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High Court of Kerala: क्या सिर्फ प्यार करने का मतलब ही है महिला शारीरिक संबंध के लिए राजी..?

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केरल हाईकोर्ट गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड के रिलेशनशिप पर कहता है कि प्यार में होने का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि महिला ने संबंध बनाने के लिए सहमति दे दी है। फैसला सुनाते हुए जस्टिस आर नारायण पिशारदी ने बताया कि मजबूरी वश लाचारी को किसी की सहमति नहीं कहा जा सकता है। सबमिशन व सहमत के बीच एक बड़ा ही अंतर है। हालांकि सहमति में सबमिशन शामिल होता है, लेकिन वहां पर बातचीत का पालन नहीं होता है।

क्या कहा केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में?

आपको बता दें कि केरल हाईकोर्ट ने 26 साल के श्याम सिवान की अपील पर यह सुनवाई की। श्याम को ट्रायल कोर्ट ने रेप के एक मामले में दोषी ठहराया था, जिसके बाद से उसने केरल हाईकोर्ट से यह अपील की थी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बताया कि दोषी श्याम और पीड़िता एक दूसरे से प्यार करते थे। श्याम पीड़ित लड़की को वर्ष 2013 में कर्नाटक कि मैसूर ले गया था। उसने वहां पर जबरन पीड़ित के साथ संबंध बनाए थे। उसने पीड़िता के सारे के सारे गहने बेच दिए। इसके बाद से श्याम पीड़िता को गोवा ले गया जहां पर उसने फिर से युवती से रेप किया। श्याम ने पीड़िता को यह धमकी दी थी कि वो अगर उसके साथ नहीं चलेगी तो वो उसके घर के सामने आत्महत्या कर लेगा।

हाई कोर्ट- विरोध न करना सहमति नहीं हो सकती.

हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता ने भले ही कुछ मौकों पर श्याम का विरोध नहीं किया, लेकिन इसे संबंध बनाने के लिए सहमति नहीं मानी जा सकती हैं। एक तरफ से वह पैसिव सबमिशन था क्योंकि पीड़िता के पास कोई और विकल्प था ही नहीं।

चूंकि केरल हाईकोर्ट ने POCSO के अंतर्गत निचली अदालत की ओर से दी गई सजा को खारिज कर दिया है, क्योंकि वारदात के समय पीड़िता के उम्र का पता भी नहीं चल पाया था। लेकिन जस्टिस पिशारदी ने अपने आदेश में यह कहा है कि श्याम दोषी हैं तथा उसको आईपीसी की धारा 366 एवं 377 (अपहरण एवं बलात्कार) के अंतर्गत सजा मिलेगी। हालांकि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के 2 दिन बाद आया है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए यह बताया कि स्किन-टू-स्किन टच किए बिना कोई अगर नाबालिक को गलत तरीके से छूता है, तो उससे भी यौन शोषण ही माना जाएगा और यह एक क्राइम है।

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