जैविक हथियार, परमाणु बम से भी अधिक खतरनाक

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जैविक हथियार बहुत ही खतरनाक हथियार है क्योंकि इसका ना कोई रूप है जो मनुष्य के आंख से दिख जाए, ना स्वाद है और ना ही गंध  है

जैविक हथियारों से फैली विनाश लीला :-

कोई भी उपकरण जिसका प्रयोग किसी को चोट पहुंचाने हत्या करने हानि पहुंचाने आक्रमण करने आक्रमण से बचाव करने आदि के लिए किया जाए उसे आयुध( Weapon) हथियार कहते हैं। हथियार परंपरागत और आधुनिक उसकी मात्रा में समय के साथ वृद्धि और स्वरूप में परिवर्तन देखा जा रहा है। परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, रासायनिक हथियार, हथियार, मिसाइल, तकनीकी आदि। इन हथियारों के कुछ प्रकार हैं जापान में परमाणु बम का हमला किया गया था तो आज भी नागासाकी और हिरोशिमा में जनजीवन सामान्य नहीं है ।और कई प्रकार की परेशानियों का सामना जापान के नागरिकों को करना पड़ रहा है । हथियार जब कोई देश संगठन व्यक्ति हथियार के रूप में जीवाणु, विषाणु  ,फफूंद जैसे जैविक पदार्थों या संक्रमण कारी तत्वों का प्रयोग करता है इस प्रकार जैविक हथियारों से आक्रमण करने को जैविक युद्ध(Biological Warfare) कहते हैं। आधुनिक तकनीकी काल में विषाणुओं / जीवाणुओं या विषैले तत्वों को मानव द्वारा प्राकृतिक अथवा परिवर्तित विकसित किया जा सकता है ।और किया भी गया है यह जैव आतंकवाद कहलाता है। हथियार के रूप में लगभग 200 प्रकार के बैक्टीरिया ,वायरस ,फंगस का प्रयोग संभव है । एंथ्रेक्स ,प्लेग , ग्लेंडर ,  बोटूलिज्म , टूलेरिमिया आदि का प्रयोग होता है। कई संक्रामक, वाहक पाउडर के रूप में हवा, पानी, खाद्य सामग्री के माध्यम से आसानी से किसी क्षेत्र तक पहुंचाये जा सकते हैं । हथियारों को हवा में या किसी जीव के माध्यम से फैला देने के बाद हजारों मील अपने आप पहुंच जाते हैं हथियार किसी अन्य अस्त्र या बम से ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि एक बार  फैल जाने पर इसका नियंत्रण कठिन है क्योंकि इनका कोई रंग ,स्वाद गंध नहीं होती है इसलिए पता भी नहीं चलता कि किस हथियार का प्रयोग किया गया है ।

कई विकसित देश जैविक हथियारों को बहुत तेजी से बना रहे हैं जिससे मानव जाति को बहुत बड़ा खतरा है।

जैविक हथियारों का प्रयोग आतंकी संगठन तो करते ही हैं साथ ही साथ संपन्न राष्ट्र खुद को सर्वशक्तिमान बनाने के लिए दूसरे राष्ट्रों में जैविक हथियार से चुपचाप आक्रमण कर देते हैं ।जिस प्रकार आतंकवादी खुद को बम लगाकर किसी आतंकी घटना को अंजाम देते हैं खुद तो मरते ही हैं और सब को मार देते हैं । उसी प्रकार आतंकवादी खुद को संक्रमित कर के भीड़भाड़ वाले स्थान पर जाकर संक्रमण फैलाते हैं ।और विनाश लीला प्रारंभ हो जाती हैं।

जैविक हथियारों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :-

पहले एक दुश्मन देश दूसरे दुश्मन देश को घुटने टेकने पर मजबूर करने के लिए हथियारों का फॉर्मूला अपनाते थे। जैसे रोगी, जानवर या व्यक्ति को दुश्मन के क्षेत्र में फेंक दिया जाता था ।जिससे दुश्मन देश के व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते थे और संक्रमण भयानक स्थिति में फैल जाता था और दुश्मन मर जाते थे।

