एक लेटेस्ट रिसर्च यह बता रहा है कि वो कौन सा समय है जब सदियों से बढ़ती दुनिया की आबादी गिरने लगेगी। ये बात एक लैंसेट की नई रिपोर्ट में उजागर हुई है। इस रिपोर्ट में ये आकलन किया गया है कि ऐसा कब होने वाला है। वैसे तो दुनिया भर की आबादी का यह बदलाव इसी सेंचुरी में शुरू होने वाला है।
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वर्तमान समय में दुनिया की आबादी 7.8 अरब मानी जा रही है। रिपोर्ट अनुसार साल 2064 तक दुनिया की आबादी में वृद्धि होगी और विश्व की आबादी बढ़कर 9.7 अरब हो जाएगी लेकिन इसके बाद इस में गिरावट आ जाएगी। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार साल 2100 में दुनिया की आबादी को गिरकर 8.79 अरब हो जाना चाहिए।
वैसे तो देखा जाए तो साल 2064 आने में अभी 53 साल का अंतराल बाकी हैं लेकिन ये तो तय है यही वो समय होगा कि जब दुनिया की आबादी सबसे उच्चतम बिंदू पर होगी। उस बाद के दौर में आबादी में गिरावट आने की कई वजहें होंगी । जिसमें कम होता जन्म दर और बुढ़ी होती बहुसंख्य आबादी शामिल है। दुनिया के कम से कम 23 देशों में आबादी में यह बदलाव होगा, जिसमें जापान, थाईलैंड, स्पेन, पुर्तगाल, साउथ कोरिया और दूसरे देश होंगे, इन सभी देशों की आबादी में 50 फीसदी तक की गिरावट आ जाएगी।
चीन एक ऐसा देश है जिसकी आबादी सबसे ज्यादा है। साल 2017 में वहां की आबादी 1.4 अरब थी लेकिन 2100 तक आधी गिरकर 73.2 करोड़ के आसपास ही रह जाएगी।
आबादी में गिरावट से जनसंख्या पर होगा असर
हालांकि कुछ देश ऐसे भी होंगे जहां जनसंख्या में वृद्धि भी होगी।
हालांकि रिपोर्ट तो ये भी कहती है कि बेशक कुछ देशों में आबादी गिरेगी और इसका असर दुनिया की जनसंख्या पर पड़ेगा लेकिन कुछ जगहें ऐसी भी होंगी जहां आबादी बढ़ेगी, मसलन उत्तरी अफ्रीकी, मध्य पूर्व और सहारा अफ्रीका जैसे देश, यहां की मौजूदा आबादी 1.03 अरब से बढ़कर 3.07 अरब हो सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में भी आबादी घटने लगेगी। फिलहाल तो हमारे देश में कुल आबादी 1.4 अरब के पास है, जो 2100 तक गिरकर 1.09 अरब होगी। पिछली बार जब दुनिया में आबादी में कमी आई थी, वो 14वीं सदी का दौर था। उस वक्त जनसंख्या में गिरावट की वजह प्लेग था। जनगणना संबंधित ये अध्ययन इंस्टीट्यूट फार हेल्थ मीट्रि एंड इवैल्यूवेशन के ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर स्टेन एमिल वॉलसेट की अगुवाई में हुआ है। प्रोफेसर का कहना है कि अगर हमारा अनुमान सही तो आबादी में बदलाव होने की मुख्य वजह प्रजनन क्षमता में आई कमी होगी, कोरोना या अन्य कोई महामारी नहीं।
इस मामले में रिपोर्ट यह कहती है कि गर्ल्स एजुकेशन बेहतर होने से गर्भ रोकने के तरीके बढ़ेंगे और इससे प्रजनन क्षमता और आबादी दोनों घटेगी। साल 2017 में प्रजनन क्षमता की दर 2.37 थी जो 2100 में 1.6 रह जाएगी।
वैसे तो इस बारे में दुनिया के मशहूर साइंटिस्ट मिशियो काकु ने एक किताब “फिजिक्स ऑफ फ्यूचर -द इनवेशंस दैट विल ट्रांसफॉर्म अवर लाइव्स” में भरपूर तरीके से लिखा है। साइंटिस्ट ने लिखा है कि वैसे मौसम विज्ञानियों के अनुसार 2030 तक जिस तरह मौसम करवट लेगा, वो समग्र मानव प्रजाति के लिए संहारक साबित होगा। गरमी भी बढऩे लगेगी और पानी की कमी के साथ हवा में आक्सीजन की भी कमी हो जायेगी। ऐसा अनुमान भी है कि हमारी आबादी में सौ करोड़ तक की कमी आ सकती है। हालांकि इस बारे कुछ और वैज्ञानिकों का मत भिन्न भिन्न है, उनका कहना है कि आबादी पर रोक मौसम से कहीं ज्यादा ग्रोथरेट में कमी आने से ही होगी।
वैसे तो आबादी कम होने की बहुत सी वजहें होंगी। इसमें प्रजनन दर घटना, गर्ल्स एजुकेशन बेहतर होने से गर्भ निरोध के बारे में ज्यादा चेतना फैलना और मौसम का प्रहार भी होगा।
चूंकि बढ़ती हुई टेक्नोलॉजी के कारण हम मशीनों के गुलाम हो जाएंगे और हमारा ज्यादातर काम हम मशीनों से ही करेंगे। मशीनों की गुलामी से हम ग्लोबल वार्मिंग व प्रकृति से दूर होते जाएंगे लिहाजा नई नई बीमारियों के लपेटे में भी आएंगे। मशीनें हमें आराम तलब कर देंगी इससे हमारी मांसपेशियों में मजबूती नष्ट होती जायेगी और हम कमजोर होते जाएंगे। बेशक चिकित्सा प्रोद्यौगिकी और एंटी बायोटिक के विकास से हमारे शरीर की प्रति रक्षा प्रणाली पर नकारात्मक असर ज्यादा हो सकता है।
मशहूर साइंटिस्ट मिशियो काकु की “फिजिक्स ऑफ फ्यूचर -द इनवेशंस दैट विल ट्रांसफॉर्म अवर लाइव्स” की किताब कहती है कि, “दूसरे ग्रहों और अंतरिक्ष पर कालोनियां बनाने की योजनाएं शुरू होगी। साथ ही दुनिया इतनी आगे बढ़ जाएगी कि किसी नये सौरग्रह का पता भी लग सकता है। हालांकि अंतरिक्ष की उड़ानें बहुत एक नोर्मल बात बन जाएंगी। किंतु, प्राकृतिक ऊर्जा के संसाधनों के खत्म होने की उल्टी गिनती भी शुरू हो जायेगी लिहाजा वैकल्पिक ऊर्जा के लिए सूर्य के विकिरण या अंतरिक्ष के दूसरे ग्रहों पर खोज की मुहिम को स्वरुप दिया जायेगा।
विश्व भर के तमाम देशों के बीच इन सब मुद्दों को लेकर एक नया मंच बन जायेगा। दुनिया की आबादी बढ़ने की बजाए घटती ही जाएगी। इसकी मुख्य वजह ग्रोथ रेट में कमी के अलावा मशीनों और इंटरनेट आधारित जीवन पर आश्रित हो जाने के कारण प्रजनन ताकत में भी कमी आना हो सकता है। उस बाद पुरानी परंपराओं को सहेजने की नाकाम कोशिशें जारी रहेंगी। ऐसा दौर आ जाएगा जब पुरानी जीवन शैली और विकास संग्रहालय की वस्तु बन जाएगे।”