अमेरिका ने भारत तथा 10 अन्य देशों को जलवायु परिवर्तन से बहुत ज्यादा प्रभावित होने वाले देश का करार दिया है। एक सूची अमेरिका ने बनाई है। जिसमें भारत तथा 10 अन्य देशों को चिंता के देश के रूप में विशेष रूप से वर्गीकृत किया है। अमेरिका खुफिया समुदाय के आकलन के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग का बहुत ज्यादा खामियाजा इन देशों को झेलना पड़ेगा। लगातार गर्म हवाओं की शिव लहरी इन देशों में चल सकती हैं। यहां के लोगों को पानी बिजली तथा सूखा की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
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भारत के अलावा भी सूची में शामिल अन्य देश अफगानिस्तान, इराक, ग्वाटेमाला, म्यामार, कोलंबिया निकारागुआ, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, होंडुरास तथा हैती शामिल है। अमेरिका की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि खुफिया समुदाय ने आकलन किया है कि 11 देशों को गर्म तापमान, समुंद्र के पैटर्न में व्यवधान तथा मौसम में ज्यादा परिवर्तन का सामना करना पड़ सकता है। जिससे उनकी ऊर्जा, स्वास्थ्य, भोजन तथा पानी की सुरक्षा को खतरा होगा। राष्ट्रीय खुफिया अनुमान को (एनआईई) को जलवायु पर पहली बार राष्ट्रीय खुफिया निर्देशक के अमेरिकी कार्यालय द्वारा एक साथ रखा गया। जोकि 16 खुफिया एजेंसियों की देखरेख करता है। गुरुवार को इस रिपोर्ट को जारी किया गया। जिसमें जलवायु को लेकर चिंता के 2 छात्रों की भी पहचान की है। अफ्रीकी महाद्वीप के देशों का भी नाम दिया गया है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि खुफिया समुदाय ने 11 देशों तथा दो क्षेत्रों की पहचान की है। जो जलवायु परिवर्तन के खतरे से बहुत ज्यादा चिंतित है। रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि इन देशों तथा क्षेत्रों में कठिनाइयों से जल्दी उबरने की क्षमता बढ़ने से संभवत: अमेरिका के हितों लिए भविष्य के जोखिम को कम करने में विशेष रूप से सहायक होगा।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ज्यादा गर्मी पड़ने तथा तीव्र चक्रवातों से जल स्रोतों की दूषित होने की संभावना बनी हुई है। ऐसे में बीमारी से ग्रसित आबादी में बढ़ोतरी तो होगी ही तथा वह लोग दूसरे लोगों में बीमारी फैल आएंगे। आगे बताया गया है कि प्रोजेक्शन मॉडल बताते हैं कि भारत, ग्वाटेमाला, होंडुरास, इराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा हैप्पी में डेंगू की घटनाओं में वृद्धि होगी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत के साथ-साथ इन 11 देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अनुकूल होने के लिए वित्तीय संसाधनों या फिर शासन क्षमता की कमी है। इससे अस्थिरता प्रेरित प्रवास तथा विस्थापन प्रवाह के जोखिम भी बढ़ेगे। ये अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर भी असर डाल सकता है। इसीलिए पहले से ही उन्हें उच्च स्तर की विदेशी सहायता तथा मानवीय सहयोग पहुंचाने की जरूरत है।
अमेरिकी एजेंसियों के अनुसार यह देश जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाले प्राकृतिक तथा सामाजिक आपदाओं को झेलने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है। ऑफिस आफ डायरेक्टर आफ नेशनल इंटेलिजेंस की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल इंटेलिजेंस में पूर्वानुमान बताया गया है कि साल 2040 तक ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भू-राजनीतिक तनाव बढ़ेंगे जिसका अमेरिका की सुरक्षा पर भी असर होगा। भारत तथा अन्य दक्षिण एशिया में पानी की कमी की वजह से विवाद उभर सकते हैं। जैसे कि भारत से निकलती नदियों पर दक्षिण एशिया में पाकिस्तान अपने भूजल के लिए निर्भर रहता है। 1947 में दोनों परमाणु संपन्न देश आजाद होने के बाद से कई युद्ध लड़ चुके हैं। भारत की दूसरी तरफ बांग्लादेश की पूरी जनसंख्या 16 करोड़ करीब 10 वीं सदी पहले से ही तटीय इलाकों में रह रहा है। जोकि समुद्र के जल स्तर बढ़ने की सबसे ज्यादा खतरे में है। रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार बढ़ता तापमान दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया के सहारा क्षेत्र की 3 फ़ीसदी आबादी यानी 14.3 करोड़ लोगों को अगले 3 दशक में ही विस्थापित कर सकता है। दूसरे देशों की ओर यह लोग पलायन करेंगे।