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ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य  के लोगों ने शत्रुओं के कुओं में विषाक्त कवक डाल दिया और वह कवक पानी में घुल गया। इस प्रकार कवक मिले पानी को पी कर लोगों की मृत्यु हो गई। जैविक हथियार से संबंधित एक और घटना तुर्की और मंगोल सैनिकों द्वारा रोग ग्रस्त पशुओं के शरीर को समीपवर्ती नगरों में फेंक दिया जिससे संक्रमण फैल गया जिससे ब्लैक डेथ कहां गया ब्लैक डेथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस रोग से उस समय की कम से कम एक तिहाई आबादी समाप्त हो गई ।1340 के दशक में इस महामारी की वजह से 2.5 करोड़ लोग मारे गए। 1710 में स्वीडन की सेना ने रूस की सेना पर जैविक हथियार का प्रयोग किया था। 1763 में ब्रिटेन की सेना ने चर्चा के वायरस का प्रयोग किया था।

जैविक हथियारों के प्रभाव से  स्वयं जैविक हथियार बनाने वाला भी नहीं बच सकता क्योंकि जब यह एक बार फैलता है तो नियंत्रण करना बहुत ही मुश्किल होता है।

जैविक हथियारों का आधुनिक इतिहास :-

आधुनिक इतिहास में जैविक हथियारों पर दृष्टि डालें तो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सैनिकों द्वारा एंथ्रेक्स तथा ग्लेंडर्स के जीवाणुओं का प्रयोग किया गया ।1915 में जर्मनी ने रूस को कमजोर करने के सेंट पिट्सबर्ग में प्लंग फैलाने की कोशिश की गई। प्रथम विश्व युद्ध में जैविक हथियारों के हुए प्रयोग से वैश्विक समुदाय चिंतित हुआ फल स्वरुप सर्वप्रथम 1925 में जेनेवा प्रोटोकॉल के तहत कई देशों ने जैविक हथियारों के नियंत्रण पर गंभीरता व्यक्त की।

जेनेवा प्रोटोकॉल के होते हुए भी चीन जापान युद्ध तथा द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी सेना की एक यूनिट चीन के नागरिकों एवं सैनिकों पर जैविक हथियारों का प्रयोग करती है हालांकि बहुत अधिक सफलता नहीं मिली फिर भी लोग हैजा  और प्लेग रोग से संक्रमित हो गए थे। वर्ष 1972 में BWC- (Biological Weapon Convention ) की स्थापना की गई 1975 में समझौता लागू हो गया इसके 183 सदस्य देश हैं भारत ने 1973 में इस पर हस्ताक्षर किए यह संधि जैविक हथियारों के प्रयोग पर रोक लगाती है वर्ष 2001 में यूएसए में एंथ्रेक्स के आक्रमण के कई मामले सामने आए हैं।

कई विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोनावायरस एक जैविक हथियार है जिससे चाइना ने अपने लैब में बनाया है।

वर्तमान में जैविक हथियार का प्रयोग :-

वर्तमान में कोरोनावायरस को भी चीन का जैविक हथियार कहां जा रहा है। अमेरिका खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि  तीसरे विश्व युद्ध के अंदेशे में और उस में जीत हासिल करने के लिए चीन जैविक हथियार का सहारा ले सकता है।

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कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का उद्देश्य दुश्मनों के मेडिकल फैसिलिटी और अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर विश्व को घुटने टेकने पर मजबूर कर देना है। अमेरिका लंबे समय से चीन पर यह आरोप लगाता रहा है कि कोरोनावायरस मानव निर्मित है यह वायरस बुहान वायरोलॉजी लैब में विकसित किया गया है और ऐसी कई अन्य जैविक हथियार चीन विकसित कर रहा है।

भारत के पास वर्तमान में ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नहीं है कि वह भी जैविक हथियार का निर्माण कर सके और अभी तक भारत के पास कोई भी जैविक हथियार नहीं है।

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