान से जमीन पर आ गिरा। विद्रोह की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में काम करना मुश्किल हो रहा था। वो भारतीय मसालों को यूरोपीय देशों तक नहीं भेज पा रही थी। ऐसे में धीरे-धीरे करके ईस्ट इंडिया कंपनी गायब हो गई।
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भारत से जाने के बाद से ईस्ट इंडिया कंपनी का मुनाफा लगातार कम होता गया एवं कंपनी डूबने के कगार पर आ गई। यहां तक कि ब्रिटिश सरकार ने भी ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद करने से साफ-साफ इंकार कर दिया। चूंकि कंपनी का नाम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था यही वजह थी कि कंपनी के मालिक इसे घाटे में भी चलाते रहे।
वहीं दूसरी तरफ ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से जा चुकी थी लेकिन भारतीय लोगों के मन में ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए हमेशा रंज एवं बदले की भावना रही। हालांकि कुछ ऐसी ही भावना भारतीय बिजनेसमैन Sanjiv Mehta के मन में भी थी। 2003 में जब संजीव मेहता को यह पता चला कि ईस्ट इंडिया कंपनी अब कभी अपने पैरों पर नहीं खड़ी हो सकती है तो वह 1 दिन कंपनी के ऑफिस में पहुंचे।
संजीव मेहता ने महज 20 मिनट के लिए कंपनी के ऑफिस में रुके एवं एक नैपकिन पर दाम लिखकर कंपनी के मालिकों को दे दिया। कंपनी को बचाने के लिए उसके मालिकों ने वह दाम लेकर कंपनी के 21 फ़ीसदी शेयर संजीव मेहता को बेच दिए।
बता दे कि Sanjiv Mehta सिर्फ यही नहीं रुके उन्होंने महज 1 साल के अंदर ईस्ट इंडिया कंपनी के बाकी के 38 स्टाॅक होल्डर से उनके शेयर खरीद लिए। जबकि भारतीय कारोबारी आनंद महिंद्रा ने भी Sanjiv Mehta की ईस्ट इंडिया कंपनी में इन्वेस्ट किए है। इस प्रकार किसी दिन भारतीयों पर राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी पर एक भारतीय का मालिकाना हक हो गया।
गौरतलब है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीद कर करोड़ों भारतीयों को गर्व का अहसास कराने वाले संजीव मेहता मुंबई एक गुजराती परिवार में जन्मे थे। संजीव मेहता के दादा गफूरचंद मेहता 1920 के दशक से ही यूरोप में हीरे का कारोबार शुरू कर चुके थे। हालांकि बाद में Sanjiv Mehta के पिता ने इसे आगे बढ़ाया। गफूरचंद 1938 में भारत लौट आए थे।