निजीकरण की चक्की में पिसता “गरीब “

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सरकार ने 2021 का बजट पेश किया है उसमें मुख्यता निजीकरण पर फोकस किया गया है। सार्वजनिक संपत्ति को जैसे -रेलवे ,हवाई अड्डे , विद्यालय ,अस्पतालों और सरकारी कंपनी को निजी हाथों में सौंपना ही निजी करण कहलाता है। लेकिन अभी तक सरकार की सभी नीति नियमों में नोटबंदी जीएसटी , लॉकडाउन आदि सभी से गरीब ही पिसा है और गरीब ही मरा है। नोटबंदी में किसान गरीब आम आदमी ही परेशान हुआ है किसी ने नोटबंदी में कहीं भी अंबानी अदानी को बैंक की लाइन में लगे नहीं देखा होगा।

इन सबके बीच निजीकरण के पक्ष में सरकार के वाजिब तर्क जान लेना आवश्यक है।माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा है कि सरकारी संस्थाएं देश की अर्थव्यवस्था के ऊपर एक बोझ है। पुरानी व्यवस्था सड गल गई है इसे सिर्फ इसलिए ही नहीं रहना चाहिए क्योंकि यह किसी के pet project है।

सरकार ने निजी करण के पक्ष में कहा है सरकारी संस्थाएं ठीक से काम नहीं करते हैं जब ए कंपनियां निजी हाथों में जाएगी तो इन पर पर्याप्त ध्यान दिया जाएगा और विकास होगा।

प्राइवेट सेक्टर में सरकार में 2.5 ट्रीलियन का निवेश मिलेगा जिससे सरकार वेलफेयर पर खर्च करेगी।परवाह प्राइवेट सेक्टर में ऐसे लोग होते हैं जिन्हें ग्लोबल अनुभव होता है और अनुभवी लोग देश की जनता के कल्याण के लिए काम करेंगे प्राइवेट सेक्टर में अच्छी क्वालिटी का मैनेजमेंट होता है।

सभी प्रकार की सरकारी संस्थाओं कंपनियों से निजी हाथों में जाने से प्राइवेट सेक्टर में अच्छी क्वालिटी का मैनेजमेंट होता हैं। गरीब ,मध्यम वर्ग ,युवा, महिला किसान ,मजदूर को अपना टैलेंट दिखाने का अवसर मिलता है।

सरकार ने कहा है कि वर्तमान में छोड़ psu घाटे में चलेंगे तो उन्हें समर्थन नहीं दिया जाएगा। और सरकारी संस्थाओं की हालत के बारे में शायद ही कोई ऐसा होगा जिससे पता ना हो। सरकारी स्कूल में बच्चे उपस्थित होते हैं तो टीचर नहीं होते, टीचर होते हैं तो पढ़ाई नहीं होती। सरकारी अस्पतालों में एक बेड पर चार मरीज और कोई खड़े होकर ऑक्सीजन ले रहा है आदि सरकारी अस्पतालों में तमाम अव्यवस्थाएं देखी जा सकती हैं। लेकिन सरकारी संस्थाओं में अव्यवस्थाओं के कारण निजी करण करना कहां तक उचित है। जो चीज सही नहीं है उसे सही करेंगे या छोड़कर भाग जाना अच्छा है जाहिर सी बात है उस पर और अधिक ध्यान देकर उसे सही करेंगे।

निजी करण के कारण आम आदमी गरीब परेशान होगा।गरीब के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल का महत्व इस बात से भी समझ सकते हैं कि भले ही बच्चों को मिड डे मील खाने में नमक रोटी मिलती थी फिर भी बच्चे स्कूल जाते थे।

एक किसान की फसल से उसकी कुल लागत नहीं निकल पाती वह गरीब किसान अपने बच्चों को निजी स्कूलों में कैसे पढ़ाएंगा ।सरकारी अस्पतालों में अवस्थाएं होती है लेकिन कोरोनावायरस सरकारी अस्पतालों की भूमिका का महत्व भुुलाया नहीं जा सकता है। हमारे प्रधानमंत्री भी जानते हैं कि सरकारी संस्थाओं का हमारे देश में क्या महत्व है लेकिन वह मुख से सरकारी संस्थाओं के महत्व को नहीं बोल सकते क्योंकि उन्हें सब कुछ निजी करके अपनी जिम्मेदारियों से भागना है।

निजीकरण होने के बाद संस्थाएं निजी हाथों में पहुंच जाएंगी तो फिर गरीब आर्थिक दबाव तले दब जाएंगे।क्योंकि निजी व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ के लिए ही काम करेगा लाभ के लिए ही काम करेगा । लाभ के लिए उसे भी सेवा की कीमत बढ़ानी पड़ेगी तो बढ़ाएंगे और यदि घाटे में चले तो उन्हें खुद का काम बंद होने का भय रहेगा तो निजी कंपनियां गरीबों की छाती पर दाल दलेगी।

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