bermuda triangle in hindi बरमूडा त्रिकोण की सीमाओं का निर्धारण त्रिभुज की रेखाओं के द्वारा किया जाता है। इन रेखाओं के शीर्ष से अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत के प्योर्टोरिको के सैनजुआन तथा बरमूडा द्वीप में स्थित है। यह त्रिकोण आकार समुद्री क्षेत्र विश्व के व्यस्ततम समुद्री जलयानों या हवाई जहाजों के हवाई मार्गो में से एक है
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बरमूडा त्रिकोण में खतरे का आभास सर्वप्रथम महान नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस को हुआ था। उन्हें चुंबकीय कंपास के असामान्य व्यवहार करने का पता चला उन्होंने अपनी यात्रा के विषय में यह भी लिखा कि चुंबकीय कम्पास यंत्र विचित्र प्रकार से व्यवहार कर रहा था तथा आकाश से आग के गोले जैसी चीज समुद्र में गिर रही थी।
जार्ज यक्स सैंड ने अपने लेख “सी मिस्ट्री एट अवर बैकडोर ” में 1952 में उत्तरी अटलांटिक महासागर के दक्षिण-पश्चिम भाग के इस त्रिभुजाकार क्षेत्र को परिभाषित किया तथा उनकी उसकी सीमाओं का निर्धारण किया ।परंतु बरमूडा त्रिकोण का नाम 1964 एवं 1974 के मध्य अधिक प्रचलित हुआ।
* 5 दिसंबर 1945 अमेरिकी नौसेना के फ्लाइट 19 के बम बर्षक विमानों का समूह 14 सैनिकों के साथ लापता हो गया था।
* 5 दिसंबर 1945 में लापता फ्लाइट 19 की खोज में गई फ्लाइट पी. बी. एम. मेरिनर 13 व्यक्तियों के साथ भी लापता हो गई।
* 30 जनवरी 1948 में फ्लाइट एवरो ट्यूडोर G-AHNP स्टार टाइगर 6 वायुयान कर्मी तथा 25 यात्रियों सहित एजोर्स के संता मेरिया हवाई अड्डे से उड़ने के बाद बरमूडा के किंडले फील्ड पहुंचने से पहले ही लापता हो गई।
* 28 दिसंबर 1948 मैं फ्लाइट डगलस DC-3N/60023 वायुयान कर्मियों एवं 36 यात्रियों सहित अचानक बरमूडा त्रिकोण क्षेत्र में लापता हो गई।
* 17 जनवरी 1949 फ्लाइट एवरो टूडोर G-AGRE स्टार एरी 7 वायुयान कर्मियों एवं 13 यात्रियों सहित बरमूडा ट्रायंगल में लापता हो गई।
* 14 मार्च 1918 में VSS साइक्लोप्स कोलियर जलयान 309 नाविकों तथा यात्रियों सहित बरमूडा ट्रायंगल में लापता हो गया था।
* 31 जनवरी 1921 में कैराल ए. डीयरिंग जलयान केप हैटरस के पास से लापता हो गया था ।
* 1 दिसंबर 1925 में यस. यस. कोटोपैक्सी जलयान कैरोलिना तथा क्यूबा के बीच रास्ते में लापता हो गया था।
* 23 नवंबर 1941 में यूयसयस प्रोट्यूस (AC-9)58 यात्रियों सहित बॉक्साइट से लदा जलयान इस क्षेत्र में डूब गया था।
* दिसंबर 1941 में USS Nareus (AC-10) जलयान 61 यात्रियों सहित बरमूडा ट्रायंगल में डूब गया।
* फरवरी 1963 में यस यस मेरीन सल्फर क्वीन कार्गो जहाज 15,260 टन सल्फर तथा 39 नाविकों सहित बरमूडा ट्रायंगल में फक्कड़ जलमग्न हो गया।
बरमूडा ट्रायंगल में वायुयानों , जलयानों आदि के रहस्यमय तरीके से लापता होने के पीछे त्रिकोण के लेखकों , समर्थकों , समाचार पत्रों आदि द्वारा कई देवी अप्राकृतिक तथा पृथ्व्येतर (extraterrestrial ) कारणों को गिनाया है । परंतु वैज्ञानिकों ने इस तरह के आधारहीन कारणों एवं व्याख्याओं को विश्वासनीय वैज्ञानिक आधारों पर खारिज कर दिया है। इनमें से लारेन डैविड कुशे प्रमुख हैं।
