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JP Nadda ने कहा – ज्ञान विज्ञान की उत्पत्ति का बीज है संस्कृत

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JP Nadda: यहां अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के उत्कर्ष महोत्सव कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नड्डा ने कहा कि हमारे पुरातन ज्ञान को संजो कर रखने वाली भाषा भी संस्कृत है। जहां संस्कृत है वही संस्कृति है। वही संस्कृति के साथ-साथ विकास के माध्यम भी है। इसलिए जहां संस्कृत होगी वहां हमारे विचारधारा होगी

JP Nadda ने संबोधित करते हुए कहा कि

JP Nadda ने कहा कि भारतीय परंपरा, भारतीय संस्कृति, भारतीय उल्लेखों को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ।उन्होंने संस्कृत और उसकी महत्ता का जिक्र करते हुए कहा कि दुनिया में भारत का जो कोई मुकाबला नहीं है उसका मूल कारण हमारी संस्कृति है। कई देश अगर मानवता की दृष्टि से काम करने का सोच सकते हैं तो यह प्राथमिक स्तर पर ही है ।लेकिन भारत में यह बहुत विकास है।

हमारी यह जो ताकत है वह हमारी संस्कृति से ही आती है ।भाजपा अध्यक्ष ने विपक्षी दलों से प्रेस के ज़रिए सवाल किया उनकी सरकार में कोई भी केंद्र विश्वविद्यालय क्यों नही बने?आज ही क्यों केंद्रीय विश्वविद्यालय बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक दृष्टि से ना सोचते हुए तीनों विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया।

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प्रधानमंत्री मोदी की नीति स्पष्ट है

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नियत साफ है इसलिए नीति भी स्पष्ट ।है जेपी नड्डा ने कहा कि कई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और स्वास्थ्य नीति दोनों ही भारत की जड़ों से जुड़ी हुई है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा का विशेष ध्यान रखा गया है। संस्कृत के बारे में इसमें चिंता की गई और चर्चा को आगे बढ़ाया गया है ।उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति को भारतीय परिवेश को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है।

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देश में होने वाले चुनाव पर भी बयान दिया JP Nadda ने

उन्होंने कहा प्रतिवर्ष चुनाव इस देश की नियति बन चुका है ।फरवरी-मार्च में पांच राज्यों के चुनाव संपन्न हुए। और इसी साल नवंबर दिसंबर 2022 से अगले साल के अंत दिसंबर 2023 के बीच 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं तथा 2024 में लोकसभा के आम चुनाव होने हैं साथ में कुछ विधानसभाओं के भी चुनाव होंगे तो क्या लोकतंत्र का मतलब है प्रतिवर्ष चुनाव ?इसे लोकतंत्र की उन्नति नहीं बल्कि लोकतंत्र की दुर्गति ही कहेंगे ।

जब भी चुनाव होता है आचार संहिता लगने से विकास के कार्य ठप हो जाते हैं नई कार्यों की घोषणाएं भी नहीं हो पाती शासन और प्रशासन का सारा ध्यान चुनाव को सकुशल संपन्न करने पर होता है। एक तरह से शासन और प्रशासन का कार्य लगभग पंगु जैसा हो जाता है । इसलिए जनता के आवश्यक कार्य पर भी आधे में लटक जाते हैं।

देश में लंबे समय से मांग की जा रही कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं और साथ ही साथ पंचायत चुनाव को भी कुछ आगे पीछे करके साथ ही निपटा लिया जाए इससे समय और जनता का पैसा दोनों बचेगा कार्यों पर भी कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा।

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परंतु सवाल है कि क्या ऐसा हो पाएगा और यदि होगा तो कब तक भारत जैसे विशाल लोकतंत्र के लिए चुनाव सुधार का मुद्दा बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है और उम्मीद की किरण है तब और भी बलवती हो जाती हैं जब केंद्र की मोदी सरकार भी पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने को लोकतंत्र के लिए बेहतर मानती है और भविष्य में ऐसा होने की उम्मीद थी रखती है चुनाव आयोग भी पूरे देश में कचरा कराने के लिए स्वयं को तैयार होने की बात करता है

संवैधानिक संस्थाओं के द्वारा पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रति सकारात्मक विचार व्यक्त करने से जनता के मन में ऐसी उम्मीद बनती दिखती है कि शायद निकट भविष्य में पूरे देश में एक साथ चुनाव देखने को मिले।

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