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B-Tech स्टूडेंट्स क्यों सीख रहे वेद पुराण, नहीं पहनते चप्पल, मोबाइल पर भी लगा हुआ है बैन

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Rajasthan के राजसमंद गांव में कई युवा वैदिक और सनातन संस्कृति का ज्ञान लेने के लिए आते हैं.

क्या ख़ास है इस गांव में?

Rajasthan के राजसमंद का कसार गांव (Kasar Village) कई मायनों में काफी खास है. यह गांव आज भी संस्कार और सनातन शिक्षा से भावी पीढ़ी को संस्कारित भी कर रहा है. चारभुजा के पास बसे हुए इस गांव में 20 वर्षों से वेद आधारित शिक्षण संस्कार दिए जाते हैं. हर वर्ष गांव में 15 दिन के लिए वैदिक शिक्षा के लिए समर कैंप भी लगता है. जिसकी फीस है मात्र 300 रुपये है. 15 दिन के लिए स्टूडेंट्स वेद, पुराण एवम सनातन धर्म-संस्कृति की शिक्षा भी लेते हैं.

हजारों वर्षों पहले की आश्रम व्यवस्था को भी जीते हैं. यहां लोग 15 दिन नंगे पांव रहते हैं. बहुत ही अनुशासित डेली रूटीन को फॉलो करते हैं. सात्विक भोजन भी करते हैं. श्लोक-मंत्र के साथ साथ संस्कार भी सीखते हैं. खाली समय में मोबाइल गेम खेलना यहां पर सख्त मना है. इसकी ट्रेनिंग लेने वालों में बीसीए, बीटेक, हाइली एजुकेडेट लोग, कई व्यापारी और प्रोफेशनल्स भी शामिल हैं.

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यह शिक्षण 20 वर्षों से दिए जा रहें हैं

आधुनिकता और पश्चिमी संस्कृति के इस होड़ में युवा वर्ग अपनी वैदिक और सनातन संस्कृति को भी भूलता जा रहा है, मगर धर्म नगर राजसमंद जिले का एक गांव ऐसा भी है जो कि आज भी संस्कार और सनातन शिक्षा को ना सिर्फ जिंदा रखे हुए है, बल्कि उसे आने वाली पीढ़ी में भी संस्कारित कर रहा है. राजसमंद जिले के चारभुजा के पास बसे हुए कसार गांव में हर वर्ष की ही तरह इस वर्ष भी वैदिक कैंप 21 मई से 5 जून तक चला. यहां पर 20 वर्षों से वेद आधारित शिक्षण संस्कार भी दिए जाते हैं.

अब तक 7 हजार से भी ज्यादा स्टूडेंट्स यहां सनातन संस्कृति की शिक्षा ले चुके हैं. और इसकी ट्रेनिंग लेने वालों में बीसीए, बीटेक, काफी उच्च शिक्षित लोग, व्यापारी और प्रोफेशनल्स लोग भी शामिल हैं. कसार गांव के इस रेजिडेंशियल कैंप में 15 दिन तक स्टूडेंट्स वेदों का ज्ञान प्राप्त करते हैं.

अरावली की वादियों में एक ऐसा गांव भी है जहां पर देश के कोने-कोने से काफी फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले स्टूडेंट और प्रोफेशनल्स वैदिक मंत्रोच्चार भी सीखने आते हैं. इस गांव में हर वर्ष 15 दिन के लिए समर भी कैंप लगता है, इसकी फीस मात्र 300 रुपये है. 15 दिन के लिए स्टूडेंट्स वेद, पुराण एवम सनातन धर्म-संस्कृति की उच्च शिक्षा लेते हैं. हजारों वर्षो पहले की आश्रम व्यवस्था को भी जी कर देखते हैं.

यहां पर लोग 15 दिन नंगे पांव रहते हैं. अनुशासित डेली रूटीन को भी फॉलो करते हैं. सात्विक भोजन भी करते हैं. श्लोक-मंत्र के साथ संस्कार भी सीखते हैं. खाली समय में मोबाइल चलाना या गेम खेलना यहां पर बिल्कुल ही मना है. यहां पर फील्ड में वॉलीबॉल, फुटबॉल या कबड्‌डी आप भले ही खेल सकते हैं.

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कसार गांव की क्या है विशेषता?

इस गांव में कोई भी मोबाइल नेटवर्क नहीं है. शहर और इंटरनेट से दूर स्थित 15 दिनों तक स्टूडेंट सिर्फ सनातन संस्कृति को ही जीते हैं. सुबह सुबह 5 बजे जागरण भी होता है, दिनचर्या में संध्या योगासन, उपासना, देवता नमस्कार, भद्रसूक्तम, रूद्रसूक्तम, पुरूषसूक्तम, रूद्राष्टाध्यायी आदि वैदिक मंत्रोच्चार का अध्ययन भी कराया जाता है. इसके अतिरिक्त भी खेल और भाषण भी सनातन संस्कृति से जुड़े ही होते है. इस कैंप में 17 गुरुओं की टीम भी है.

यह सभी शिक्षक सनातन वैदिक ज्ञान की शिक्षा सभी स्टूडेंट्स को देते हैं. शिविर के संचालक उमेश द्विवेदी ने बतलाया कि वर्ष में एक बार यहां 15 दिनों के लिए कैंप भी लगता है. इस बार 12 से 53 वर्ष तक के स्टूडेंट्स भी शामिल हुए.

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यहां पर कैंप में हिस्सा लेने के लिए एक फॉर्म भी भरवाया जाता है. जिसकी फीस रखी गई है 300 रुपए. सीटें भी 300 ही होती है. 27 स्टूडेंट इस बार एक्सट्रा आ गए थे. तो भी इन्हें लौटाया नहीं गया बल्कि कैंप में शामिल कर लिया गया. तो इस बार कैंप में 327 स्टूडेंट्स रहे. यहां पर सभी छात्रों को सूती कपड़े की धोती पहननी पड़ती है. फैशनेवल कपड़े और जूते के साथ सभी इलेक्ट्रॉनिक आइटम यहा बैन हैं. डेली रूटीन और डाइट पहले से तय है.

दुनिया काफी तेजी से टेक्नोलॉजी की तरफ भाग रही है, मगर वेदों का ज्ञान समझना भी आवश्यक है. शिक्षा के साथ साथ ही संस्कार भी जरूरी हैं. राजस्थान समेत महाराष्ट्र,  गुजरात, मध्य प्रदेश और देश के कोने-कोने से अब तक 7 हजार से भी ज्यादा स्टूडेंट्स यहां वेद का अध्ययन कर चुके हैं.

स्टूडेंट बनकर आए मुंबई के व्यवसायी

Rajasthan, इस बार इस कैंप में मुम्बई के कपड़ा व्यवसायी संदीप सुरेश(53) भी शामिल हुए. उन्होंने बताया कि यहां जागने से लेकर सोने तक डेली का रूटीन सब सेट है. सनातन संस्कृति, वेद, संस्कारों की शिक्षा भी मिलती है. इस भागदौड़ की जिंदगी में मोबाइल नेटवर्क से कोसो दूर, सोशल मीडिया से दूर, इस आपाधापी से दूर शुद्ध वातावरण में अपनी जड़ों को जानने का अवसर भी मिलता है. इस शिविर में रिटायर्ड कर्मचारी और कई अधिकारी भी शामिल होते हैं. बच्चों के साथ बैठ कर के वेद ज्ञान भी प्राप्त करते हैं. कसार गांव का ये कैंप अपने आप में ही बेहद यूनिक और अनूठा भी है.

CHANDRA PRAKASH YADAV

Why So Serious??

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