लारेन डैविड कुशे ने बताया कि इस क्षेत्र से गुजरने वाले वायुयानों एवं जलयानों की भारी संख्या की तुलना में लापता वायुयानों एवं जलयानों की संख्या महत्वपूर्ण है विश्व के अन्य भागों में भी ऐसी घटनाएं होते रहते हैं। बरमूडा त्रिकोण की कहानी मनगढ़ंत है। वायुयानों एवं जलयानों का एक क्षेत्र में व्यवहार ग्लोब के अन्य क्षेत्रों के समान ही हैं।
इस तरह की रहस्यमय तरह से वायुयानों एवं जलयानों के लापता होने की आधारहीन मनगढ़ंत कहानियों की व्याख्या करने के लिए विज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।
बरमूडा क्षेत्र में जलयानो और वायुयानों के लापता होने की व्याख्या के लिए प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक कारण बताए गए हैं।
(1) गल्फ स्ट्रीम 2.5 मीटर प्रति सेकंड की गति से चलने वाली विशाल खाड़ी की धारा के कारण छोटी नौकाएं, तकनीकी कारणों से खराब छोटे जलपोत आदि बहा दिए जाते हैं।
(2) उत्तरी अटलांटिक महासागर का दक्षिण-पश्चिम भाग , खासकर कैरेबियन सागर हरिकेन का प्रजनन क्षेत्र है । इस भाग में उत्पन्न प्रबल हरिकेन के कारण मौसम अति प्रचंड हो जाता है। इसमें फंसकर वायुयान तथा जलयान नौकायें आदि क्षतिग्रस्त होकर जल समाधि ले लेते हैं।
(3) मेथेन हाइड्रेट्स – ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न विश्वविद्यालय के जोसेप मोनार्घन और डेविड मे ने बरमूडा ट्रायंगल में रहस्यमय तरीके से गायब होने वाले वायुयानों एवं जलयानों के कारणों के विषय में बताया कि समुद्र की तली से उठने वाले विशालकाय मिथेन गैस के बुलबुलों के कारण ही ऐसी दुर्घटनाएं होते हैं। वास्तव में समुद्री तली की शैलों में मिथेन अत्यधिक दबाव के कारण, गैस हाइड्रेट्स के रूप में जमी रहती हैं ।सागर तली पर भ्रंशन या भूस्खलन के कारण जब कभी ये मिथेन हाइड्रेट्स मुक्त होते हैं तो विशालकाय वायु के बुलबुलों में बदल जाते हैं तथा ऊपर की ओर गतिशील होते हैं तथा विस्फोटक होकर ज्यामितीय रूप में अपना आकार बढ़ाते हैं। यह विशालकाय बुलबुले जब सागर की सतह पर पहुंचते हैं तो जल का घनत्व अधिकतम हो जाता है जिस कारण जलपोत अपने तैरने की क्षमता खो देते हैं तथा सागर में डूब जाते हैं
जब इन विशालकाय बुलबुलो का आकार एवं घनत्व बहुत अधिक हो जाता है तो वह हवा में ऊपर की ओर उछलते हैं। उस समय आकाश में इस क्षेत्र से गुजरने वाले वायुयानों को ए विशालकाय मिथेन के बुलबुले अपने चपेट में ले लेते हैं इन से टकराने के कारण वायुयान अनियंत्रित हो जाता है तथा मीथेन गैस के कारण इंजन में आग लग जाती है। और समुद्र में गिर कर डूब जाता है।
दक्षिण- पश्चिम उत्तरी अटलांटिक महासागर की तली की शैलो में मेथेन हाइड्रेट्स के भंडार पाए जाते हैं। अतः यह व्याख्या विश्वसनीय है।