आपको मालूम है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश समेत चार अन्य राज्यों का चुनाव जल्द ही होने वाला है और लगातार हर पार्टी अपने प्रत्याशी उतार रही है वह जोर शोर से चुनाव प्रचार कर रही है लेकिन इसमें उत्तर प्रदेश का चुनाव सबसे अलग दिखाई दे रहा है एक कार है।
देश का सबसे बड़ा राज्य दूसरा दल बदल के साथ आईएएस रैंक के अधिकारी वॉलंटरी रिटायरमेंट लेकर चुनावी अखाड़े में उतर रहे हैं जिसमें मुख्यता असीम अरुण वह राजेश्वर सिंह मुख्य बता दे असीम अरुण भारतीय पुलिस सेवा के 1994 बैच के हैं तथा राजेश्वर सिंह राज्य पुलिस सेवा के 1997 बैच के अधिकारी हैं तो चलिए हम कुछ जानकारी आपको बताते हैं
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आपको बता दें इंडियन सिविल सर्विसेज तथा अन्य केंद्रीय का कोई भी अधिकारी प्रोविजन ऑफ फंडामेंटल रूल्स एंड सीएनएस रूल्स 1972 के मुताबिक नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले सकता है अगर वह सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन एवं अन्य संबद्ध सभी लाभ चाहता है तो उसे कम से कम 20 साल की नौकरी या फिर 50 वर्ष की उम्र पूरी करनी होती है ऐसे में अधिकतर अधिकारी पेंशन का लाभ उठा ही लेते हैं
अगर आप सोच रहे हैं कि अधिकारी पहली बार चुनावी अखाड़े में उतर रहे हैं तो आप गलत हैं बता दें 2019 के लोकसभा के पहले तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर पॉलिटिक्स में आने वाले अधिकारियों की तो लाइन से लग गई इनमें से कुछ अधिकारी ऐसे थे जो सरकार के उच्च पदों पर काम कर रहे थे बता दें उड़ीसा कैडर के 1994 बैच की आईएएस अपराजिता सारंगी भुवनेश्वर से चुनावी मैदान में उतरी थी।
इसी कैडर कि नलिनी कांता प्रधान आईआरएस छोड़कर संबलपुर से चुनावी मैदान में उतरी इतना ही नहीं सीबीआई के संयुक्त निदेशक आईपीएस वीवी लक्ष्मण नारायण ने विशाखापट्टनम से जोर आजमाइश की ओर मैदान में उतरे।
लोकतंत्र की एक बेहद खूबसूरत बात यह है कि जनता ही अपना नेता चुनती है ऐसे में आईएएस की नौकरी छोड़कर आए अधिकारी चुनाव लड़े और जीत जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है लेकिन हम यह जरूर कह सकते हैं कि अफसरों के हारने का प्रतिशत बहुत कम ही रहा है और कुछ ऐसे भी अधिकारी हैं जिन्होंने चुनाव रिडीमर चुनाव मैं मात खाई है इनमें से एक नाम छत्तीसगढ़ के ओपी चौधरी का है 2005 बैच के इस अवसर को 2019 कोलड़े अपने पहले चुनाव में ही मात खानी पड़ी।
अपनी नौकरी छोड़कर पॉलिटिक्स में आने वाले ज्यादातर अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के होते हैं जबकि सेकंड स्थान पर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी होते हैं आप जानते हैं कि केंद्रीय सेवा में ना के बराबर लोग सिलेक्ट होते हैं या यूं कहें चंद मुट्ठी भर लोग ही अधिकारी बन पाते हैं।
ऐसे में इन अधिकारियों को नेताओं के साथ मिलकर काम करना पड़ता है जिसके फल स्वरुप इनके नेताओं के साथ अच्छे संबंध हो जाते हैं जबकि सिविल कंडक्ट रूल्स के अंतर्गत किसी भी सरकारी अधिकारी से राजनीतिक निरपेक्षता की बात की जाती है लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता और अंततः चुनावी समर में या नेताओं के बलबूते राजनीति में उतर जाते हैं।
वीआरएस अर्थात वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम जिसके तहत कोई भी अधिकारी एक निश्चित समय का नोटिस देकर बीआरएस के लिए आवेदन कर सकता है नोटिस पीरियड 3 माह का होता है लेकिन राज्य सरकार इस नोटिस को आवेदन को लंबा लड़का देती थी और आवेदन लटक जाता था ऐसे में कानून में संशोधन द्वारा नियम बना दिया गया कि यदि सरकार 3 माह के अंदर कोई निर्णय नहीं लेती तो वह सेवा किस से निवृत मान लिया जाएगा लेकिन उस समय व अधिकारी सस्पेंड ना हुआ हो ना ही उसके विरूद्ध कोई भ्रष्टाचार का मामला होगी यदि वह चाहे तो 3 माह के अंदर अपना आवेदन वापस ले सकता है लेकिन अवधि पूरी होने के बाद उसे निवृत होना पड़ेगा।
लेकिन इसका एक अपवाद बिहार के आईपीएस अधिकारी डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का है उन्होंने पिछले साल विधानसभा को चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस के लिए आवेदन किया था जो मात्र 24 घंटे के अंदर स्वीकार कर लिया गया जबकि इनके रिटायरमेंट को 9 माह बाकी थे आपको जानकार हैरानी होगी 2009 में इसी तरह का आवेदन बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए किया गया था लेकिन चुनाव हारने के बाद उन्होंने आईपीएस में लौटने के लिए आवेदन किया और 9 माह के अंदर वह फिर सर्विस में लौट आए जबकि रूल्स के मुताबिक वह नौकरी में नहीं आ सकते थे।