गरीबी से बाल मजदूरी या बाल मजदूरी से गरीबी

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बाल मजदूरी हमारे देश की समस्या नहीं बल्कि समस्या की जड़ है,

बाल मजदूरी हमारे भारत की ही नहीं पूरी दुनिया की एक सामाजिक बुराई है। कानून द्वारा निर्धारित की गई उम्र से कम उम्र के श्रमिकों को बाल श्रमिक या बाल मजदूर कहते हैं। भारत के संविधान में 5 से 14 वर्ष तक के बच्चों को बाल श्रमिकों की श्रेणी में रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में बाल श्रमिकों की उम्र को 18 बताया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 15 साल तक के मजदूर बच्चों को बाल मजदूर कहते हैं। बाल मजदूरी दुनिया के सामने एक चुनौती बनी हुई है। वर्तमान में कोविड-19 की वजह से बाल मजदूरी का आंकड़ा बड़ा है।

यह सत्य है कि गरीबी के कारण ही बच्चों को मजदूरी करनी पड़ती है। लेकिन बाल मजदूरी गरीबी का एक बहुत बड़ा कारण है। कारखानों, दुकानों में बाल मजदूर कम वेतन पर मिल जाते हैं ।जिससे वयस्कों को रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है जिससे बेरोजगारी की समस्या पनपती है जो गरीबी का कारण बनती है। बाल मजदूरों से कम वेतन पर अधिक घंटे काम लिया जाता है।

वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में 5 से 14 साल के 25.96 करोड़ बच्चों में से 1.01 करोड़ बाल श्रम कर रहे थे। भारत में 2011 में लगभग 43 लाख से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करते पाए गए हैं। यूनिसेफ के मुताबिक दुनिया भर के कुल बाल मजदूरों में 12% की हिस्सेदारी अकेले भारत की है।

दुनिया में 5 से 17 साल के बीच 152 मिलियन कामकाजी बच्चे हैं जिनमें से 8 मिलियन बच्चे भारत में हैं। 152 मिलियन बच्चों में 73 मिलियन बच्चे खतरनाक काम करते हैं।जैसे कोयले की खदानों में कोयले का काम करना ,पटाखों की फैक्ट्री में काम करना आदि खतरनाक कामों में कभी-कभी बच्चों की मौत भी हो जाती है।

बाल श्रमिकों की सबसे ज्यादा संख्या अफ्रिका में है। यहां 7.5 करोड़ बच्चे बाल श्रम करते हैं। एशिया पेसिफिक में 6.5 करोड़ और अमेरिका में एक करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। 2011 की जनगणना में भारत में 10.1 मिलीयन बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। बाल श्रम निषेध दिवस में मुख्य रूप से बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस 2020 की थीम  “कोरोनावायरस के दौर में बच्चों को बचाना है”रखी गई।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और संयुक्त राष्ट्र संघ ने पूरी दुनिया में बाल श्रम से निपटने के के लिए सहयोग का आह्वान किया है। इन दोनों संस्थाओं ने संयुक्त रूप से एक रिपोर्ट जारी की चाइल्ड लेबर टाइम ऑफ क्राइसिस ए टाइम आफ्टर नामक इस रिपोर्ट ने कोविड-19 बालश्रम में बढ़ोतरी की आशंका जताई है। रिपोर्ट के मुताबिक यह महामारी आर्थिक संकट लेकर आई है जिससे अनेक बच्चों को बाल श्रम में अकेले जाने की आशंका है इन देशों में भारत ब्राजील और मैक्सिको देश रिपोर्ट में बताए गए हैं।

बाल मजदूरी पर सरकार ने आजादी के बाद ही नियम बनाने प्रारंभ कर दिए थे लेकिन साल 2002 में 12 जून को पहली बार बाल श्रम निषेध दिवस मनाया गया।

भारत में 21 लाख से ज्यादा बाल मजदूरों की संख्या के साथ उत्तर प्रदेश बाल मजदूरी में देश में भारी अंतर के साथ सबसे आगे है।

क्राई (चाइल्ड राइट्स एंड यू)द्वारा किए गए जनगणना के विश्लेषण के मुताबिक इन 2100000 में 7.5 लाख से अधिक बाल मजदूर तो निरक्षर हैं या फिर मजदूरी का उनके पढ़ाई नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। 2011 के जनगणना के अनुसार प्रदेश में 21 76706 बाल मजदूर थे। क्राई द्वारा किए गए जनगणना के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि राष्ट्रीय स्तर पर 7 से 14 आयु वर्ग के लगभग 1400000 बाल मजदूर अपना नाम तक नहीं लिख पाते हैं।

