Fiat Padmini: हमारे देश में मैक्सिमम परिवारों में हमेशा से कारें बहुत मायने रखती हैं। आज भी घर में नई गाड़ी का आना शान की ही बात समझी जाती है। आज कारों के नाम पर हमारे पास बहुत से ऑप्शन है। लेकिन एक वक्त था जब लोगों के पास कार के अधिक विकल्प नहीं हुआ करते थे। इसी दौर में भारत के मोटर बाजार में एक कार ने एंट्री ली तथा देखते ही देखते लोगों के दिलों पर राज करने लगी।
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Fiat Padmini कार की लोकप्रियता इतनी थी कि लोगों ने इसे सड़कों की रानी भी कहना शुरू कर दिया। आम लोगों के बीच ही नहीं बल्कि यह कार टैक्सी के रूप में मुंबई की सड़कों पर भी राज करती रही। हालांकि फिल्मों में भी टैक्सी के रूप में दौड़ती पद्मिनी को काले पीले रंग में रंगे हुए कई बार देखा गया है। 1970 से 1980 के दशक में यह कार भारत की सड़कों पर शान से दौड़ती थी।
आजादी के बाद से ही भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग में प्रीमियम ऑटो लिमिटेड तथा हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड के बीच प्रतिस्पर्धा थी। हालांकि हिंदुस्तान मोटर्स की कार एंबेस्डर को टक्कर देने के लिए भी प्रीमियम ऑटो ने इटली के मार्बल फैब्रिका इटेलियाना ऑटोमोबाइल टोरिनो कंपनी की एक प्रसिद्ध कार की कॉपी बनाई। जिसका नाम भारतीय रानी पद्मिनी के नाम पर ही Fiat Padmini प्रीमियम रखा गया।
बता दें कि 1964 में प्रीमियम ऑटो ने Fiat Padmini 1100 लाइट को भारत की सड़कों पर उतारा। देखते ही देखते यह कार लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी और इसने तीन चार दशक तक भारत की सड़कों पर रानी की तरह राज किया। भले ही Fiat Padmini नाम भारत के लोगों के लिए नया नहीं था। हालांकि फिएट ने 1951 में अपनी पहली कार के रूप में ‘फिएट 500’भारतीय बाजार में उतारी। इसके बाद से ही 1954 में फिएट 1100-103 आई जिसे डकर कहा जाने लगा। डकार को ही अपग्रेड करके फिएट पद्मीनी 1100 डी बनाई गई तथा 1964 में भारतीय बाजार में उतारा गया।
दरअसल पहले इस कार्य को फिएट 1100 डिलाईट के नाम से जाना गया। इसके बाद से 1974 में इस पद्मिनी नाम दिया गया तथा तब से यह इसी नाम से लोकप्रिय होती रहे। कार में 4 सिलेंडर वाला पेट्रोल इंजन भी था। जो कि 40 बीएचपी यानी कि ब्रेक हॉर्स पावर के साथ ही आता था। साथ ही साथ इस कार में कॉर्बोरेटर था। जिस प्रकार इसका नाम पद्मिनी था उसी तरह से यह सड़क पर कम रफ्तार में बड़ी नजाकत के साथ चलती थी। हालांकि इस कार की टॉप स्पीड 125 किमी प्रति घंटा की।
आपको बता दें कि फिएट पद्मीनी अपने दौर की कारों के बीच एक खास थी। इसकी खास होने की यह वजह थी। जैसे कि अंदर से बैठने में काफी आरामदायक थी। आजकल की कारों में भी ऐसा नहीं होता। लेकिन पद्मिनी के डैशबोर्ड के मैक्सिमम हिस्ट्री पर मेटल की सीट हुआ करती थी। इसके साथ ही साथ कार को ड्राइव करते हुए बिल्कुल सीधा बैठना पड़ता था। 1960 से 1970 के दशक में इस कार को रेसिंग ट्रैक पर भी बढ़ाया गया। जबकि उसी दौर में कार्य रेसिंग ट्रैक पर दौड़ने का दम नहीं रखती थी।
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ये कार फिल्मी सितारों से लेकर बड़े नेताओं तक की मनपसंद बन गई थी। और तो और इस कारण इस सादगी तथा सरलता से जीवन बिताने के लिए जाने जाने वाले देश के द्वितीय लाल बहादुर शास्त्री को भी अपनी और आकर्षित कर ली थी। जब उन्होंने 1964 में पीएम की कुर्सी संभाली तो उनके पास भी कोई कार नहीं थी तथा इसकी कीमत ₹12000 थी। लाल बहादुर शास्त्री इसे खरीदना चाहते थे लेकिन उनके पास केवल 7 हजार रुपए थे। पैसे कम होने के बावजूद वो खुद को यह कार खरीदने से रोक नहीं पाए तथा लोन लेकर फिएट खरीदी।
कहते हैं ना हर किसी का अंत तो निश्चय ही है। वर्षों तक लोगों के दिलों तथा भारत की सड़कों पर राज करने वाली फिएट पद्मिनी का भी अंत हुआ। जैसे-जैसे वक्त आधुनिकता की तरफ बढ़ता रहा वैसे वैसे ही भारतीय बाजार में एक से बढ़कर एक कारों की गिनती बढ़ने लगी। भारतीय बाजार में भी अच्छी माइलेज तथा तेज भागने वाली विदेशी कारों ने फिएट की मांग कम कर दी।