जलवायु परिवर्तन से संबंधित समस्याओं को लेकर सभी देशों में चिंता बनी हुई है। और जलवायु परिवर्तन से संबंधित पहले भी कई सम्मेलन किए जा चुके हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन को लेकर अभी किसी भी देश ने संतोषजनक को परिवर्तन नहीं किए हैं। यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में 31 अक्टूबर से शुरू हुआ 13 दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन को COP 26 सम्मेलन कहा गया है। जिसका मतलब “कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज” है ।जलवायु परिवर्तन के कारण समस्त पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ है।
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इस सम्मेलन में दुनिया के 120 देशों ने हिस्सा लिया है और भारत में भी इस सम्मेलन में हिस्सा लिया है। भारत की तरफ से इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने हिस्सा लिया है।
एजेंडे में कई कई चीजें शामिल की गई हैं लेकिन इसका महत्वपूर्ण कार्य पेरिस समझौते में की बनाए गए नियमों को अंतिम रूप प्रदान करना है।
2015 में पेरिस सम्मेलन में तय किया गया कि कार्बन उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन को रोका जा सके और कार्बन उत्सर्जन कम करके दुनिया में बढ़ रहे तापमान डेढ़ से 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ना बढ़ने दिया जाए। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया कि अलग-अलग देशों ने जो लक्ष्य तय किए थे उसे दुनिया का तापमान इस सदी के अंत तक 2 डिग्री के बजाय 2.7 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ जाएगा।
कार्बन डाइऑक्साइड गैस के अत्यंत तीव्र गति से बढ़ने से तापमान तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है । इस तरह जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभाव से बचने के लिए अत्यंत आवश्यक है कि कार्बन गैसों पर नियंत्रण किया जाए। दुनिया में सबसे अधिक कार्बन का उत्सर्जन चीन करता है। उसने 2060 तक कार्बन को अपनी न्यूट्रल स्थिति में लाने का वादा किया है।
भारत में ऐसा कोई वादा नहीं किया कि वह है किसी निश्चित वर्ष में कार्बन उत्सर्जन कम करेगा लेकिन पेरिस समझौते में भारत ने कुछ वादे किए थे जिसमें तीन वादे प्रमुख हैं
(1) भारत ने पेरिस समझौते में वादा किया कि वह 2005 के मुकाबले 2030 तक 33 से 35% तक कमी लाएगा और भारत ने 2021 तक 28% तक यह लक्ष्य पूरा कर लिया।
(2) भारत में पहली सम्मेलन में है वादा किया कि 2030 तक वह अपने बिजली आपूर्ति का 40% हिस्सा नवीकरण एवं परमाणु ऊर्जा से हासिल करेगा इसको लेकर भारत सरकार का दावा है कि 2030 तक 48% यानी अपने निर्धारित से भी ज्यादा बिजली उत्पादन नवीकरणीय एवं परमाणु ऊर्जा से करने लगेगा।
(3) भारत में तीसरा वादा किया था पेरिस सम्मेलन में कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएंगे भारत का नक्शा के 2030 तक कितने पेड़ लगाए जाएं जो वातावरण से अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड गैस और इस दिशा में सरकार ने 2001 से 2019 के बीच भारत का फॉरेस्ट कबर बढ़ा बताया है। लेकिन इसके विपरीत ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच ( Global Forest Watch) का कहना है कि भारत का फॉरेस्ट कवर घटा है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है।
यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु सभी देशों को कोयले पर निर्भरता कम करने होंगे क्योंकि कोयले के उपयोग से अधिक कार्बन उत्सर्जित होती है जो पर्यावरण के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है इससे जलवायु परिवर्तन होता है और तापमान में वृद्धि होती है। लेकिन इसमें एक समस्या है कि विकासशील देशों की निर्भरता कोयले पर अधिक है और यदि विकासशील देश से कोयले पर निर्भरता को खत्म कर देंगे तो इन्हें ऊर्जा उत्पादन का दूसरा स्रोत नहीं मिलेगा जो यहां के कार्य संचालन में उपयोगी हो सके इससे हुआ है जिस स्थिति में है उससे भी कहीं अधिक पिछड़ जाएंगे।
इसलिए भारत ने इस पर अभी हामी नहीं भरी है क्योंकि भारत की निर्भरता कोयले पर अधिक है यदि भारत में कोयले पर निर्भरता खत्म कर दी जाएगी तो लगभग सभी उद्योग ठप हो जाएंगे और देश की प्रगति रुक जाएगी।