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Role of Muslims in Indian Independence- जंगे-आजादी में मुसलमानों की कुर्बानियां..

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Role of Muslims in Indian Independence: हिंदुस्तान को अंग्रेजी के गुलामी से मुक्त कर भारत राष्ट्र के निर्माण में हिंदुओं के साथ मुसलमानों का भी अहम योगदान रहा है। मुगलों के आने के बाद भारतीय राष्ट्र का वह स्वरूप नहीं रहा जो प्राचीन काल में था। हमारे मुल्क की संस्कृति और सभ्यता के स्वरूप में भी बहुत सारे बदलाव आए और एक साझी हुई संस्कृति का निर्माण हुआ था। जंगे-आजादी में हिंदू भाइयों के साथ ही मुसलमानों ने भी अपनी जान निछावर कर दी है लेकिन आज कुछ तत्व देश के मुसलमानों को गद्दार और देशद्रोही साबित करने पर तुले हुए हैं।

शायद उन लोगों ने आजादी के इतिहास को ठीक से पढ़ा ही नहीं है। कुछ खामियां इतिहासकारों की भी रही है क्योंकि उन्होंने मुसलमानों की योगदान को उस तरह से इतिहास के पन्नों पर दर्ज ही नहीं किया है जिस तरह से अन्य नायकों के योगदान को रेखांकित किया गया है।

लहू बोलता है

Role of Muslims in Indian Independence

यही सबसे बड़ी वजह है कि, इतिहास लेखन में पूरी तरह न्याय न होने के कारण भी मुसलमानों के योगदान को ठीक से जाना नहीं गया है। सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी और कृष्ण कल्कि ने ” लहू बोलता है” नाम से ऐसी ही किताब लिखी है, जिसमें जंगे-आजादी के मुस्लिम किरदारों की शौर्य गाथा छिपी हुई है। इस वतन को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए न जाने कितने मुस्लिम और हिंदू भाई फांसी के फंदे पर लटके और कितने शहीद हुए, कितनों को काले पानी की सजा हुई,

कितने गिरफ्तार हुए इसका लेखा-जोखा संभवतः पहली बार ही इस किताब में पेश किया गया है। इस किताब ( लहू बोलता है) में उन्होंने उन सभी मुस्लिम किरदारों के नाम भी दिए हैं। आज हम तो जंगे-आजादी में भाग लेने वाले चंद नेताओं को ही जानते हैं लेकिन कादरी साहब ने इन लोगों की एक लंबी लिस्ट पेश की है और बंटवारे की कथा को सही परिप्रेक्ष्य में रखा हुआ है।

उलेमाओं को निर्वस्त्र कर जिंदा जला दिया गया

इस किताब ( लहू बोलता है) में मुस्लिम लीग के निर्माण की ऐतिहासिक परिस्थियों का भी उल्लेख है और कांग्रेस के भीतर मुसलमानों को लेकर की गई अंदरूनी सियासत का भी वर्णन किया गया है। 1857 की लड़ाई हिंदुओं और मुसलमानों भाइयों ने साथ मिलकर लड़ी थी और उस जंग में एक लाख मुस्लिम मारे गए थे। कानपुर से फर्रुखाबाद के बीच सड़क के किनारे जितने भी पेड़ थे उन पर अंग्रेजों ने मौलानाओं को फांसी दे दी थी। इसी तरह राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक से लेकर खैबर तक भी जितने पेड़ थे उन पर भी कई उलेमाओं को फांसी पर लटकाया गया था और करीबज्ञ14 हजार उलेमाओं को सजा-ए-मौत दे दी गई थी।

दिल्ली में जामा मस्जिद से लाल किले के बीच मैदान में कई उलेमाओं को निर्वस्त्र कर जिंदा जला दिया गया था। लाहौर की शाही मस्जिद में भी प्रति दिन 80 मौलवियों को फांसी देकर उनकी लाशें रावी नदी में फेंक दी जाती थीं। कादरी साहब ने अपनी किताब ( लहू बोलता है) में लिखा है कि फांसी पर चढ़ने वाले और काला पानी की सजा पाने वाले क्रांतिकारियों में 75 प्रतिशत मुसलमान थे।

इतना ही नहीं, ये सभी शहीद हुए मुसलमान हैदर अली और टीपू सुल्तान के समय से ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे। अंग्रेजों ने कई मुसलमानों को सरेआम 500 सौ से लेकर 900 कोड़े तक मारे गए और अवाम में यह झूठ फैलाया गया कि इकबाल द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के पैरोकार थे जबकि उन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ गीत लिखा। जिस दिन हमे आजादी मिली उस रात पार्लियामेंट में मौजूद लोगों ने यही तराना कोरस में गाया था।

फतवा देशप्रेम का

Role of Muslims in Indian Independence

उस दौर में ‘मौलाना हुसैन अहमद मदनी’ ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ फतवा दिया था कि अंग्रेज़ों की फौज में भर्ती होना हराम है। अंग्रेज़ी हुकूमत ने मौलाना के खिलाफ मुकदमा दायर कर सुनवाई में पूछा,

“क्या आपने यह फतवा दिया है कि अंग्रेज़ी फौज में भर्ती होना हराम है?”

मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने बेखौफ होकर जवाब दिया,

‘हां फतवा दिया है और सुनो, वही फतवा अब मैं इस अदालत में अभी दे रहा हूं और याद रखो आगे भी हमेशा ज़िन्दगी भर यही फतवा देता रहूंगा।’

इस पर जज ने कहा, “मौलाना तुम्हें फांसी की सज़ा होगी।”

जज की बातों का जवाब देते हुए मौलाना कहा कि,

” फतवा देना मेरा काम है और सज़ा देना तेरा काम, तू सज़ा दे।

मौलाना मुस्कुराते हुए अपनी झोली से एक सफेद कपड़ा निकाल कर मेज पर रखते हैं।

जब अंग्रेज जज पूछते हैं, “यह क्या है मौलाना?” मौलाना कहते हैं कि, यह कफन का कपड़ा है। मैं देवबंद से कफन अपने साथ ही लेकर आया था। जब जज ने मौलाना हुसैन अहमद मदनी को कहता है कि कफन का कपड़ा तो तुम्हें यहां भी मिल जाता।

अंग्रेज जज की इस बात का मुंहतोड़ जवाब देते हुए मौलाना ने कहा कि,

जिस अंग्रेज़ हुकुमत की सारी उम्र मुखालफत की उसका कफन पहनकर कब्र में जाना मेरे ज़मीर बिल्कुल भी को गंवारा नहीं है। गौरतलब बात है कि फतवे और इस घटना के असर में हज़ारों लोगों ने फौज़ की नौकरी छोड़ दी और वतन के लिए जंग-ए-आज़ादी में शामिल हो गए।

शाह अब्दुल अजीज़ का अंग्रेज़ों के विरुद्ध फतवा

Role of Muslims in Indian Independence

Role of Muslims in Indian Independence, 1772 मे शाह अब्दुल अजीज़ ने भी अंग्रेज़ हुकुमत के खिलाफ जेहाद का फतवा दिया था ( यह दौर हमारे इतिहास 1857 की मंगल पांडे की क्रांति को आज़ादी की पहली क्रांति मान जाता हैं)। शाह अब्दुल अजीज़ ने 85 साल पहले भारतवासियों के दिलों मे आज़ादी की क्रांति की लौ जलाई थी। इस जेहाद के ज़रिए ही उन्होंने कहा कि इन अंग्रेज़ों को देश से भगा कर आज़ादी हासिल करो।

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ये किन्नर तिरंगा लेकर क्यूँ रोड पर निकल पड़े हैं ? 

Role of Muslims in Indian Independence, यह फतवे का यह नतीजा था कि मुसलमानों के अंदर एक शऊर पैदा हुआ और लोग बढ़-चढ़कर जंगे आजादी में शामिल होकर शहीद होने लगे।

Role of Muslims in Indian Independence, आज बड़े ही अफ़सोस की बात है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इतने मुसलमानों के शहीद होने के बावजूद भी लोगों को मुसलमानों के योगदान के बारे में बताया ही नहीं जाता।

जंगे आजादी में शामिल होने वाले मुसलमान

Role of Muslims in Indian Independence

Role of Muslims in Indian Independence, शेरे-मैसूर टीपू सुल्तान, नवाब सिराजुद्दौला, खान अब्दुल गफ्फार खान, अशफाक उल्लाह खान, शहज़ादा फिरोज़ शाह, मौलाना अहमदुल्लाह शाह, मौलाना ज़फर अली खान, और बेगम हज़रत महल, असफ अली जैसे कई मुसलमानों ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई है।

Role of Muslims in Indian Independence, दुःख इस बात का है कि जिन मुसलमानों वतन को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया आज कुछ लोगों को उन मुसलमानों की कुर्बानी बिल्कुल याद नहीं है।आज के वक्त में कुछ मुठ्ठी भर लोगों ने यह भ्रम फैला रखा है कि मुसलमानों ने इस देश की आज़ादी के लिए कुछ किया ही नहीं है। ऐसे में उन्हें यह जान लेनेकी जरूरत है कि मुसलमान हिन्दुस्तान के लिए कुर्बानियां देतें आएं हैं और हमेशा देते रहेंगे।

मैं एक लेखक हूं और जो कुछ मैंने यहां लिखा है वह इस संकल्प व आकांक्षा के साथ लिखा है कि मेरे विचार समाजोपयोगी – मानवोपयोगी बन पाएं।

इस क्रम में ‘Bharat Ek Nai Soch’ का उद्देश्य किसी पर भी आघात या आलोचनात्मक प्रहार करना या किसी को भी नीचा दिखाना बिल्कुल ही नहीं है। साथ ही हमारा उद्देश्य साहित्य प्रवाह को अवरुद्ध करना भी नहीं है। मैं अपने बारे में यह बताती चलूं कि मैं लगभग 6 वर्षों से पत्रकारिता और साहित्य की सेवा में संलग्न हूं और मुझे अपने देश और भारतीय होने पर फख्र है।

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