बाल मजदूरी के कारण का पता लगाने पर मालूम हुआ कि बच्चे गरीबी के कारण बाल मजदूरी के अंधेरे में गुम हो जाते हैं और उनका भविष्य अंधकार में हो जाता है। कुछ बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता इसलिए वह बाल मजदूरी की ओर अग्रसर हो जाते हैं इसका एक और कारण है की लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं होती इसलिए बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता। और कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिन्हें रंगीन सपने दिखाकर गांव के ही चाचा चाची शहर ले जाते हैं और वहां रंगीन सपनों की जगह बाल मजदूरी, खाने के नाम पर झूठन, कपड़ों के नाम पर उतरन और वेतन का तो दूर-दूर तक कुछ पता नहीं होता। इस प्रकार बच्चों का शोषण किया जाता है।

बाल मजदूरी का बच्चों और समाज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बाल मजदूरी से गरीबी को बढ़ावा मिलता है। बाल मजदूर सस्ती श्रमिक होते हैं जिससे वयस्क बेरोजगार हो जाते हैं जो करीबी किस का कारण बनते हैं। कहीं बाल श्रमिकों से ऐसी विषम परिस्थितियों में काम कराया जाता है जहां बच्चों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और बच्चों की उम्र कम हो जाती है और असमय ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। बच्चे मजदूरी करने लगते हैं अपनी शिक्षा को बीच में छोड़कर तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा पड़ती है और उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। बाल मजदूर शोषण का शिकार भी होते हैं बाल मजदूरों से कम वेतन पर अधिक घंटे काम लिया जाता है। बाल अपराध , गैरकानूनी खरीद-फरोख्त ,भिक्षावृत्ति को भी बाल मजदूरी से बढ़ावा मिलता है ।

हमारे भारत देश के संविधान में बच्चों के लिए संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं:-

*अनुच्छेद 24:- भारत में बाल मजदूरी पर रोक लगाने का प्रावधान

*अनुच्छेद 23:- बच्चों के व्यापार या उनसे जबरदस्ती काम करवाना दंडनीय अपराध है

*अनुच्छेद 15 (3):- बच्चों के साथ भेदभाव ना हो इसके लिए सरकार कोे अलग से कानून बनाने का अधिकार

*संविधान में नीति निदेशक तत्व में भी बच्चों के लिए कानून बनाने के लिए सरकार को निर्देश दिए गए हैं।

*अनुच्छेद 39:- बच्चों के स्वास्थ्य और उनके सारे के विकास के लिए जरूरी सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश देते हैं।

भारत सरकार बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के लिए निरंतर अधिनियम और योजनाओं को लागू करती रही है। आजादी के तुरंत बाद ही बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार ने निम्न कानून बनाए हैं:-

:- आजादी के तुरंत बाद ही कारखाना अधिनियम 1948 का निर्माण किया जिसमें 14 साल तक के बच्चों को कारखानों में काम करने की मनाही है।

:- 1952 में खदान अधिनियम अस्तित्व में आया जिसमें 18 साल से कम बच्चों को खदानों में काम करने को मना किया गया है।

:- 1986 में बाल श्रम अधिनियम अस्तित्व में आया जिसमें 14 साल से कम उम्र के बच्चों को जोखिम में डालने वाले व्यवसाय में काम करने से रोकने का प्रावधान किया

:- किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) के लिए अधिनियम 2015 में अनाथ, बेसहारा और माता-पिता द्वारा छोड़े गए बच्चों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय एडॉप्शन की व्यापक प्रक्रिया का प्रावधान करता है।

:- 2009 में निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा को अस्तित्व में लाया गया।गरीबी के कारण जो बच्चे पढ़ने में शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ नहीं थे अब वह भी निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर सकते थे।

भारत सरकार बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के लिए निरंतर अधिनियम और योजनाओं को लागू करती रहती है लेकिन कानूनों और योजनाओं के बाद भी बाल श्रमिकों में आशातीत गिरावट नहीं आई है । बाल मजदूरी का उन्मूलन एक कठिन चुनौती है। गरीबी के कारण बच्चों को श्रम करना पड़ता है। और सर्वे से पता चला है कि कुछ बच्चों का तो यहां तक कहना है कि अगर वह स्कूल चले जाएंगे तो कमाएगा कौन। शिक्षा के प्रति जागरूकता भी बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने की कठिन चुनौती है। सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं तो दुकान और कर खाने वाले बच्चों को ही रखना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें वेतन कम देना पड़ता है और अधिक काम ले लिया जाता है।

सरकार कानून तो बना देती है लेकिन यह कानून जमीन पर खरे नहीं उतरते हैं और कागजों में ही छप कर रह जाते हैं जिससे कानून का बाल श्रमिकों में कमी लाने के लिए अधिक प्रभावी नहीं होते हैं।

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