अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लिखा था कि “जनता का जनता पर जनता के द्वारा चलाए गए शासन को लोकतंत्र है”। हमारा देश अब तक सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक है लेकिन अब जो घटनाएं सामने आ रही है तो इससे तो यही लगता है कि वह देना दूर नहीं जब हमारे देश में निरंकुशता और तानाशाही होगी।
अभी पश्चिम बंगाल में चुनाव चल रहे और एक के बाद एक ईवीएम विवाद सामने आ रहे हैं। 2 अप्रैल 2022 एक बीजेपी नेता की गाड़ी में ईवीएम मशीन और चुनाव आयोग के सदस्य बैठे पाए गए हैं। इस सूचना की जानकारी वहां के निवासियों को हुई तो उन्होंने कार को घेर लिया और हंगामा किया। इस पर चुनाव आयोग से सवाल पूछा गया तो 12 घंटे बाद बड़ा ही मासूमियत भरा जवाब चुनाव आयोग के पक्ष में सफाई के रूप में आया कि “मेरी गाड़ी खराब हो गई थी तो मैंने प्राइवेट गाड़ी से मदद ली। मुझे नहीं पता था कि यह बीजेपी नेता की गाड़ी है”। चुनाव आयोग का यह जवाब ऐसा लगा जैसे किसी मासूम अबोध बालक को पता नहीं होता कि आग में हाथ डालने से तत्ता हो जाती है। खैर ये पब्लिक है सब जानती है।
अभी हाल में ही 6 अप्रैल 2021 को पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस नेता के घर पर ईवीएम मशीन बरामद की गई है। इससे यह सिद्ध होता है कि राजनैतिक पार्टियों को ईवीएम मशीन से बड़ी आशा है। अब किसी भी राजनैतिक पार्टी को जनता के बोट – सपोर्ट की आवश्यकता नहीं रह गई है बस ईबीएम ही ऐसा हथियार है जिससे चुनाव जीता जा सकता है। और जब ईवीएम घोटाला करके ही चुनाव जीते जाने लगेंगे तो जनता के अधिकार का हनन होगा और लोकतंत्र की हत्या होगी।
ईवीएम मशीन को ऐसा खिलौना बना कर रखा है जो हर पार्टी के घर में लैपटॉप की तरह पड़ी मिल जा रही हैं। आप समझ सकते हैं कि राजनीतिक पार्टी और ईवीएम मशीन के बीच जनता और लोकतंत्र का क्या महत्व रह गया है। जनता के अधिकार सीमित होते जा रहे हैं जो कि लोकतंत्र के लिए घातक है।
इस बीच सवाल यह उठता है कि ईवीएम मशीन राजनीतिक पार्टियों के पास मिल जा रही है तो चुनाव आयोग क्या कर रहा है।
ईवीएम मशीन और चुनाव आयोग के सदस्य राजनीतिक पार्टी बीजेपी नेता की गाड़ी में तो इसका मतलब चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टी बीजेपी के जेब में। देश में राजनीतिक पार्टियों के लिए जनता से ज्यादा ईवीएम का महत्व हो गया है तो समझ लीजिए कि लोकतंत्र वेंटीलेटर पर है और अपने अंतिम सांसे गिन रहा है।